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Eight anti-India intellectuals and academics you must be aware of

Eight anti-India intellectuals and academics you must be aware of

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1. Angana Chatterji Books: Violent Gods: Hindu Nationalism in India’s Present; Narratives from Orissa Land and Justice: The Struggle for Cultural Survival in Orissa Pronouncements:  In Gujarat, Hindu extremists killed 2,000 people in February-March of 2002. Muslims live in fear there, victims of pathological violence. Raped, lynched, torched, ghettoised. A year and half later, Muslims in Gujarat are afraid to return to their villages, many still flee from town to town. Ghosts haunted by history. Country, community, police, courts — institutions of betrayal that broker their destitution. This is India today. Grassroots movements in resistance to the debacle of nation making are combating the sangh. Where Dalits, Adivasis and others are allied in subalt...
Friend, father & philosopher of black money is Chidambaram

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Palaniappan Chidambaram, whom I shall for the sake of brevity call just Chidambaram, is best seen through black and white. And please don’t get me wrong and accuse me of racism. I refer not to epidermis or mane, but to the economic colour of money. Some of his greatest contributions to the economy of India are his brilliant pioneering initiatives for changing the colour of money from black to white. And this passion has never left him. Many of us have forgotten the Voluntary Disclosure of Income Scheme (VDIS) 1997, which he announced when he was Finance Minister with the United Front government, granting income-tax defaulters indefinite immunity from prosecution under the Foreign Exchange Regulation Act, 1973, Income Tax Act, 1961, Wealth Tax Act, 1957, and Companies Act, 1956, in excha...

I am brother of a martyr, and I support the ABVP

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I am not a student of Delhi University. I am a doctor, more specifically a medical graduate who has cleared NEET PG exam, but I write this as a relative of someone who sacrificed his life for this country.   And I do that, because suddenly the mainstream media has found it worthy to tell you what relatives of martyrs have to say over ABVP vs the Leftists issue at the Delhi University.   However, there is a problem. I have to say something they don’t want to hear. I am not the “right” kind of relative. But I must say it, because “free speech” exists in India.   The same free speech, for which the media is supposedly fighting. The same free speech, which exists in India because the armed forces make sure that it is not overrun by Jihadists and Naxals.   My cousin Dhiraj Singh at...

20 Next Generation Predictions

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During my last few blogs, I tried to establish a framework that can be used for enterprise and Service Provider companies and research organizations across the globe to help define how the next generation’s set of innovation could potentially impact the way we live and operate our life in this century and beyond. One way is to put together a list of innovations that can potentially have a major impact in personal and business life for facets of life on this planet, to look at what has happened and use stochastic processes in other predictive methods and use it to relatively show what could potentially happen. That is all one can do in our daily life outside of all the technical jargons we use every day. One can also look at all the new innovation at stake and make sense out of what is abo...
बयान पर विवाद या कटु सत्य पर प्रहार

बयान पर विवाद या कटु सत्य पर प्रहार

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश के फतेहपुर की एक रैली में यह कहा जाना कि अगर किसी गांव को कब्रगाह के निर्माण के लिए कोष मिलता है,तो उस गांव को श्मशान की जमीन के लिए भी कोष मिलना चाहिए. गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए. अगर आप ईद में बिजलीकी आपूर्ति निर्बाध करते हैं, तो आपको दीपावाली में भी बिजली की आपूर्ति निर्बाध करनी चाहिए.यानि,  भेदभाव नहीं होना चाहिए. भाजपा सांसद साक्षी महाराज द्वारा यह कहा जाना कि ”चाहे नाम कब्रिस्‍तान हो, चाहे नाम श्‍मशान हो, दाह होना चाहिए। किसी को गाड़ने की आवश्‍यकता नहीं है।”  गाड़ने से देश में जगह की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्‍होंने कहा कि ”2-2.5 करोड़ साधु हैं सबकी समाधि लगे, कितनी जमीन जाएगी।20 करोड़ मुस्लिम हैं सबको कब्र चाहिए हिंदुस्‍तान में जगह कहां मिलेगी।” अगर सबको दफनाते रहे तो देश में खेती के लिए जगह कहां से आएगी...

UID, Cashless are projects of digital colonisation, compromising our constitutional rights and autonomy

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Serious concerns were raised regarding the UID/Aadhaar project and other digital platforms undermining citizen’s rights, in a workshop organised at the Sambhaavnaa Institute. Their particular concern was that the UID/Aadhaar is destroying people’s right to obtain justice, equality, liberty, and dignity. The workshop, titled ‘Digital Colonisation: Examining how digitization is undermining our economy, democracy and sovereignty’ was organised during February 24-26, 2017 to discuss the impact of the national digital ID system in India (UID / Aadhaar) and the push towards digital banking through demonetisation. 30 participants comprising of policy researchers, lawyers, technologists, activists, and journalists from across the country attended the workshop. At a time when the UID/Aadhaar ...
दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

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(26 फरवरी को पुण्य तिथि के उपलक्ष पर प्रचारित) क्रांतिकारी वीर सावरकार का स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना ही एक विशेष महत्व रखता है।  सावरकर जी पर लगे आरोप भी अद्वितीय थे उन्हें मिली सजा भी अद्वित्य थी।  एक तरफ उन पर आरोप था कि अंग्रेज सरकार के विरुद्ध युद्ध की योजना बनाने का, बम बनाने का और विभिन्न देशों के क्रांतिकारियों से सम्पर्क करने का तो दूसरी तरफ उनको सजा मिली थी पूरे 50 वर्ष तक दो सश्रम आजीवन कारावास। इस सजा पर उनकी प्रतिक्रिया भी अद्वितीय थी कि  ईसाई मत को मानने वाली अंग्रेज सरकार कब से पुनर्जन्म अर्थात दो जन्मों को मानने लगी। वीर सावरकर को 50  वर्ष की सजा देने के पीछे अंग्रेज सरकार का मंतव्य था कि उन्हें किसी भी प्रकार से भारत अथवा भारतीयों से दूर रखा जाये। जिससे वे क्रांति की अग्नि को न भड़का सके।  सावरकर के लिए शिवाजी महाराज प्रेरणा स्रोत थे।  जिस प्रकार औरंगजेब न...
अभिव्यक्ति बनाम देशद्रोह

अभिव्यक्ति बनाम देशद्रोह

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दिल्ली के रामजस कॉलेज की चर्चा आजकल सुर्ख़ियों में हैं। कुछ दिनों पहले JNU में देशद्रोह के नारे लगाने वाले उमर खालिद को अपने शोध पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया था। उमर खालिद के व्याख्यान का विरोध ABVP द्वारा किया गया। साम्यवादी मीडिया ABVP के विरोध को गुंडई और खालिद के देशविरोधी नारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहा हैं। भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को आज़ाद करने की बात केवल पाकिस्तान समर्थक करते है। ऐसे में देशद्रोह के आरोप में जमानत पर रिहा खालिद को व्याख्यान के लिए बुलाना देशद्रोही को प्रोत्साहन देने के समान है। खालिद चाहे शैक्षिक रूप से कोई बहुत बड़ा बुद्धिजीवी भी हो तब भी देशद्रोही को किसी प्रकार की छूट नहीं होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना अत्यन्त आवश्यक है। स्वामी दयानंद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बड़े पक्षधर थे। परंतु उन्होंने दो विशेष नियमों के पालन करने पर विशेष...
विकास की नई सोच बनानी होगी

विकास की नई सोच बनानी होगी

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हाल ही में एक सरकारी ठेकेदार ने बताया कि केंद्र से विकास का जो अनुदान राज्यों को पहुंचता है, उसमें से अधिकतम 40 फीसदी ही किसी परियोजना पर खर्च होता है। इसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, संबंधित विभाग के सभी अधिकारी आदि को मिलाकर लगभग 10 फीसदी ठेका उठाते समय अग्रिम नकद भुगतान करना होता है। 10 फीसदी कर और ब्याज आदि में चला जाता है। 20 फीसदी में जिला स्तर पर सरकारी ऐजेंसियों को बांटा जाता है। अंत में 20 फीसदी ठेकेदार का मुनाफा होता हैै। अगर अनुदान का 40 फीसदी ईमानदारी से खर्च हो जाए, तो भी काम दिखाई देता है। पर अक्सर देखने  आया है कि कुछ राज्यों मेें तो केवल कागजों पर खाना पूर्ति हो जाती है और जमीन पर कोई काम नहीं होता। होता है भी तो 15 से 25 फीसदी ही जमीन पर लगता है। जाहिर है कि इस संघीय व्यवस्था में विकास के नाम पर आवंटित धन का ज्यादा हिस्सा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता है। जबकि हर प्रधानमंत्री भ...
पैसे और मादक पदार्थों का वोटों पर ग्रहण!

पैसे और मादक पदार्थों का वोटों पर ग्रहण!

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वोट की राजनीति ने पूरा अपराध जगत खड़ा किया हुआ है। मतदान जैसी पवित्र विधा भी आज असामाजिक तत्वों के हाथों में कैद है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान पकड़ी गई नगदी, शराब और अन्य मादक पदार्थों के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। कब जन प्रतिनिधि राजनीति को सेवा और संसद को पूजा स्थल जैसा पवित्र मानेंगे? कब लोकतंत्र को शुद्ध सांसें मिलेंगी? कब तक वोटो की खरीद फरोख्त होती रहेगी? सभी दल एवं नेता अभाव एवं मोह को निशाना बनाकर नामुमकिन निशानों की तरफ कौम को दौड़ा रहे हैं। यह कौम के साथ नाइन्साफी है। क्योंकि ऐसी दौड़ आखिर जहां पहुंचती है वहां कामयाबी की मंजिल नहीं, बल्कि मायूसी का गहरा गड्ढ़ा है। चुनाव का समय देश के भविष्य-निर्धारण का समय है। लालच और प्रलोभन को उत्तेजना देकर वोट प्राप्त करना चुनाव की पवित्रता का लोप करना है। इस तरह वोट की खरीद-फरोख्त होती रहेगी तो देश का रक्षक कौन होगा? पांच राज्यों...