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उत्तर प्रदेश के लिए भारत की राजनीति में मतलब

उत्तर प्रदेश के लिए भारत की राजनीति में मतलब

Current Affaires, राज्य, विश्लेषण
उत्तर प्रदेश के लिए भारत की राजनीति में मतलब  आर.के. सिन्हा उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के बहुप्रतीक्षित नतीजे सबके सामने आ चुके हैं। वहां पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को प्रचंड बहुमत मिल गया है। यह तो सबको पता है ही। इससे पहले वहां अन्य राज्यों के साथ विधान सभा के लिए ज़ोरदार कैंपेन हुई। पर उत्तर प्रदेश में मतदान के दौरान सुरक्षा, विकास, दलितों के हक में शुरू की गई योजनाओं, हिन्दुत्व के मुद्दों के साथ-साथ ‘देश को मजबूत करना है’ तथा ‘भारत का हित सर्वोपरि है’ जैसे जुमले भी सामान्य मतदाता की तरफ से भी सुनने को मिले। एक तरह से इसका यह अर्थ लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश का हित और विकास भारत के विकास और मजबूती से जुड़ा हुआ है। दरअसल पत्रकारों के राज्य के चुनावी माहौल से जुड़े सवालों के जवाब देते हुए उत्तर प्रदेश का आम जन मौजूदा सरकार के कामकाज को लेकर राय देते हुए ‘भारत की मजबूती’ या ‘द...
यूक्रेन युद्ध संकट से उठे भारतीय चिकित्सा शिक्षा प्रणाली पर सवाल

यूक्रेन युद्ध संकट से उठे भारतीय चिकित्सा शिक्षा प्रणाली पर सवाल

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यूक्रेन युद्ध संकट से उठे भारतीय चिकित्सा शिक्षा प्रणाली पर सवाल-सत्यवान 'सौरभ' हाल ही में भारत की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली ने यूक्रेन में युद्ध संकट और वाहन फंसे भारतीय मेडिकल  छात्रों को निकालने की आवश्यकता, आरक्षण संबंधी मुकदमेबाजी और तमिलनाडु के एनईईटी से बाहर निकलने के लिए कानून बनाने के कारण हमारा ध्यान अपनी ओर किया है। हमें अब इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि व्यवस्था में क्या खराबी है और स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त उपाय करने की जरूरत है। भारत में चिकित्सा शिक्षा की प्रमुख समस्याओं में जनसंख्या मानदंडों के मामले में  मेडिकल छात्रों की  अपर्याप्त सीटें हैं। भारत में आवेदक उम्मीदवारों के अपेक्षा सीटों की संख्या काफी कम है। यहां प्रति वर्ष लाखों छात्र मेडिकल कोर्स में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट में भाग लेते हैं। लेकिन सरकारी कॉलेजों में अभ्यर्थियो...
रूस.यूक्रेन युद्ध के भारत पर परिणाम

रूस.यूक्रेन युद्ध के भारत पर परिणाम

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रूस.यूक्रेन युद्ध के भारत पर परिणाम विनीत नारायण पूरी दुनिया यूक्रेन रूस के युद्ध को लेकर बेचैन है। भारत की बड़ी चिंता उन विद्यार्थियों को लेकर है जो यूक्रेन में अभी फँसे हुए हैं। जो विद्यार्थी जोखिम उठा करए तकलीफ़ सहकरए भूखे प्यासे रह कर यूक्रेन की सीमाओं को पार कर पा रहे हैंए उन्हें ही भारत लाने का काम भारत सरकार कर रही है। पर जो युद्धग्रस्त यूक्रेन के शहरों में फँसे हैंए ख़ासकर वो जो सीमा से कई सौ किलोमीटर दूर हैंए उनकी हालात बहुत नाज़ुक है। वे बार.बार सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें जल्दी से जल्दी वहाँ से सुरक्षित निकाला जाए अन्यथा वे ज़िंदा नहीं बचेंगे। चूँकि इस युद्ध में भारत रूस के साथ खड़ा हैए इसलिए यूक्रेन की सेना और नागरिक भारतीयों से नाराज़ है और मदद करना तो दूर छात्रों को यातनाएँ दे रहे हैं। ऐसा उन विद्यार्थियों के वायरल होते विडीयो में देखा जा रहा है। इसके साथ ही इस युद...
सामाजिक सरोकार और लोकतांत्रिक मूल्य

सामाजिक सरोकार और लोकतांत्रिक मूल्य

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सामाजिक सरोकार और लोकतांत्रिक मूल्य भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण पहलू स्वतंत्रता आंदोलन के महान आदर्शवाद से उस स्थिति में परिवर्तन है जिसमें वह वर्तमान में खुद को पाता है। प्रत्येक व्यक्ति समाज के साथ अपने व्यवहार में स्वार्थ से शासित होता है। लेकिन जब इस स्वार्थ को बड़े पैमाने पर देश के हितों से ऊपर रखा जाता है, तो यह लोकतंत्र के अस्तित्व और देश की एकता और अखंडता के लिए एक संभावित खतरा बन जाता है। इसके अलावा, यदि जाति, समुदाय, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर सांप्रदायिक वैमनस्य और कृत्रिम अवरोध पैदा किए जाते हैं और अगर संवैधानिक रूपों को प्राथमिकता देने के लिए आंदोलन का इस्तेमाल किया जाता है, तो ये सार्वजनिक जीवन में अनुशासनहीनता का कारण बनते हैं। जबकि संवैधानिक प्रावधान स्पष्ट रूप से नागरिकों को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें खुद को शालीनता से आचरण करने के लिए प्रेरित करते हैं, यह दु...
संसदीय लोकतंत्र में “प्रश्न पूछने” का महत्व

संसदीय लोकतंत्र में “प्रश्न पूछने” का महत्व

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संसदीय लोकतंत्र में "प्रश्न पूछने" का महत्व संसदीय लोकतंत्र के बारे में सबसे महत्वपूर्ण धारणा यह है कि संसद सरकार और लोगों के बीच एक कड़ी है। सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है और यह जवाबदेही जनता द्वारा संसद में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से सुरक्षित की जाती है। लोकतंत्र के स्वरूप की परवाह किए बिना जवाबदेही सरकार का एक महत्वपूर्ण सहायक है। हमारे संविधान में विभिन्न तरीकों से जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित की गई है। ऐसी संस्थाएँ स्थापित की गई हैं जो सरकार के कामकाज पर नज़र रखती हैं और उसकी निगरानी करती हैं। यह देखने के लिए कि क्या सरकार ठीक से काम कर रही है, सवाल पूछने के अलावा कोई अन्य मजबूत रास्ता नहीं है। संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता संसद में प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता को बनाए रखना है। यदि उस स्वतंत्रता को सीमित कर दिया जाए तो प्रश्न का महत्व कम हो ...
सेक्स ऑब्जेक्ट’ जमाने में महिला सशक्तिकरण

सेक्स ऑब्जेक्ट’ जमाने में महिला सशक्तिकरण

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सेक्स ऑब्जेक्ट' जमाने में महिला सशक्तिकरण (सोशल मीडिया पर पाया गया  है कि लड़कियों को लड़कों की तुलना में अधिक बार यौन रूप से चित्रित किया जाता है। सोशल मीडिया ने "किशोर लड़कियों के लिए कुछ यौन कथाओं के अनुरूप होने के लिए सदियों पुराने दबावों को बढ़ाया है। यह दर्शाता है कि महिलाओं के साथ एक ऐसी वस्तु के रूप में व्यवहार किया जाता है जिसकी खुद की कोई पहचान नहीं होती है। इसमें और अन्य विज्ञापनों में महिलाओं का चित्रण वास्तव में सामान्य रूप से महिलाओं का अपमान है जो महिलाओं की वास्तविक स्थिति और गरिमा को नष्ट कर रहे हैं।) --प्रियंका 'सौरभ' अभी कुछ समय पहले, सोशल मीडिया पर 'बोइस लॉकर रूम' की घटना हुई थी, जिसमें एक विशेष समूह से लीक हुई चैट के माध्यम से कम उम्र की लड़कियों की अश्लील तस्वीरें प्रसारित की गई थीं। यह समय है कि हम रुकें और स्वीकार करें कि 'बोइस लॉकर रूम' बलात्कार की संस्कृति को स...
अब अपराधी के मानस मूल्यांकन की सार्थक पहल

अब अपराधी के मानस मूल्यांकन की सार्थक पहल

Current Affaires, विश्लेषण, समाचार, सामाजिक
अब अपराधी के मानस मूल्यांकन की सार्थक पहल- ललित गर्ग-दुनिया के बहुत सारे देशों में फांसी की सजा का प्रावधान समाप्त किया जा चुका है और भारत में भी फांसी की सजा को समाप्त करने की मांग लगातार उठ रही है। प्रश्न है कि क्या मौत की सजा जैसे सख्त कानूनों के प्रावधान करने मात्र से अपराधों एवं अत्याचारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है? अपराधों को कठोर कानूनों के जरिये रोकने से ज्यादा जरूरी है कि समाज मंे ऐसी जागृति लाई जाये कि लोगों का मन बदले, अपराध की मानसिकता समाप्त हो। अपराधी को समाप्त करने की बजाय अपराध के कारणों को समाप्त किया जाना चाहिए। इसी के मद्देनजर अब सर्वाेच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि मौत की सजा पाए व्यक्तियों का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी अवश्य किया जाए। इसके लिए चिकित्सा संस्थानों के सुयोग्य मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों की टीम गठित की जाए। सर्वाेच्च न्यायालय के इस आदेश से मौत की सज...
युद्ध के विरूद्ध खड़ा हो भारत

युद्ध के विरूद्ध खड़ा हो भारत

Current Affaires, राष्ट्रीय, विश्लेषण, सामाजिक
युद्ध के विरूद्ध खड़ा हो भारत आर.के. सिन्हा रूस के हमलों से तार-तार हो रहे यूक्रेन से आ रही खबरें और तस्वीरों को देखकर किसी भी सॅंवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल रहा है। रूसी सेनाएं लगातार हमले बोल रही है। उससे जान-माल की बड़े स्तर पर तबाही हो रही है। बम वर्षा से मानवता मर रही है। विश्व बिरादरी की तमाम अपीलों से बेरपवाह रूस यूक्रेन पर हल्ला बोल रहा है। क्यों नहीं किसी भी मसले का हल वार्ता से निकलता। अगर बातचीत के बाद हल नहीं निकल रहा है, तो समझ लें दोनों में से कोई पक्ष शांति और अमन को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने दुनिया के हर अहम शहर में बने उन कब्रिस्तानों को नहीं देखा जहां पर पहले,दूसरे विश्व युद्ध या फिर किसी अन्य जंग के शहीद चिर निद्रा में हैं। पिछले 100-125 सालों में विभिन्न जंगों में करोड़ों लोगों की जान गई है। आखिर किसी को क्या मिल गया इतने लोगों को मार देने के बाद भी। युद्ध के विरूद्...
भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय

भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय

Current Affaires, विश्लेषण, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय विनोद बंसल राष्ट्रीय प्रवक्ता-विहिप सदियों की परतंत्रता के बाद 1947 में देश को राजनैतिक स्वतंत्रता तो मिली किन्तु, दुर्भाग्यवश उसके सांस्कृतिक स्वरूप पर होने वाले अनवरत हमलों पर कोई विराम न लग सका। स्वतंत्रता के 7 दशकों तक भी  हम ना तो अपने मंदिरों को मुक्त कर पाए, न नदियों को, न सांस्कृतिक विरासतों को, ना अपने महापुरुषों को। हमारे ऐतिहासिक गौरव या गौरवशाली परंपराएं थीं उनको ऐतिहासिक विकृतियों के चलते कुरूपित किया जाता रहा। उनकी वास्तविकता कभी समाज के सामने आ ही नहीं पाई। किंतु, 2014 में अचानक अप्रत्याशित रूप से भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होते हुए दिखा। जब देश के प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा में अमेरिका के राष्ट्रपति को भेंट स्वरूप श्रीमद्भागवत गीता देते हैं, जब वे आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को अक्षरधाम की सीढ़ियों पर बिठा कर ही बिना क...
जेएनयू की उप कुलपति और कपिव देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन

जेएनयू की उप कुलपति और कपिव देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन

Current Affaires, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
जेएनयू की उप कुलपति और कपिव देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन-आर.के. सिन्हा अपने देश में एक इस तरह का तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी तबका उभरा है, जो मानता है कि पढ़ा लिखा और शिक्षित मात्र वही है जिसका अंग्रेजी का ज्ञान शेक्सपियर के नाटकों के पात्र जैसा क्लिष्ट होता है। ये आजाद भारत में रहते हुए भी गुलाम मानिसकता से अपने को बाहर निकाल पाने में असमर्थ हैं। यह भी संभव है कि इस इस गुलामी की सोच से निकलना ही न चाहते हों। इनके निशाने पर अब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू) में हाल ही में नियुक्त हुईं उप कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित हैं। प्रोफेसर शांतिश्री न केवल जेएनयू की नई कुलपति हैं, बल्कि; वे यहां की पहली महिला कुलपति भी हैं। अभी तक जेएनयू में कभी भी किसी महिला को उप कुलपति के तौर पर नियुक्त नहीं किया गया था। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी महिला ने यह पद संभाला है। अंग्रे...