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Demoralising and demeaning the achievers

Demoralising and demeaning the achievers

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It is happening this year again as was expected. The moment the 10th and 12th results were released, the so called pseudo-intellectuals jumped into the meaningless debate, similarly as the frogs come out from ground in rainy season. These so called erudite following their usual agenda to devalue or defame those who have secured high marks and to console those who got comparatively lesser marks. They, in order to dishearten and demoralise those who have endeavour hard, are questioning about the possibility of securing 98 and 99 percent marks. They are ignoring the fact that at only hand may excelle. On the other hand, thousands of students have failed also. Hundreds of thousands of them have  secured below 50 percent marks. It is hard to believe, when some so called intellectuals gone to t...
कोविड-19 महामारी में महिलाधिकार क्यों अधिक खतरे में?

कोविड-19 महामारी में महिलाधिकार क्यों अधिक खतरे में?

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वर्तमान कोरोना वायरस रोग (कोविड-१९) महामारी के कारणवश इस वर्ष का विश्व जनसंख्या दिवस बहुत ही प्रासंगिक और सामयिक रहा क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, कोविड-१९ महामारी से सम्बंधित तालाबंदी के दौरान महिला-हिंसा और प्रताड़ना में बढ़ोतरी ही हुई है. भारत की प्रख्यात महिलाधिकार कार्यकर्ता, हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अनुबद्ध प्रोफेसर और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़ीं डॉ गीता सेन ने इस बात पर दुःख जताया कि कोविड-१९ महामारी के चलते एशिया पैसिफिक देशों (जिसमें भारत भी शामिल है) में महिलाओं/ किशोरियों से सम्बंधित अनेक प्रचलित हानिकारक प्रथाओं के जोखिम को बढ़ावा मिला है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के यूएनएफपीए की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पापुलेशन रिपोर्ट २०२० में कहा गया है. महामारी के दौरान महिला-हिंसा की समानांतर महामारी करीब ४० सालों से महिलाधिकार के लिए समर्पित डॉ गीता सेन ने बताया कि म...
One-nation one-card should be introduced in Delhi to cover complete city-population on fast track

One-nation one-card should be introduced in Delhi to cover complete city-population on fast track

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It refers to news-item about Delhi Chief Minister directing fast disposal of 1.80 lakh pending applications for ration cards at rate of 40000 applications per month. But Delhi should be selected for experimenting ideal one-nation one-card system as announced by Union Finance Minister on 14.05.2020 for complete population of Delhi on a fast track rather than disposing just 1.80 lakh pending applications for ration-cards covering only 8 lakh people of the city out of total population of more than 2 crores. Since ultimately one-nation one-card system is to be adopted, any issue of new ration-cards for pending 1.80 lakh applications will be duplication of work resulting in over-spent of public-resources.   One-nation one-card system if made compulsory, will serve multiple purposes if Aad...
कमजोर हो चुकी कांग्रेस कई तरीकों से मजबूत हो सकती है

कमजोर हो चुकी कांग्रेस कई तरीकों से मजबूत हो सकती है

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राजस्थान में कांग्रेस सरकार का भविष्य जो भी हो, इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के तौर पर कांग्रेस काफी कमजोर हो चुकी है। कुछ राज्यों में कांग्रेस को बहुमत मिला और कुछ में वह सबसे बड़ा दल बनकर उभरी लेकिन आज कांग्रेस उनमें से कई में विरोधी दल बनकर बैठने पर मजबूर हुई है। इस सर्वज्ञात तथ्य के बावजूद हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टियों में रही है। कांग्रेस जितने वर्षों तक इस विशाल देश में सत्तारुढ़ रही है, शायद दुनिया की कोई पार्टी नहीं रही है। आज भी देश का कोई जिला ऐसा नहीं है, जहां कांग्रेस के कार्यकर्ता न हों। कांग्रेस के अध्यक्षों में किस धर्म, किस जाति, किस प्रांत, किस भाषा और किस योग्यता के लोग नहीं रहे ? सबसे बड़ी बात यह है कि देश की आजादी का बहुत बड़ा श्रेय कांग्रेस को ही है। तो ऐसी कांग्रेस का अत्यंत निर्बल हो जाना य...
परीक्षाओं में कम अंक लाने वालों को शाबाशी ?

परीक्षाओं में कम अंक लाने वालों को शाबाशी ?

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सच में फिर से वही हो रहा है, जिसकी आशंका थी। जैसी ही सीबीएसई के 10 वीं और 12 वीं कक्षा के नतीजे आए, बस उसी समय अनेक ज्ञानी लोग मैदान में कूद  गए। ये ही वे प्रकांड ज्ञानी हैं जो हर बार की तरह अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थियों की उपलब्धियों को कम करके आंक रहे हैं और उन विद्यार्थियों  को सांत्वना दे रहे हैं जिनके अपेक्षाकृत खराब अंक आए हैं।  ये अधिक अंक लेने वालों की मेहनत और निष्ठा पर लगभग पानी फेरते हुए यह कह रहे हैं कि यह कैसे हो सकता है कि किसी के 98 या 99 फीसद तक अंक आ जाएं?  यह सब कहते- हुए ये इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि इन परीक्षाओं के परिणामों में हजारों बच्चे तो फेल भी हुए हैं। सैकड़ों के 40-50 पर्सेट तक ही अंक आए हैं।  क्या आप यकीन करेंगे कि कुछ कथित ज्ञानी तो यहां तक रहे हैं कि जिनके बेहतर अंक आए हैं उनमें से बहुत से आईआईटी, मेडिकल या फिर आईआईएम में जायेंगे, पर कोई भी न तो कोरो...
Delhi Police and Justice-Delivery-System should co-ordinate to flush out gangsters in Delhi now active in recovery-process after lockdown

Delhi Police and Justice-Delivery-System should co-ordinate to flush out gangsters in Delhi now active in recovery-process after lockdown

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Gangsters are reported to have been active in Delhi known for torturing and life-threatening recovery-process especially after lockdown when many loan-takers are not in position to pay-off loans. Even banks and Non-Banking-Financial-Companies NBFCs are said to have hire such gangster-teams some of which are even controlled by their heads in jail because of poor-most justice-delivery-system where justice can practically be achieved only through god-drafted police-encounters. Loan-takers are threatened of being killed in case such illegal activities are reported to police. There are big advocates hired by such gangster-agencies to save them in case of any police-action or court-case. Lt Governor and Chief Minister of Delhi should take up the matter with Chief Justice of Delhi High Court s...
उदारवादियों के सिलेक्टिव लिब्रलिस्म से पर्दा उठने लगा है।

उदारवादियों के सिलेक्टिव लिब्रलिस्म से पर्दा उठने लगा है।

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आज हम उस समाज में जी रहे हैं जिसे अपने दोहरे चरित्र का प्रदर्शन करने में महारत हासिल है। वो समाज जो एकतरफ अपने उदारवादी होने का ढोंग करता है, महिला अधिकारों, मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े बड़े आंदोलन और बड़ी बड़ी बातें करता है लेकिन जब इन्हीं अधिकारों का उपयोग करते हुए कोई महिला या पुरूष अपने ऐसे विचार समाज के सामने रखते हैं तो इस समाज के कुछ लोगों को यह उदारवाद रास नहीं आता और इनके द्वारा उस महिला या पुरुष का जीना ही दूभर कर दिया जाता है। वो लोग जो असहमत होने के अधिकार को संविधान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा अधिकार मानते हैं वो दूसरों की असहमती को स्वीकार ही नहीं कर पाते। हाल ही के कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं। 1.हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की एक छात्रा को सोशल मीडिया पर धमकी दी गई है कि यूनिवर्सिटी खुलने के बाद उसे जबरन पीतल का हिजाब पहनाया जाएगा। उसक...
कार्यस्थलों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित नई कोविड-सुरक्षा यूनिट

कार्यस्थलों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित नई कोविड-सुरक्षा यूनिट

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नई दिल्ली, 17 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए शोधकर्ता विभिन्न युक्तियां खोजने में जुटे हुए हैं। दुर्गापुर स्थित सेंट्रल मेकैनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमईआरआई) के शोधकर्ताओं ने इस दिशा में काम करते हुए नया ‘कोविड प्रोटेक्शन सिस्टम’ (कॉप्स) ईजाद किया है जो कार्यस्थलों पर कोविड-19 का संक्रमण रोकने में उपयोगी हो सकता है। कॉप्स सिस्टम में संपर्क रहित सोलर आधारित ऑटोमेटेड मास्क डिस्पेंसिंग यूनिट और थर्मल स्कैनर (इंटेलिमास्ट) लगाया गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर आधारित यह सिस्टम स्वचालित कामकाज में मददगार होगा। सीएमईआरआई द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि यह तकनीक व्यावसायिक हस्तांतरण के लिए तैयार है। निकट भविष्य में सीएमईआरआई की योजना एक डिजिटल एंट्री मैनेजमेंट सिस्टम विकसित करने की है। सोलर आधारित इंटेलिमास्ट ...
प्रकृति हमें कब बचाएगी

प्रकृति हमें कब बचाएगी

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इस दुष्काल में हुए लॉक डाउन ने भारतीयों को प्रकृति का सानिध्य महसूस कराया था हम घर में रहते हुए सुबह की मंद बयार और गौधुली की उष्मा महसूस करने लगे थे | लॉक डाउन-१ हटा हो या २  हालत बदतर ही  हुए | अब उद्योग खुलने के साथ पर्यावरण सूचकांक फिर डराने लगा है | सच भी है कोई भी व्यावहारिक कारोबार हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहेगा कि वह वो सब करे करे जिन पर उसका कारोबार निर्भर है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का विरोध ठप है क्योंकि लॉकडाउन के कारण लोग एकत्रित नहीं हो सकते। ऐसे में अब तक उनकी अनदेखी करता आया मंत्रालय अब क्यों ध्यान देगा? सच तो यह है कि सारा भारतीय समाज जिस पर्यावरण की निर्मलता से निरापद रहेगा | उस पर्यावरण के मोर्चे पर देश  पिछड़  रहा है |इस  नाकामी का एक मानक येल विश्वविद्यालय के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में दिखता है। सन २०२०  में जारी सूचकांक में भारत १८०  देशों में १६८ वें स्थान पर रहा...
गोधन न्याय योजना अच्छी, पर राह कच्ची

गोधन न्याय योजना अच्छी, पर राह कच्ची

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छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना की घोषणा की है जिसे हरेली के पावन दिवस से प्रारंभ की जाएगी। योजना के संबंध में दिशानिर्देश भी शासन ने जारी कर दिया है। यह देश में गौवंश के संरक्षण और पशुपालकों की सहायता के लिए अच्छी सोच का परिणाम है। लेकिन जैसे की शासकीय योजनाओं के साथ होता है नौकरशाही की रुचि नहीं होने और जल्दी परिणाम की उम्मीद में जब तेज भागने लगते हैं तो योजना हांफने लगती है, गोधन योजना के साथ इस परिणाम की संभावना अधिक है। इसलिए सरकार को इस योजना को लागू करने में और अच्छा परिणाम पाने के लिए थोड़ा धीरज रखने की जरूरत है। गोबर की सरकारी खरीद करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, इसलिए बिना किसी अनुभव के योजना को प्रारंभ करना मुश्किल होता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि गाय के गोबर और मूत्र से अनेक उत्पाद बनाकर लाभकारी व्यवसाय किए का सकते हैं। दूसरी ओर छत्...