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भारत की घटती प्रजनन दर एक चुनौती या अवसर

भारत की घटती प्रजनन दर एक चुनौती या अवसर

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भारत की घटती प्रजनन दर एक चुनौती या अवसर भारत की घटती प्रजनन दर एक चुनौती और अवसर दोनों का प्रतिनिधित्व करती है। हालांकि प्रतिस्थापन दर से कम प्रजनन दर से जनसंख्या वृद्ध होने और आर्थिक स्थिरता का जोखिम पैदा होता है, लेकिन यह रणनीतिक नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से सतत विकास के लिए अवसर भी प्रस्तुत करता है। एक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य बनाने पर ध्यान होना चाहिए, जिससे जनसांख्यिकीय बदलावों का भारत के लाभ के लिए लाभ उठाया जा सके। निरंतर कम प्रजनन दर के कारण वृद्ध आबादी हो सकती है, जहाँ कामकाजी आयु वर्ग की आबादी के सापेक्ष वृद्ध वयस्कों का अनुपात बढ़ जाता है। यह जनसांख्यिकीय बदलाव सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों, स्वास्थ्य सेवा संसाधनों और आर्थिक उत्पादकता पर दबाव डाल सकता है। भारत की घटती प्रजनन दर देश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को नया आकार देगी। जैसे-जैसे बुजुर्गों की आबादी बढ़ेगी, वृद्धावस्थ...
ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस को मात दे पायेगा भारत ?

ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस को मात दे पायेगा भारत ?

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ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस को मात दे पायेगा भारत ? भारत को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पहलों के माध्यम से निगरानी, निदान और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत करके मानव मेटान्यूमोवायरस जैसे उभरते वायरल खतरों से निपटने के लिए अपने नियामक ढांचे को बढ़ाना चाहिए। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ-साथ वैक्सीन और एंटीवायरल अनुसंधान में निवेश से ऐसे प्रकोपों को कम करने में मदद मिलेगी। कमजोर आबादी की सुरक्षा और एचएमपीवी प्रसार को नियंत्रित करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना आवश्यक है। -- डॉo सत्यवान सौरभ, मानव मेटान्यूमोवायरस एक वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरा है, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और प्रतिरक्षाविहीन व्यक्तियों जैसे कमजोर आबादी के लिए। पहली बार 2001 में पहचाना गया, मानव मेटान्यूमोवायरस दुनिया भर में महत्वपूर्ण श्वसन संक्रमण का कारण बनता है, जिससे अस्पता...
देश में बड़े स्तर पर लोग भूखे हैं

देश में बड़े स्तर पर लोग भूखे हैं

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मेरे सामने खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति (सोफी) की 2023 की रिपोर्ट है और यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में 2020 और 2022 के दरम्यान 7.4 करोड़ लोग अल्पपोषण के शिकार थे। 2023 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों के बीच भारत को 111वां स्थान दिया गया। यह सूचकांक बताता है कि किस देश के बच्चों में बौनेपन, दुर्बलता की समस्या और पोषण की कमी बहुत अधिक है। इससे यह भी पता चलता है कि उस देश की आबादी को रोजाना पर्याप्त भोजन मयस्सर नहीं हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध आंकड़े तो बता रहे हैं कि बड़े स्तर पर लोग भूखे रहते हैं मगर यह आंकड़ा आसानी से नहीं मिलता कि रोज रात कितने लोगों को भूख पेट सोना पड़ता है। हाल ही में घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) 2022-23 के आंकड़े जारी किए गए, जिसमें सर्वेक्षण से तीस दिन पहले तक खाए गए आहार की संख्या बताई गई है। तय परिभाषा के मुताबिक ‘आहार’ पकाई गई एक...
संभल -हरिहर मंदिर के सत्य को दबाने के लिए असत्य की राजनीति का सहारा

संभल -हरिहर मंदिर के सत्य को दबाने के लिए असत्य की राजनीति का सहारा

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संभल -हरिहर मंदिर के सत्य को दबाने के लिए असत्य की राजनीति का सहारामुस्लिम तुष्टिकरण का नया पर्यटन केंद्र बना संभलमृत्युंजय दीक्षितउत्तर प्रदेश का संभल जिला आजकल चर्चा में है। यहाँ की शाही जामा मस्जिद के पूर्व में प्रसिद्ध हरिहर मंदिर होने के प्रमाण हैं जिसके कारण यह पुरातात्विक महत्व का स्थल है। हिंदू पक्षकार ने इस स्थल को भगवान श्री हरिहर का मंदिर मानते हुए प्रमाणों के साथ स्थानीय अदालत में इसके सर्वेक्षण की याचिका याचिका लगाई थी जिसे स्वीकार करते हुए स्थानीय न्यायलय ने सर्वे कराने का आदेश जारी किया था। प्रथम चरण का सर्वे हो जाने के बाद कोर्ट कमिश्नर ने न्यायालय से दोबारा सर्वे कराने की अनुमति मांगी थी और वह सहमति भी न्यायलय ने दी किंतु सर्वे टीम के वहां पहुँचने पर अराजक तत्वों की उग्र भीड़ ने उस पर हमला कर दिया। इस हमले के साथ बाद भड़की हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई तथा कई लोग घायल हुए।...
विकलांगता न्याय और जेंडर समानता के बिना कैसे सुरक्षित रहेंगे सबके मानवाधिकार

विकलांगता न्याय और जेंडर समानता के बिना कैसे सुरक्षित रहेंगे सबके मानवाधिकार

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विकलांग लड़कियां और महिलायें अन्य महिलाओं की अपेक्षा कई  गुना अधिक सामाजिक और आर्थिक असमानता झेलती हैं। महिला हिंसा का खतरा भी विकलांग महिला के लिए  4 गुना अधिक है, परंतु हिंसा उपरांत न्यायिक सहायता और सहयोग मिलने की संभावना अत्यंत संकीर्ण। आबिया अकरम जो विकलांगता न्याय के लिए जुझारू कार्यकर्ता हैं और बीबीसी की 100 सबसे प्रभावशाली महिला नेत्री के रूप में चिन्हित हो चुकी हैं, ने "शी एंड राइट्स" सत्र में अपने व्याख्यान में कहा कि अक्सर उन्हें अपने लिए  व्हील चेयर  सुलभ आवागमन के रास्ते नहीं मिल पाते हैं  जिससे कि वह विभिन्न कार्यालयों (जिनमें पुलिस स्टेशन भी शामिल है), राहत केंद्रों या स्वास्थ्य केंद्रों में जा सकें। विकलांगता न्याय और जेंडर समानता को मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में लागू किए बिना हम सतत विकास लक्ष्यों पर कैसे खरे उतरेंगे? चाहे वो सरकारी परिव...
प्रदूषण से बढ़ती मौतों के लिये कौन जिम्मेदार?

प्रदूषण से बढ़ती मौतों के लिये कौन जिम्मेदार?

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-ललित गर्ग- राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस हर साल 2 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद, प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों, नीतियों, और प्रदूषण को कम करने के महत्व पर ध्यान आकर्षित करना है। यह दिन भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की याद में मनाया जाता है। यह त्रासदी 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को हुई थी। इस त्रासदी में ज़हरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। कहते हैं जान है तो जहान है, लेकिन भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण जान और जहान दोनों ही खतरे में हैं। देश एवं दुनिया की हवा में घुलते प्रदूषण का ‘जहर’ अनेक बार खतरनाक स्थिति में पहुंच जाना चिन्ता का बड़ा कारण हैं। प्रदूषण की अनेक बंदिशों एवं हिदायतों के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण की बात खोखली साबित...
वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए!

वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए!

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सुशील कुमार 'नवीन' वो चुपके से आते हैं और सारा खेल बदल जाते हैं। वो भी इस तरह से कि किसी को सहजता से यकीन ही नहीं हो। प्रत्याशित को अप्रत्याशित में परिवर्तित करने वाले इन लोगों के पास न कोई पहचान पत्र होता है और न उनकी कोई अन्य विशिष्ट पहचान। सामान्य व्यक्तित्व,सामान्य वेशभूषा,सामान्य बोलचाल कुछ भी तो ऐसा अन्यतर नहीं होता,जिससे उन्हें अलग से पहचाना जा सके। न वो किसी से जाति, धर्म या संप्रदाय के रूप में उनकी पहचान पूछते हैं और न ही इस तरह की अपनी पहचान किसी को बताते हैं।     कौन है वो लोग, आखिर कहां से आते हैं? न उन्हें गाड़ी चाहिए, न फाइव स्टार होटल। न कोई अन्य वीआईपी ट्रीटमेंट। सामान्य ढाबे या सामान्य धर्मशालाएं जिन्हें परम वैभव से कमतर सुख देने वाले साधन से कम नहीं होते हैं। स्वहित से दूर राष्ट्रहित जिसके लिए सर्वोपरि होता है। बिना झंडे, बिना पर्चे राष्ट्रहित मे...
प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं

प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं

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*प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं* दिल्ली की दुर्दशा पर एक सरकारी बयान पढ़ने में आया, सरकार फ़रमाती है ‘हवा और पानी तो ऐसे हैं, जिन्हें रोका या बांधा नहीं जा सकता।“सरकार के पास बयानबाज़ी के अलावा विकल्प भी क्या है? जिस समय सर्वोच्च अदालत के ‘कोर्ट रूम’ में प्रदूषण पर सुनवाई चल रही थी, उस समय वहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक 994 था। वह ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी का प्रदूषण था। दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता 978 भी दर्ज की गई। ऐसे प्रदूषण में जीना भी ‘राष्ट्रीय शर्मिन्दगी’ है। सर्वोच्च अदालत का वह विशेष और संवेदनशील कक्ष होता है, जहां की हवा ‘गैस चैंबर’ के हालात को भी लांघ गई थी। यह शर्मनाक स्थिति नहीं है, तो और क्या है? राजधानी दिल्ली की ‘प्रदूषित हवा’ का औसत सूचकांक 500 को पार कर चुका है। अब एक दिन ऐसा भी आएगा, जब सडक़ों पर ‘मास्कधारी आबादी’ ही दिखाई देगी, लिहाजा अब सर्वोच्च ...
गांवों में बदलता ऋण का स्तर

गांवों में बदलता ऋण का स्तर

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हमारे देश भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में ऋण का बढ़ता स्तर चिंता का विषय है।कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) ऐसी स्थिति के बावजूद दांव आजमाने की कोशिश करते हुए हालात को और जटिल बना रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ‘दबाव देकर दिए जाने वाले ऋण’ के बढ़ते मामले पर अब ध्यान देना शुरू किया है। ऐसे ऋणों की मार्केटिंग बेहद आक्रामक तरीके से ऐसे की जाती है कि ऋण लेने वाले इनके दीर्घकालिक वित्तीय परिणामों से वाकिफ नहीं हो पाते हैं। ऋण संकट के मूल कारणों में से एक, देश के ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का अभाव है। आर्थिक वृद्धि का लाभ भी पर्याप्त रूप से रोजगार सृजन में नहीं दिखा है, खासतौर पर गैर-कृषि क्षेत्रों में। ऋण की आसान पहुंच और चौबीस घंटे डिलिवरी सेवाओं के प्रसार से ग्रामीण क्षेत्रों में खपत की स्थिति बढ़ी है। लोगों को ...
ईसाई बनता जा रहा है हिंदू राष्ट्र रहा नेपाल – अनुज अग्रवाल

ईसाई बनता जा रहा है हिंदू राष्ट्र रहा नेपाल – अनुज अग्रवाल

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कभी दुनिया का एक मात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल बहुत तेज़ी से ईसाई देश में बदलता जा रहा है। लगभग आठ हज़ार चर्चों और बीस हज़ार दक्षिण कोरियाई व सिंगापुरी पादरियों ( क्योंकि इनके चेहरे मोहरे नेपालियों से मिलते जुलते होते हैं और ये आसानी से नेपाली समाज में घुल मिल जाते हैं।) की मदद से अमेरिकी सरकार चर्च के माध्यम से इस अहिंसक जीनोसाइड को अंजाम दे रहा है। कागजों में नेपाल में पाँच लाख भी कट्टर ईसाई नहीं यद्यपि चर्च की अंतरराष्ट्रीय ससंस्थाएँ स्वीकार करती हैं कि यह संख्या अब पंद्रह लाख हो चुकी है। लेकिन नेपाल के हर गाँव, क़स्बे और शहर के लोग दबी ज़ुबान आरोप लगाते हैं कि नेपाल का हर दूसरा परिवार ईसाईयत के प्रभाव में आ चुका है यानि आधी आबादी ईसाई हो चुकी है।नेपाल में ईसाई धर्मांतरण का खेल सन् 2015 के विनाशक भूकंप के बाद बहुत तेज़ी से प्रारंभ हुआ। आर्थिक रूप से टूटे नेपाल की पुष्पकमल दहल “प्रचंड” ...