कृत्रिम बौद्धिक शक्ति और भारत
विश्व में जिस चैट जीपीटी का बोलबाला है, वो चैट जीपीटी ने इन्सान को इतनी कृत्रिम बौद्धिक शक्ति प्रदान करती है| जिससे संकट दिख रहा है कि शायद मानव को अब मौलिक चेतना और बौद्धिक विकास की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। जब हर प्रश्न का जवाब गढ़ा-गढ़ाया चैट जीपीटी पर हो तो मानव अपनी बुद्धि को कष्ट क्यों देगा? अब चैट जीपीटी नेताओं को उनके भाषण, कवियों को उनकी कविताओं के उचित शब्द, नाटकों के संवाद और अध्यात्म के नये शब्द सुझा और समझा सकती है। संकट पैदा हो गया कि अगर ऐसा हो गया तो प्रखर चेतना वाले इन्सान क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्या उनकी मौलिक सृजनात्मक प्रतिभा के मुकाबले में यह यांत्रिक असाधारण क्षमता अवरोध बनकर खड़ी हो जाएगा|
जैसे किंडल के आगमन ने पुस्तक की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये थे। तब लगने लगा था कि अब पुस्तक का अस्तित्व मिट जायेगा व पत्र-पत्रिकाएं भी अप्रासंगिक हो जाएंगी जबकि ...