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साहित्य संवाद

तालिबानी हिंसा से कैसे बचेगी देवभूमि

तालिबानी हिंसा से कैसे बचेगी देवभूमि

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सभ्य देश में हलद्वानी जैसी हिंसा है अस्वीकार्य आचार्य विष्णु हरि सरस्वती हलद्वानी हिंसा के संदेश बहुत ही डरावने हैं, अमानवीय है, विखंडनकारी है, संविधान और कानून के शासन के लिए प्रतिकूल है, सामानंतर सरकार के प्रतीक है, गुडागर्दी के प्रतीक है, चोरी और सीनाजारी की कहानी कहती है, तालिबानी हिंसा की कॉपी लगती है, तालिबानी हिंसा की आहट सुनाई देती है। ऐसी हिंसा पर सिर्फ उत्तराखंड की सरकार को ही चिंतन की जरूरत नहीं है, ऐसी हिंसा पर पूरे देश को चिंता करने की जरूरत है, न्यायालयों को भी चिंता करने की जरूरत है। ऐसी हिंसा के नियंत्रण पर ठोस नीति बनाने की जरूरत है। सबसे बडी बात यह है कि ऐसी हिंसा सिर्फ अचानक घटती नहीं है बल्कि इसके पीछे साजिश होती है, तैयारी होती है, हिंसा के लिए जरूरी हथियार और ज्वलनशील पदार्थ एकत्रित किये जाते हैं, हिंसक मानसिकता का बीजारोपण कर हिंसा के लिए वातावरण तैयार...
पुस्तकों का मेला क्यों है अलबेला

पुस्तकों का मेला क्यों है अलबेला

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-ललित गर्ग - इंसान की ज़िंदगी में विचारों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। वैचारिक क्रांति एवं विचारों की जंग में पुस्तकें सबसे बड़ा हथियार है। लेकिन यह हथियार जिसके पास हैं, वह ज़िंदगी की जंग हारेगा नहीं। जब लड़ाई वैचारिक हो तो पुस्तकें हथियार का काम करती हैं। पुस्तकों का इतिहास शानदार और परम्परा भव्य रही है। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मार्गदर्शक हैं। पुस्तकें सिर्फ जानकारी और मनोरंजन ही नहीं देती बल्कि हमारे दिमाग को चुस्त-दुरुस्त रखती हैं। आज डिजिटलीकरण के समय में भले ही पुस्तकों की उपादेयता एवं अस्तित्व पर प्रश्न उठ रहा हो लेकिन समाज में पुस्तकें पुनः अपने सम्मानजनक स्थान पर प्रतिष्ठित होंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। पुस्तकों पर छाये धुंधलकों को दूर करने के लिये एवं पुस्तक की प्रासंगिकता को नये पंख देने की दृष्टि से लेखक, पुस्तक प्रेमी और प्रकाशकों का ’महाकुंभ’ यानी नई दिल्ली विश्व प...
<strong>बापू सेंट स्टीफंस कॉलेज से दलित बच्चों के साथ</strong>

बापू सेंट स्टीफंस कॉलेज से दलित बच्चों के साथ

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आर.के. सिन्हा महात्मा गांधी हमारे स्वाधीनता आंदोलन के सिर्फ नायक या समाज सुधारक मात्र ही नहीं थे। वे नौजवानों और विद्यार्थियों से मिलना-जुलना भी बेहद पसंद करते थे। वे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्लायों में लगातार जाया करते थे। वे पहली बार राजधानी दिल्ली 12 मार्च 1915 को आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही ठहरे। वे वहां पर सेंट स्टीफंस कॉलेज और हिन्दू कॉलेज के छात्रों और फेक्ल्टी से भी मिले। उनके तमाम सवालों के उत्तर दिए। उनसे दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से जुड़े बहुत सारे सवाल पूछे गए थे। उसके बाद वे 1918 में फिर दिल्ली आए तो पुनः सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही ठहरे। उन्हें यहां पर ब्रजकृष्ण चांदीवाला नाम के एक छात्र मिले जो आगे चलकर उनके पुत्रवत से हो गए। जब गांधी जी की 30 जनवरी, 1948 को हत्या हुई तो ब्रज कृष्ण चांदीवाला बिड़ला हाउस में ही थे...
<strong>आनन्दरामायण में स्पष्ट बताया गया हैं कि</strong> <strong>समस्त दस अवतारों में श्रीरामावतार ही श्रेष्ठ क्यों?</strong>

आनन्दरामायण में स्पष्ट बताया गया हैं कि समस्त दस अवतारों में श्रीरामावतार ही श्रेष्ठ क्यों?

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एक दिन भाईयों, पुत्रों, सीताजी तथा गुरु के साथ श्रीरामचन्द्रजी बैठे थे। प्रसंगवश हर्षित होकर श्रीराम कहने लगे, समस्त ऋषिगण, मेरे सब भाई, दोनों पुत्र, सीता, समस्त मन्त्री और माताएँ सब मेरी बात सुनें।यथा यथाऽवतारेऽस्मिन सुखं भुक्तं हि सीतया।न तथाऽन्येषु सर्वेषु ह्यवतारेषु वै कदा।।आनन्दरामायण राज्यकाण्डम् (उत्तरार्द्धम्) सर्ग २०-२१मैंने इस अवतार में सीता के साथ जितना सुख भोगा है, उतना किसी भी अवतार में नहीं भोगा। श्रीराम ने कहा कि उन्होंने अनेक कारणों से समय-समय पर अवतार लिए हैं, किन्तु उनकी कोई संख्या नहीं है। इतना होने के बाद भी उनके सात अवतार मुख्य हैं। श्रीराम ने अपने अवतारों को इस प्रकार बताया- आज से बहुत दिनों पूर्व महोदधि (समुद्र) में शंखासुर नामक दैत्य हुआ था जो सत्यलोक से चारों वेदों को चुरा ले गया था। उसके लिए उन्होंने मत्स्यरूप धारण किया और उसका वध करके विष्णु रूपधारी बन ग...
तभी अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण सार्थक होगा…..

तभी अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण सार्थक होगा…..

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*जब हम "रामराज्य" के मूल आदर्शों को संरक्षित करें, अपने भीतर श्री राम को जागृत करें।* "रामराज्य" की अवधारणा हमेशा भारत के आम लोगों के साथ गूंजती रही है। "रामराज्य" को आम तौर पर भगवान राम का शासन माना जाता है और अक्सर इसे प्रशासन का सबसे अचूक रूप माना जाता है। स्वतंत्रता के समय, यही अवधारणा महात्मा गांधी द्वारा गढ़ी गई थी जब वह भारतीयों द्वारा शासित भविष्य के भारत की कल्पना कर रहे थे। वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में बात कर रहे थे जहां शासक लोगों की खुशी के लिए शासन करेंगे। ऐसी व्यवस्था जहां सभी के लिए समान अधिकार होंगे, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो, और हिंसा न्याय प्राप्त करने का माध्यम नहीं हो सकती। आज देश-दुनिया में शत्रुतापूर्ण ताकतों के अशुभ जमावड़े को देखते हुए इसके लिए जबरदस्त प्रयास की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन यह हमारा सच्चा लक्ष्य है जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। यदि ह...
स्कूली शिक्षा की चुनौतियों को गंभीरता से लेना होगा

स्कूली शिक्षा की चुनौतियों को गंभीरता से लेना होगा

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-ललित गर्ग- नया भारत एवं विकसित भारत को निर्मित करने का मुख्य आधार शिक्षा है, लेकिन भारत की ग्रामीण शिक्षा को लेकर आयी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ग्रामीण) 2023 चिन्ताजनक एवं चुनौतीपूर्ण है। इस सर्वे में ग्रामीण भारत में छात्रों की स्कूली शिक्षा और सीखने की स्थिति की तस्वीर बयां की गई है, ग्रामीण शिक्षा की इन निराशाजनक स्थितियों पर गौर करना जरूरी है। यह सर्वे 26 राज्यों के 28 जिलों में किया गया और 34,745 युवाओं तक इस सर्वे की पहुंच रही। ग्रामीण छात्रों ने जो तथ्य एवं सच्चाई व्यक्त की है, उसके अनुसार 14 से 18 आयु वर्ग के बच्चे अपनी क्षेत्रीय भाषा में दूसरी कक्षा के स्तर तक का पाठ नहीं पढ़ पाते। इस उम्र के तीसरी-चौथी क्लास के गणित के सामान्य से प्रश्नों को हल न कर सकें तो यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती। ग्रामीण युवाओं की पसंद विज्ञान एवं तकनीकी विषयों की बजाय आर्ट्स विषय ही हो...
राम मंदिर: सियासी मंच या आस्था का उत्सव

राम मंदिर: सियासी मंच या आस्था का उत्सव

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राजनीति अपनी जगह है लेकिन राम मंदिर करोडों भारतीयों के लिए आस्था का विषय है। राजनीति कैसे साधारण विषयों को भी उलझाकर मुद्दे में तब्दील कर देती है, रामजन्मभूमि का विवाद इसका उदाहरण है। आज के भारत का मिजाज़, अयोध्या में स्पष्ट दिखता है। आज यहां प्रगति का उत्सव है, तो कुछ दिन बाद यहां परंपरा का उत्सव भी होगा। आज यहां विकास की भव्यता दिख रही है, तो कुछ दिनों बाद यहां विरासत की भव्यता और दिव्यता दिखने वाली है। अयोध्या में राममंदिर का निर्माण तथा भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हमारी गौरवशाली आस्था के क्षण है और वर्तमान पीढ़ी बेहद भाग्यशाली है, जो इन ऐतिहासिक क्षणों की साक्षी बनने जा रही है। सोचे तो राममंदिर सबका है क्योंकि राम किसी के साथ भेदभाव नहीं करते है, राम सबके है। लेकिन यह बात बार-बार इसलिए दोहराई जा रही है ताकि राम मंदिर आंदोलन से लेकर निर्माण तक भाजपा को जो श्रेय मिल रहा है उसे क...
<strong>विश्व हिन्दी दिवस- 10 जनवरी 2024 पर विशेष</strong>

विश्व हिन्दी दिवस- 10 जनवरी 2024 पर विशेष

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हिन्दी है राष्ट्रीयता की प्रतीक भाषा, फिर उपेक्षा क्यों?-ललित गर्ग-विश्व हिन्दी दिवस मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में फैले हिंदी जानकारों को एकजुट करना, हिन्दी को विश्व स्तर पर स्थापित एवं प्रोत्साहित करना और हिंदी की आवश्यकता से अवगत कराना है। अंग्रेजी भाषा भले ही दुनियाभर के कई देशों में बोली है और लिखी जाती है. लेकिन हिंदी हृदय की भाषा है। विश्व योग दिवस, विश्व अहिंसा दिवस आदि भारतीय अस्मिता एवं अस्तित्व से जुड़े विश्व दिवसों की शृंखला में विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। ताकि विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा हो तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिले। विश्व हिंदी दिवस पहली बार 10 जनवरी, 2006 को मनाया गया था। आज हिन्दी विश्व की सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली तीसरी भाषा है, विश्व में हिन्दी की प्रतिष्ठा एवं प्रयोग दिनोंदिन बढ़त...
लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसना शर्मनाक

लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसना शर्मनाक

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लोक गायकों के नाम पर अश्लील लिंक्स से सोशल मीडिया बाजार भरा पड़ा है। कई चैनलों पर भी इस तरह के गीतो का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है। गीत बिकवाने की होड़, व्यूज और लाइक्स के जरिए पैसा कमाने की लालसा, इन सबने पहले ही संस्कृति व विरासत धूमिल कर डाली है क्योंकि गीत संगीत ही एक ऐसा माध्यम होता है जो समाज को संदेशो का पैगाम देती है। आज ये पैगाम अपनी दिशा बदल चुके हैं। विभिन्न बस स्टेशनों, चलने वाले विभिन्न जीप-कार, बसों में जो गीत सुनने को मिलते हैं उनमें छिछोरापन व लम्पटीकरण का अंदाज साफ झलकता है। इन गीतों का श्रवण विशेषकर युवा वर्ग आनंदपूर्वक करता है। कई अवसरों पर शादी-व्याह आदि उत्सवों में कुछ बुजुर्ग जन भी इस तरह के गीतों पर जमकर ठुमके लगाते हैं। सांस्कृतिक परम्परा पर चिंतन करने वाले लोग इसे लोक संगीत पर गहरी ठेस मानते हैं। आशिकी अंदाज के साथ पाश्चात्य ...
बिहार जाति जनगणना

बिहार जाति जनगणना

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*************************ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं**~ठग्गू के कद्दू - नीतीश पटना वाले*तो जनाब आइए बताता हूं पराभव की कहानी भारत में अधिकतम मेधावी दिमाग वाले राज्य बिहार की कहानी। भारत स्वतंत्र हुआ तबसे लेकर आज तक बिहार कमोबेश 1947 की स्थिति में ही है। संयुक्त बिहार के बारे में प्रसिद्ध था कि पूरे देश को Labour, Mineral व Officer सबसे ज्यादा बिहार से मिलता है। मिनरल गया झारखंड में,ऑफिसर बनने भी कम हो गए, और बच गए *Labour* और इसकी सप्लाई निर्बाध जारी है। मेधावी मस्तिष्क पलायन कर देश तो देश पूरे विश्व के कोने कोने में भाग कर बस गए। *आज बस बिहारी श्रेष्ठता बोध लिए भव्य अतीत के खंडहरों का थोथा गान करने के अलावा बिहारियों के पास कुछ नहीं है।* वर्तमान में बिहार के पास अगर कुछ है तो देश भर के शहरों,महानगरों में झुग्गियों में कीड़ों की तरह बिजबिजाते मजदूर,झुग्गियों से थोड़ा बेहतर कबू...