
प्रारंभिक शिक्षा तो मातृभाषा में ही हो
निश्चित रूप से भाषा धरती की होती है, न किकिसी धर्म या फिरके की। पर इस छोटे से तथ्य की लम्बे समय से अनदेखी होती रही है। इसके अनेकों घातक परिणामभी सामने आए हैं। इसी तरह से किसी धर्म या वर्ग विशेष के ऊपर कभी कोई भाषा को थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। बल्कि, हर बच्चे को उसकी अपनीमातृभाषा में पढ़ने का स्वाभाविक अधिकार मिलना चाहिए। याद रखा जाना चाहिए कि बच्चा अपनी मातृभाषा में सबसे आराम से किसी भी तरह की पढाई सीखता है,किसी भी तरह के ज्ञान को ग्रहण करता है।
अच्छी बात यह है कि भारत में सभी जुबानों के प्रसार- प्रचार में सरकार सक्रिय रहती है। इसलिए भारत में भाषा के सवाल लगभग सर्वमान्य हो गए हैं। पर बीच-बीचमें कुछ राज्यों में कभी –कभी हिन्दी विरोधी स्वर सुनाई देने लगते हैं। हालांकि, हिन्दी को अब कहीं कोई थोप नहीं रहा। हिन्दी स्वाभाविक रूप से सर्वग्राह्य देश कीसर्वमान्य बोलचाल की भाषा के रूप में उभ...