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मतई वर्ग भी पीड़ित है, इन्हें भी सुरक्षा व न्याय चाहिए ?

मतई वर्ग भी पीड़ित है, इन्हें भी सुरक्षा व न्याय चाहिए ?

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आचार्य विष्णु हरि सरस्वती मणिपुर की हिंसा पर एंकाकी चर्चा और विमर्श नहीं हो रहा है? क्या मणिपुर की हिंसा की चर्चा व विमर्श संपूर्णता में नहीं होनी चाहिए? क्य सिर्फ हिंसा के लिए आरक्षण ही एक मात्र कारण है?मणिपुर हिंसा के लिए क्या सिर्फ मतई वर्ग ही जिम्मेदार है? क्या कूकी मॉब जिम्मेदार नहीं है? क्या कूकी वर्ग को म्यांमार से लाकर एक साजिश के तहत मणिपुर में नहीं बसाया गया था? क्या सिर्फ कूकी वर्ग की महिलाओं के साथ अपमान और हनन जैसी घटनाएं हुई हैं? क्या मतई वर्ग की महिलाओं के साथ ऐसी अपमान जनक और हनन वाली घटनाएं नहीं हुई हैं? क्या कूकी लोगों ने अपनी बहुलता वाले गांवों और क्षेत्रों से मतई लोगों का संहार नहीं किया है, या फिर उन्हें नहीं खदेड़ा है? क्या कूकी लोगों ने मतई वर्ग के व्यापारिक और शैक्षणिक सहित अन्य धार्मिक स्थलों को आग के हवाले नहीं किया है? क्या चर्च की इसमें भूमिका नहीं है? क्...
मेरी माटी-मेरा देश, मन की बात या उपदेश

मेरी माटी-मेरा देश, मन की बात या उपदेश

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 सोचिये क्या हमारे देश के नायकों को बेशर्म इंस्टाग्राम प्रभावकों, राजनेताओं, अभिनेता और अभिनेत्री की तुलना में सम्मानित किया गया और पर्याप्त धन दिया गया? यह मत भूलो कि हमारे देश की रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में भाग लेने वाला एक जवान उसी देश में अपनी पत्नी की रक्षा करने में सक्षम नहीं हो सका। इसके लिए देश को  को जवाबदेह होना चाहिए? सबसे पहले हम अग्निवीर लाकर सशस्त्र बलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसमें किसी भी चीज की कोई गारंटी नहीं है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई देश के लिए मर जाएगा? जब आप सशस्त्र बलों में एक साधारण नौकरी की सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते। वास्तव में आप इन शहीद परिवारों को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो इस अभियान के दौरान आप सैनिक परिवारों और भविष्य के सैनिकों के मन की बात सुनकर एक योजना बनाइये और साथ ही देश की सभी महत्वपू...
ज्ञानवापी मंदिर के बारे मे विस्तृत जानकारी।

ज्ञानवापी मंदिर के बारे मे विस्तृत जानकारी।

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पुराणों के अनुसार, ज्ञानवापी की उत्पत्ति तब हुई थी जब धरती पर गंगाजी नहीं थी तब भगवान शिव ने स्वयं अपने अभिषेक के लिए त्रिशूल चलाकर जल निकाला। यही पर भगवान शिव ने माता पार्वती को ज्ञान दिया। इसीलिए, इसका नाम ज्ञानवापी पड़ा और जहां से जल निकला उसे ज्ञानवापी कुंड कहा गया। ज्ञानवापी का उल्लेख हिंदू धर्म के पुराणों मे मिलता है तो फिर ये मस्जिद के साथ नाम कैसे जुड़ गया?वापी का अर्थ होता है कूप, बावडी़ । ज्ञानवापी का सम्पूर्ण अर्थ है ज्ञान का तालाब। काशी की छः वापियों का उल्लेख पुराणों मे भी मिलता है।पहली वापी: ज्येष्ठा वापी, जिसके बारे मे कहा जाता है की ये काशीपुरा मे थी, अब लुप्त हो गई है।दूसरी वापी: ज्ञानवापी, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के उत्तर मे है।तीसरी वापी: कर्कोटक वापी, जो नागकुंआ के नाम से प्रसिद्ध है।चौथी वापी: भद्रवापी, जो भद्रकूप मोहल्ले मे है।पांचवीं वापी: शंखचूड़ा वापी, लुप्त हो...
सीमा और अंजू के प्रेम कहानी में पाक की चाल तो नहीं

सीमा और अंजू के प्रेम कहानी में पाक की चाल तो नहीं

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आर.के. सिन्हा आजकल सोशल मीडिया पर सीमा और अंजू की मोहब्बत से जुड़ी कहानियों को चटकारे लगाकर पेश किया जा रहा है। पर इस तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि कहीं इन दोनों के कथित इश्क में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों का कोई रोल तो नहीं है। ये आप सभी जानते हैं कि सीमा एक पाकिस्तानी महिला है। उसका ग्रेटर नोएडा के सचिन नाम के नौजवान से सोशल मीडिया पर इश्क का परवान चढ़ा तो वो अपना वतन और शौहर को छोड़कर नेपाल होते हुए अपने प्रेमी के पास आ गई। वो अपने साथ अपने बच्चों को भी ले आई।   उधर, राजस्थान के भिवाड़ी में रहने वाली दो बच्चों की मां अंजू पाकिस्तान चली गई अपने प्रेमी से मिलने। वहां उसने निकाह के बाद इस्लाम धर्म को कुबूल भी कर लिया । अब अंजू हो गई है फातिमा। अंजू की फेसबुक के जरिये पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रान्त में रहने वाले 29 साल के नसरूल्लाह से दोस्ती हुई थी, यह बत...
इस्लाम की लम्बी सोच

इस्लाम की लम्बी सोच

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--------- ------- ----- कोई भी विचार जो १४०० साल पुराना है, उसे हमें लम्बी सभ्यतागत दृष्टि में ही समझना होगा। जिस तरह भारत एक सभ्यतागत राष्ट्र है, उसी तरह इस्लाम एक सभ्यतागत शक्ति है और इसे उसी प्रकार से समझा जाना चाहिए। मुसलमान यह कहते हैं कि ‘इस्लाम कभी नहीं हारा’। दुखद बात यह है कि एक देश को छोड़कर यह सच है। लेकिन इसका क्या अर्थ है? कि इस्लामी सेनाएँ कभी नहीं हारी? कि युद्ध के मैदान में शत्रु उनसे कभी नहीं जीते? कि उनके इतिहास में कभी बुरे साल या दशक नहीं आये? नहीं, ऐसा नहीं है। पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद अरब से बाहर निकलते ही इस्लामी सेनाएं पूर्व में भारत के द्वार पर पहुंच गईं और पश्चिम में स्पेन में यूरोप के दरवाजे खटखटाने लगीं।ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस समय के दो महान साम्राज्यों ने लगभग तुरंत ही इस्लाम के सामने घुटने टेक दिए। उस समय के सबसे महान साम्राज्यों में से एक, फ...
नई शिक्षा नीति के तीन वर्ष और उच्च शिक्षा : न्यू नार्मल में एब्नार्मल

नई शिक्षा नीति के तीन वर्ष और उच्च शिक्षा : न्यू नार्मल में एब्नार्मल

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- अनुज अग्रवाल अभी हाल ही में मैं अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी के बारे में अपने परिचित से जानकारी ले रहा था जो वहाँ पढ़ रहा है।अमेरिका की टॉप 20 यूनिवर्सिटी में शामिल लगभग छ: हज़ार एकड़ में फैली इस यूनिवर्सिटी में तीन सौ से अधिक रिसर्च सेंटर व संस्थान हैं जिनमे 67 हज़ार से भी अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। फ़ीस के अतिरिक्त यूनिवर्सिटी के पास इतने प्रोजेक्ट कारपोरेट सेक्टर व सरकारों से आ जाते हैं कि वह पूर्णत: आत्मनिर्भर है। यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले एक छात्र के अनुसार " Great school with good professors, world class infrastructure , library & labs, fun social life, and lots of school spirit, excellent achievements of our people and for their contributions to society in the pursuit of education, research, and health care.Admission strictly on merit basis. Placement is good and The avera...
28 जुलाई 1891 : सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और समाजसेवी ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन

28 जुलाई 1891 : सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और समाजसेवी ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन

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भारतीय शिक्षण परंपरा और नारी सम्मान का अद्भुत अभियान चलाया --रमेश शर्मा उन्नीसवीं शताब्दी का आरंभ अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षा, संस्कृति, परंपरा और समाज के मानसिक दमन के अभियान का समय था । गुरुकुल नष्ट कर दिये गये थे, चर्च और वायबिल आधारित शिक्षा आरंभ करदी थी । ऐसे किसी ऐसे व्यक्तित्व की आवश्यकता थी । जो भारतीय समाज में आत्मविश्वास जगाकर अपने स्वत्व से जोड़ने का अभियान छेड़े। यही काम सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, समाजसेवी ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने किया ।अंग्रेजों ने भारत की मूल संस्कृति, शिक्षा, समाज व्यवस्था और आर्थिक आत्मनिर्भरता को नष्ट करने में हीशअपनी सत्ता का सुरक्षित भविष्य समझा और इसकी तैयारी 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के साथ ही तैयारी आरंभ कर दी थी और 1773 के बाद चर्च ने भारत के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और मानसिक दमन के लिये बाकायदा सर्वे किया और 1806 में दिल्ली पर अधिकार कर...
निजी चार्टर सेवा पर इतनी मेहरबानी क्यों?

निजी चार्टर सेवा पर इतनी मेहरबानी क्यों?

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*रजनीश कपूरपिछले सप्ताह हमने देश के नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की लापरवाही का एक उदाहरण दिया था जहांडीजीसीए एक निजी एयरलाइन की ग़लतियों को अनदेखा कर रही थी। देर से ही सही पर डीजीसीए जागी ज़रूर। परंतु देशके नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन अन्य विभागों के कुछ अधिकारी भारत की एक निजी चार्टर सेवा पर कुछ विशेषमेहरबानियाँ कर रहे हैं। इन मेहरबानियों के चलते अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ हो रहा है।एआर एयरवेज़ नाम की एक निजी एयर चार्टर कंपनी यह खिलवाड़ कर रही है। इस कंपनी की सेवाओं का उपयोग करनेवाले अति विशिष्ट यात्रियों को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं है कि किस तरह उनके जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। इसकंपनी की सेवाओं का उपयोग उद्योगपतियों, राजनेताओं, नौकरशाहों, फिल्मी सितारों व अन्य मशहूर हस्तियों द्वारा कियाजाता है। या इस कंपनी के मालिक अशोक चतुर्वेदी नियमों की धज्जियाँ उ...
और बेहतर होते भारत -श्रीलंका संबंध !

और बेहतर होते भारत -श्रीलंका संबंध !

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विश्व के दो प्रमुख देशों अमेरिका और फ्रांस के बाद अब भारत और श्रीलंका के संबंधों में मजबूती देखने को मिल रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि आर्थिक संकटों का सामना करने के बाद पिछले दिनों ही श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 20-21 जुलाई  2023 को दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आए थे। श्रीलंका के आर्थिक संकट का सामना करने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा थी। वास्तव में,श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, जिन्होंने बतौर श्रीलंका के राष्ट्रपति अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है,की भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंध पहले से कहीं और अधिक मजबूत हुए हैं। दरअसल, दोनों देशों ने हाल ही में समग्र आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर जोर देने के साथ साथ ही अनेक मामलों पर अहम बातचीत की है। विक्रमसिंघे की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण  रही है क्यों कि विक्रमसिंघे ने चीन न जाकर भा...
दबाव समूह और आंदोलन

दबाव समूह और आंदोलन

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दबाव समूह ऐसे संगठन हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। दबाव समूहों का लक्ष्य राजनीतिक सत्ता को सीधे नियंत्रित करना या साझा करना नहीं है। ये संगठन तब बनते हैं जब समान व्यवसाय, रुचि, आकांक्षाएं या राय वाले लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ आते हैं। जबकि आंदोलन चुनावी प्रतिस्पर्धा में सीधे भाग लेने के बजाय राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करता है। आंदोलनों का एक ढीला-ढाला संगठन होता है. उनकी निर्णय लेने की क्षमता अधिक अनौपचारिक और लचीली है। वे स्वतःस्फूर्त जनभागीदारी पर अधिक निर्भर हैं। काफी समय से इन समूहों पर ध्यान नहीं दिया गया लेकिन अब राजनीतिक प्रक्रिया में इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो चुकी है क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में परामर्श, समझौते एवं कुछ हद तक सौदे के आधार पर राजनीति चलती है। सरकार के लिए यह अतिआवश्यक है कि वह नीति-निर्माण एवं...