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भारतीय संसद – लोकतंत्र का मंदिर

भारतीय संसद – लोकतंत्र का मंदिर

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भारतीय संसद - लोकतंत्र का मंदिर हमारे संविधान ने हमें शासन की संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था दी है। जब भारत में इस व्यवस्था की नींव राखी गई, तो कई लोग ये सोचते थे कि भारत की भयावह गरीबी, व्यापक निरक्षरता, विशाल और बहुआयामी आबादी के साथ जाति, पंथ, धर्म और भाषा की विविधता को देखते हुए लोकतंत्र भारत के लिए उपयुक्त नहीं होगा। निराशावाद के वे सभी समर्थक गलत साबित हुए हैं। 26.01.1950 को हमारे संविधान के गठन के बाद से इन सभी वर्षों में काम करने वाला भारत का संसदीय लोकतंत्र समय की कसौटी पर खरा उतरा है और एक कार्यशील लोकतंत्र के रूप में बना हुआ है। भारतीय जनता के विशाल मतदाताओं ने जब भी आवश्यकता होती है, 'जिम्मेदारी और अदम्य ज्ञान' की भारी भावना के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण दुनिया को दिखाया है, उन्होंने अपने मत का इस्तेमाल सत्ता में एक पार्टी को उखाड़ फेंकने के लि...
खेलों में भारत के बढ़ते कदम, 61 पदकों के साथ बना खेल महाशक्ति

खेलों में भारत के बढ़ते कदम, 61 पदकों के साथ बना खेल महाशक्ति

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खेलों में भारत के बढ़ते कदम, 61 पदकों के साथ बना खेल महाशक्ति आर.के. सिन्हा यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं हैं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजनों में भारत की लगभग सांकेतिक उपस्थिति ही रहा करती थी। हम हॉकी में तो कभी-कभार बेहतर प्रदर्शन कर लिया करते थे, पर शेष खेलों में हमारा प्रदर्शन औसत से नीचे या खराब ही रहता था। हमारे खिलाड़ियों- अधिकरियों की टोलियां वहां पर जाकर मौज-मस्ती करके वापस आ जाया करती थी। हिन्दुस्तानी खेल प्रेमियों की निगाहें तरस जाती थीं कि एक अदद पदक को देखने के लिए। पर गुजरे दशक से स्थितियां तेजी से बदल रही हैं खासकर मोदी सरकार के आने के बाद। सबसे बड़ी बात ये है कि हम बैडमिंटन में विश्व चैंपियन बनने लगे हैं, हमारा धावक ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतता है और क्रिकेट में तो हम विश्व की सबस बड़ी शक्ति हैं ही। इस कामनवेल्थ गेम में 22 स्वर्ण पदकों सहित कुल 61 पदकों...
बोथ पैरेंट्स वर्किंग सिन्ड्रोम (बी पी डब्ल्यू एस)

बोथ पैरेंट्स वर्किंग सिन्ड्रोम (बी पी डब्ल्यू एस)

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बोथ पैरेंट्स वर्किंग सिन्ड्रोम (बी पी डब्ल्यू एस) समाज में जब भी परिवर्त्तन की स्थिति बनती है तो उस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा वो प्रभावित होते हैं जो लोग अपनी अधिकांश जरूरतों के लिए किसी और पर निर्भर होते हैं जैसे कि स्त्रियाँ, बच्चे और बुजुर्ग। घर, कार्य स्थल, समाज और देश में परिवार के इन तीन सदस्यों को अपनी सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए किसी न किसी रूप में अनन्योश्रित होना पड़ता है। स्त्रियाँ घर में अपनी जगह तो कभी अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए अपने पति, अपने सास-ससुर और कभी-कभी अपने बच्चों तक पर निर्भर रहती हैं। कार्य स्थल पर अपनी वाज़िब प्रोन्नति के लिए भी अपने बॉस तो कभी सहकर्मियों का सहारा लेती हुई देखी जा सकती हैं। समाज में अपनी हैसियत और पहचान के लिए समाज के धार्मिक और राजनीतिक ढाँचों में इन्हें अपनी "आइडेंटिटी" तलाश करनी पड़ती है। और अपने ही देश में अपने...
कितने सच है अफसरों पर जवानों की आत्महत्या के आरोप ?

कितने सच है अफसरों पर जवानों की आत्महत्या के आरोप ?

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कितने सच है अफसरों पर जवानों की आत्महत्या के आरोप ? आखिर क्यों दुश्मन की छाती चीरने वाले बन जाते है अपनी ही जान के दुश्मन। सुरक्षाबलों के प्रशिक्षण के दौरान उन्हें तनाव से निपटने के तरीके बताने चाहिए व म्यूजिक थेरेपी, योग, ध्यान, प्राणायाम जैसे उपायों को पुरजोर अपनाना चाहिए।  पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों कि यह जिम्मेवारी बने कि वे कर्मचारियों की समस्याएं सुने तथा उन्हें सुलझाने का प्रयास करें ताकि बातचीत के द्वारा जवानों की परेशानी समय पर दूर हो सके। सुरक्षाबलों में ऐसे सख्त कानून बनाए जाएं जिनसे अफसरों के द्वारा चेतावनी के तौर पर जवानों से लिए जा रहे घरेलू कामों पर रोक लगे और उनके आत्म सम्मान को ठेस न पहुंचे। -प्रियंका 'सौरभ' राजस्थान राज्य के राजगढ़ क्षेत्र के गाँव घणाऊ के सीआरपीएफ सब इंस्पेक्टर विकास वर्मा के बाद अब राजस्थान के जोधपुर में स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस ब...
नेडी के बाद अब आबे को भी याद रखेगा भारत

नेडी के बाद अब आबे को भी याद रखेगा भारत

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नेडी के बाद अब आबे को भी याद रखेगा भारत आर.के. सिन्हा भारत के परम मित्र और हितैषी जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की जापान के एक छोटे से शहर में रेलवे स्टेशन के बाहर लगभग सौ लोगों की एक छोटी सी सभा को संबोधित करते हुए 8 जुलाई को गोली मारकर हत्या की दिल दहलाने वाली घटना ने अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एक. कैनेडी की 22 नवंबर,1963 को डलास हुई में हत्या की यादें ताजा कर दी हैं। कैनेडी की तरह भारत अब शिंजो आबे को भी सदैव अपने एक सच्चे मित्र के रूप में याद रखेगा। अजीब इत्तिफाक है कि भारत को चाहने वाले दो देशों के शिखर नेताओं का अंत इतने भयावह रूप में हुआ। निश्चित रूप से शिंजो आबे के आकस्मिक निधन से भारत-जापान संबंधों का एक मजबूत स्तंभ गिर गया है। वे जापान के प्रधानमंत्री के रूप में चार बार भारत आए। उन्हें भारत ने भी दिल खोलकर प्रेम-सम्मान दिया। जिस विरासत को सहेजकर रखने की जिम्मेदारी आबे को...
महंगी होती खाद से खेती करना मुश्किल

महंगी होती खाद से खेती करना मुश्किल

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महंगी होती खाद से खेती करना मुश्किल -प्रियंका 'सौरभ' उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वरक खेतों की उर्वरता बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत अपनी उर्वरक आवश्यकताओं के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारत में उर्वरकों की वर्तमान लागत एक खनिज संसाधन-गरीब देश के लिए वहन करने के लिए बहुत अधिक है। 2021-22 में, मूल्य के संदर्भ में, सभी उर्वरकों का आयात $ 12.77 बिलियन के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू गया। भारत द्वारा उर्वरक आयात का कुल मूल्य, घरेलू उत्पादन में उपयोग किए गए इनपुट सहित, 2021-22 में $ 24.3 बिलियन का विशाल मूल्य था। उर्वरकों की उच्च लागत के कारण देखे तो उर्वरकों का न केवल आयात किया जाता है, बल्कि भारतीय किसान भी आयातित आदानों का उपयोग करके आयात या निर्माण की लागत से कम का भुगतान करते हैं। अंतर का भुगतान सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप में किया जाता है। महंगा कच्चा माल भी काफ...
सामाजिक समरसता व नारी सशक्तीकरण का अदभुत संदेश

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सामाजिक समरसता व नारी सशक्तीकरण का अदभुत संदेश भारत की भावी राष्ट्रपति आदिवासी महिला - द्रौपदी मुर्मू मृत्युंजय दीक्षित केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राजग गठबंधन की सरकार ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर सामाजिक समरसता व नारी सशक्तीकरण का अदभुत संदेश दिया है जिससे आदिवासी समाज व महिलाओं के बीच प्रसन्नता की लहर दौड़ गई है। संसद व विधानसभाओं की अंकगणित के अनुसार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत महज औपचारिकता भर रह गयी है क्योंकि उन्हें ओड़िशा की बीजू जनता, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस और बहन मायावती का समर्थन भी मिल चुका है। द्रौपदी मुर्मू छह साल तक झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं इसलिए झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा सहित एनडीए में शामिल रहे सभी वर्तमान तथा पूर्व घटकों का सहयोग भी उन्हें मिलने जा रहा ह...
क्यों अग्निवीर उठ खड़े है सरकार की अग्निपरीक्षा लेने को ?

क्यों अग्निवीर उठ खड़े है सरकार की अग्निपरीक्षा लेने को ?

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क्यों अग्निवीर उठ खड़े है सरकार की अग्निपरीक्षा लेने को ? (प्रदर्शनकारी पूछ रहे हैं कि वे चार साल बाद क्या करेंगे? उन उम्मीदवारों का क्या होगा जिन्होंने दो साल से शारीरिक और चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण की और लिखित परीक्षा की प्रतीक्षा कर रहे थे।  यही 4 साल होते हैं जब बच्चे आगे पढ़कर करियर बनाते हैं, 4 साल बाद क्या करेंगे? सिक्योरिटी गार्ड, ग्रुप डी ? क्यूंकि पढ़ाई तो छोड़ चुके होंगे, वापिस आकर कितने पढ़ेंगे? ) -प्रियंका 'सौरभ' भले ही अग्निपथ योजना को बेरोजगारी कम करने वाली योजना बताया जा रहा हो पर योजना पर गौर करने पर पता चलता है कि यह योजना वेतन और पेंशन के बोझ को कम करने के लिए लाई गई है। सेना में अहम् पदों पर रहने वाले कुछ पूर्व सैनिकों ने इस योजना पर चिंता भी जताई है। कई सैनिकों ने विभिन्न अख़बारों में लिखे लेख में इस योजना इंडियन  आर्मी रिक्रूटमेंट 2022 से समाज के सैन्यीकरण को घातक बताय...
Not Clash of Civilisations … – World War@Ukraine

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Sometimes the phrase 'Clash of civilisations' comes to mind when describing the conflict in Ukraine, but in reality it is a clash of Globalism versus Nationalism. Globalism is a one size fits all, thinking, and action initiated by global elites that use the power of their nations and institutions with help of the media to dominate and control the world as much as they can for their personal benefit. Communities, societies, civilisations and nations are all being sought to be brought under the yoke of this totalitarian regime called 'Globalism'. The Globalists are the ones who have taken over most countries starting with Europe and America and now marching on to take control of the whole world. Ukraine is but a flash point in an ongoing world war, with the conquered, converted,...