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चुनाव सुधार : बस, चार कदम चलना होगा

चुनाव सुधार : बस, चार कदम चलना होगा

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  जनगणना-2011 के अनुसार, कुल भारतीय ग्रामीण आबादी में से 74.5 प्रतिशत परिवारों की आय पांच हजार रुपये प्रति माह से कम है। इसके विपरीत भारत की वर्तमान केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के 78 मंत्रियों में से 76 करोड़पति हैं। राज्य विधानसभाओं के 609 मंत्रियों में से 462 करोड़पति हैं। स्पष्ट है कि भारत की जनता गरीब है, किंतु वह जिन्हे चुनकर भेज रही है, वे अमीर हैं। आम भारतीय इरादतन अपराधी नहीं है। किंतु भारत सरकार की केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के 78 मंत्रियों में से 24 के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। राज्य सरकारों के 609 मंत्रियों से 210 मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इसका मतलब है कि गैर अपराधी जनता करीब-करीब 33 प्रतिशत अपराधियों को चुनकर भेज रही है।    उक्त चित्र, लोकतंत्र की मूल आस्था के विपरीत है। उक्त चित्र के मद्देनजर भारत में चुनाव सुधार का मुख्य मुद्दा फिलहाल एक ही है कि चुनाव में बाहुबल और धनबल क...
Palaniswami winning vote of confidence in TN

Palaniswami winning vote of confidence in TN

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AIADMK politics in Tamilnadu revolves for real follower and political heir of J Jayalilatha. Big question how Sasikala can claim to be political heir of J Jayalalitha when she did not object to O Paneerselvan taking charge as Chief Minister of Tamilnadu during illness of J Jayalalitha. Moreover before going to jail following the Supreme Court verdict on 16.02.2017, he took back withdrawal of her close relatives from the party who were expelled about five years back by none other than J Jayalalitha herself. All this proves that Sasiskala in no way is political heir of J Jayalalitha. Palaniswami winning confidence vote as Chief Minister of Tamilnadu on 18.02.2017 through MLAs supporting him brought direct to the state-assembly for floor-test from the resort where they were kept as hostages, ...
The unbridled audacity of our babus

The unbridled audacity of our babus

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The Indian bureaucracy is notorious for inventing outrageous ways of self-aggrandisement. However, nothing demonstrates its unbridled audacity for disregarding all civilised norms of probity than the disreputable Non Functional Upgrade (NFU) scheme. One must doff one’s hat to the ingenuity of the bureaucracy to loot the nation. Simultaneously, the political leadership needs to be pitied for a total lack of spine to check this blatant delinquency. Bureaucracy rules the roost.   The Sixth Central Pay Commission, in its March 2008 report, recommended introduction of NFU to reward civil servants of 49 ‘Organized Central Group A Civil Services’ with automatic time-bound pay promotions till the Higher Administrative Grade. Subsequently, it was made applicable to the IPS and the Indian...
चुनावी अनुष्ठान में अनिवार्य मतदान जरूरी क्यों?

चुनावी अनुष्ठान में अनिवार्य मतदान जरूरी क्यों?

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उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर मतदाता को अपने भाग्य का फैसला करने का अधिकार मिला है। यदि मतदाता सशक्त  और स्वस्थ लोकतंत्र चाहता है तो उसे कम-से-कम मतदान में उत्साह का प्रदर्शन करना होगा और अधिकतम मतदान को संभव बनाना होगा। मतदान के प्रति मतदाता की उदासीनता ने ही लोकतंत्र को कमजोर बनाया है। अनेक मोर्चाें पर अधिकतम मतदान के लिये प्रयास किये जा रहे हैं, विशेषतः युवापीढ़ी इसके लिये जागरूक हुई है यह एक शुभ संकेत है। यही कारण है कि विधानसभा चुनावों के पहले चरण में पंजाब और गोवा में क्रमशः 78.6 और 83 प्रतिशत मतदान हुआ। इसके लिए चुनाव आयोग और ‘आओ मतदान करे’-अभियान से जुडे़ विभिन्न पक्ष बधाई के पात्र है। चुनाव आयोग को तो इसके लिये व्यापक प्रयत्न करने ही होंगे, जैसाकि इस बार उसने गोवा में पहली बार मतदान करने वाली लड़कियों को टैडी बियर और लड़कों को पेन बां...
हिंदू फारसी तो दलित गैर संवैधानिक शब्द

हिंदू फारसी तो दलित गैर संवैधानिक शब्द

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आज हमारे देश में दो शब्दों को लेकर समाज में एक बड़ी भ्रांति फैली हुई है। पहला हिंदू और दूसरा दलित। ये दोनों शब्द समाज की संरचना में दो विपरित ध्रुव के वाहक के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए है। दो अलग-अलग ध्रुवों की पहचान के चलते ही ये दोनों शब्द न केवल समाजगत बाधाओं में उलझे हुए है बल्कि समय-समय पर विवाद के रूप में भी सामने आए है। इसके इतर इन शब्दों की समाज के अलग- अलग वर्ग और दायरों में (दलित-गैर दलित ) अपना स्थान है। दलित शब्द की पहचान भारत के संदर्भ में ख्यात है तो हिंदू शब्द की पहचान हिंदुस्तानी संदर्भ। ऐसा मेरा मानना नही है बल्कि यह समाज में प्रचलित मान्यताओं के आधार पर अपनी पहचान बनाए हुए है। हालाकि यह एक सच भी हो सकता है क्योंकि आज हमारा देश दो वर्ग व दो विचारधाराओं में बट़ा हुआ है। एक विचारधारा उस भारत की पक्षधर है जो गरीबी, गैर बराबरी, सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय की पक्षधर है वो...
विकास और सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है मणिपुर में बदलाव

विकास और सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है मणिपुर में बदलाव

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मणिपुर पूर्वोत्तर में म्यांमार का सीमावर्ती राज्य है। देश की अखंडता को बरकरार रखने के लिए सुदूर सीमावर्ती राज्य का मजबूत होना एक आवश्यक अहम शर्त होती है। हालांकि, 2017 में हो रहे सभी पांच राज्यों की सीमा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से लगी है किन्तु एक सुदूर प्रदेश होने के कारण मणिपुर की सीमा का महत्व बढ़ जाता है। जिस तरह हृदय से सुदूर अंगों को रक्त पहुंचाने का काम धमनी और शिराओं के माध्यम से होता है वैसा ही सुदूर प्रदेशों में विकास का मॉडल पहुंचाने का काम केंद्र और राज्य सरकारों का होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभालने के बाद से ही पूर्वोत्तर के राज्यों पर विशेष ध्यान दिया है। असम के बाद अब मणिपुर पर उनकी निगाह है। मणिपुर की भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार मणिपुर के चुनाव का महत्व समझा रहे हैं विशेष संवाददाता अमित त्यागी। मणिपुर में पिछले पंद्रह सालों से कांग्रेस का शासन रहा है। ओकराम इबोबी ...
नेताओं की फौज के साथ होगी  मोदी मैजिक की परीक्षा

नेताओं की फौज के साथ होगी  मोदी मैजिक की परीक्षा

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उत्तराखंड इस समय बदलाव के लिए तैयार दिख रहा है। अपने गठन के बाद से उत्तराखंड में राजनैतिक उथल पुथल चलती रही है। यहां कांग्रेस और भाजपा मवार सरकार का गठन करते रहे हैं। उत्तराखंड के गठन के प्रारम्भिक दौर में जब उत्तर प्रदेश में मायावती मजबूत थीं तब बसपा भी अपना यहां प्रभाव रखती थी। इसके बाद धीरे धीरे बसपा यहां कमजोर होती चली गयी। कांग्रेस के बड़े नेता एक एक कर अब भाजपा में शामिल हो गये हैं। वर्तमान सरकार के कई मंत्री एवं इसी कार्यकाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री भी अब भाजपाई हैं। कांग्रेस अब बिना नेताओं के सिर्फ पारंपरिक जनाधार के भरोसे उत्तराखंड में उतर रही है। उसके पास न तो काडर बनाने के लिये समय बचा है और न ही अपनी बात कहने के लिये कद्दावरों की फौज। ऐसे में उत्तराखंड की लड़ाई अब युवा कांग्रेसियों के जुनून एवं भाजपा के बढ़ते जनाधार के बीच आकर ठहर गयी है। उत्तराखंड पर विशेष संवाददाता अमित त्यागी...
यूपी में गठबंधन : फायदे में सपा, भाजपा को नफा, बसपा सफा

यूपी में गठबंधन : फायदे में सपा, भाजपा को नफा, बसपा सफा

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उत्तर प्रदेश में अब सियासत की महाभारत का मैदान सज चुका है। सभी दलों के योद्धा निर्धारित हो चुके हैं। सब के सब अपने अपने निर्धारित चुनाव क्षेत्रों में जीत के दावे करने लगे हैं। कई महीनों की नूरा कुश्ती के बाद सपा के चाल, चरित्र और चेहरे को नया रंग रोगन करके बाज़ार में लाया जा चुका है। अखिलेश यादव अब साढ़े चार मुख्यमंत्री में आधे नहीं बल्कि पूरे सेनापति बनाके पेश किये जा चुके हैं। नेताजी के द्वारा जिस तरह से अपने बेटे को विरासत सौंपी गयी है उसमें पूरे देश को मज़ा आया। एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी यह समझ रहा है कि यह सब एक पिता द्वारा पुत्र के व्यक्तित्व को चमकाने की कवायद थी। जिस तरह फिल्म में खलनायक जितना बड़ा होता है, नायक उतना ही बड़ा बनकर उभरता है ठीक वैसे ही शिवपाल को बड़ा खलनायक बना कर पेश किया गया। पर एक बात समझ में किसी को नहीं आयी कि शिवपाल को खलनायक बनाने के नेताजी के जिस दांव क...
भाजपा की नीति-मेरी कमीज तेरी कमीज से ज्यादा साफ

भाजपा की नीति-मेरी कमीज तेरी कमीज से ज्यादा साफ

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भारत हो या अन्य लोकतांत्रिक देश राजनीतिक दल बिना चंदे के चुनाव लडऩे की सोच भी नहीं सकते है। यह भी सच है कि अगर चंदे में पारदर्शिता न हो तो यह भ्रष्टाचार की जड़ बन जाता है। असल में देश के ज्यादातर राजनीतिक दल चंदे के हिसाब-किताब में पारदर्शिता नहीं रखते हैं। हालाकि देश में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चुनावी चंदे को लेकर इन दिनों खूब हो हल्ला मचा हुआ है। वित्त मंत्री अरूण जेटली नेे अबकि बार अपने बजट भाषण में राजनीतिक चंदे पर एक बड़ी घोषणा कर यह जताने की कोशिश की है कि भाजपा ही वह पार्टी है जिसे चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने की फिक्र है। इस बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने राजनीतिक पार्टियां को कैश में चंदा लेने की अधिकतम सीमा 2000 रुपये निर्धारित कर दी है। नई घोषणा के साथ ही अब राजनीतिक दलों को चंदा लेने के लिए चेक और डिजिटल माध्यम का सहारा लेना पड़ेगा। इसके साथ ही पार्टियों को चंदा देने ...
मोदी सरकार का “कांग्रेसी” बजट

मोदी सरकार का “कांग्रेसी” बजट

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  2014 में नरेंद्र मोदी बदलाव के नारे के साथ सत्ता में आये थे और जनता को भी उनसे बड़ी उम्मीदें थीं. लेकिन तीन साल पूरे होने को आये हैं और मोदी सरकार कोई नयी लकीर खीचने में नाकाम रही है, मोटे तौर पर वह वह पिछली सरकार के नीतियों का ही अनुसरण करते हुए दिखाई पड़ रही है. हालांकि इसके साथ उनकी यह कोशिश भी है कि पुराने लकीर को पीटने में नयापन दिखाई दे. 2017 के बजट में भी यही फार्मूला अपनाया गया है बजट में कुछ नया नहीं है और अगर इसे जेटली की जगह चिताम्बरम पेश करते तो शायद इसमें शेरो-शायरी के आलावा  कोई खास फर्क नहीं होता. लेकिन जैसा की मोदी सरकार आमतौर पर करने की कोशिश करती हैं 2017-18 के आम बजट को लेकर भी कई चीजें को परम्परा तोड़ते हुए “पहली बार” करने की कोशिश की गयी है, जैसे इस बार बजट को अपने निर्धारित समय से करीब एक महीने पहले ही पेश किया गया है,इसी तरह यह पहला मौका है जब आम बजट में रेल ब...