घर बनता है घरवालों से !
रजनीश कपूरमशहूर कवि अशोक चक्रधर की कविता ‘घर बनता है घरवालों से’ हमें सिखाती है कि घर केवल खिड़की दरवाज़ोंसे नहीं बल्कि उसमें रहने वालों से बनता है। मनुष्य का जीवन रिश्तों से जुड़ा रहता है। रिश्ते यदि मधुर रहें तोजीवन सुखी और खुशहाल रहता है। परंतु रिश्तों में खटास आते ही व्यक्ति टूट जाता है। एक छत के नीचे रहने वालेलोग विभिन्न रिश्तों से जुड़े रहते हैं। रिश्ते चाहे खून के हों या न हों उनमें गहराई तभी आती है जब वे दिल से बनतेहैं।पहले के युग में संयुक्त परिवार होते थे, जो साथ में रहते थे। बड़े परिवारों को साथ में रहने के लिए बड़े मकान कीज़रूरत होती थी। ज़माना बदला और ज़माने के साथ परिवार भी बदले। संयुक्त परिवार अब एकल परिवार होनेलग गये। समय की माँग और कामकाज के चलते जो परिवार हमेशा साथ में रहते थे वे अब केवल त्योहारों में हीसाथ नज़र आने लग गये। ऐसे में घर के बड़े बुजुर्गों ने परिवार के लिए ज...