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ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस को मात दे पायेगा भारत ?

ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस को मात दे पायेगा भारत ?

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ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस को मात दे पायेगा भारत ? भारत को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पहलों के माध्यम से निगरानी, निदान और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत करके मानव मेटान्यूमोवायरस जैसे उभरते वायरल खतरों से निपटने के लिए अपने नियामक ढांचे को बढ़ाना चाहिए। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ-साथ वैक्सीन और एंटीवायरल अनुसंधान में निवेश से ऐसे प्रकोपों को कम करने में मदद मिलेगी। कमजोर आबादी की सुरक्षा और एचएमपीवी प्रसार को नियंत्रित करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना आवश्यक है। -- डॉo सत्यवान सौरभ, मानव मेटान्यूमोवायरस एक वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरा है, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और प्रतिरक्षाविहीन व्यक्तियों जैसे कमजोर आबादी के लिए। पहली बार 2001 में पहचाना गया, मानव मेटान्यूमोवायरस दुनिया भर में महत्वपूर्ण श्वसन संक्रमण का कारण बनता है, जिससे अस्पता...
आप-दा नहीं सहेंगे, बदल कर रहेंगे’, दिल्ली में परिवर्तन रैली में AAP पर बरसे पीएम मोदी

आप-दा नहीं सहेंगे, बदल कर रहेंगे’, दिल्ली में परिवर्तन रैली में AAP पर बरसे पीएम मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यू अशोक नगर में 13 किमी. लंबे नमो भारत ट्रेन के साहिबाबाद-न्यू अशोक नगर सेक्शन का उद्घाटन किया। उन्होंने साहिबाबाद से न्यू अशोक नगर तक नमो भारत ट्रेन में यात्रा भी की। इसके बाद पीएम ने दिल्ली के जापानी पार्क में रैली को संबोधित किया।
देशी गाय के वैज्ञानिक महत्व को समझने की ज़रूरत

देशी गाय के वैज्ञानिक महत्व को समझने की ज़रूरत

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देशी गाय के वैज्ञानिक महत्व को समझने की ज़रूरत विनीत नारायणजबसे मुसलमान शासक भारत में आए तब से गौवंश की हत्या होनी शुरू हुई। हिन्दू लाख समझाते रहे कि गौमातासारे संसार की जननी के समान है। उसके शरीर के हर अंश में लोक कल्याण छिपा है और तो और उसका मूत्र औरगोबर तक औषधि युक्त है, इसलिये उसकी हत्या नहीं उसका पूजन किया जाना चाहिये। पर यवनों पर कोई असर नहींपड़ा। आज भी मूर्खतावश बहुत से मुसलमान गौवंश की हत्या करते हैं। अक्सर यह दोनों धर्मों के बीच विवाद काविषय रहता है। अंग्रेज जब भारत में आए तो उन्होंने हिन्दुओं का मजाक उड़ाया। वे अपने सीमित ज्ञान के कारण यहसमझने में असमर्थ थे कि हिन्दू गौवंश का इतना सम्मान क्यों करते हैं? आजादी के बाद धर्मनिरपेक्षता की राजनीतिकरने वालों ने भी हिन्दुओं की इस मान्यता पर ध्यान नहीं दिया।कुछ वर्ष पहले जब यह सूचना आई कि गौमूत्र का औषधि के रूप में अमरीका में पेटेंट ह...
विकलांगता न्याय और जेंडर समानता के बिना कैसे सुरक्षित रहेंगे सबके मानवाधिकार

विकलांगता न्याय और जेंडर समानता के बिना कैसे सुरक्षित रहेंगे सबके मानवाधिकार

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विकलांग लड़कियां और महिलायें अन्य महिलाओं की अपेक्षा कई  गुना अधिक सामाजिक और आर्थिक असमानता झेलती हैं। महिला हिंसा का खतरा भी विकलांग महिला के लिए  4 गुना अधिक है, परंतु हिंसा उपरांत न्यायिक सहायता और सहयोग मिलने की संभावना अत्यंत संकीर्ण। आबिया अकरम जो विकलांगता न्याय के लिए जुझारू कार्यकर्ता हैं और बीबीसी की 100 सबसे प्रभावशाली महिला नेत्री के रूप में चिन्हित हो चुकी हैं, ने "शी एंड राइट्स" सत्र में अपने व्याख्यान में कहा कि अक्सर उन्हें अपने लिए  व्हील चेयर  सुलभ आवागमन के रास्ते नहीं मिल पाते हैं  जिससे कि वह विभिन्न कार्यालयों (जिनमें पुलिस स्टेशन भी शामिल है), राहत केंद्रों या स्वास्थ्य केंद्रों में जा सकें। विकलांगता न्याय और जेंडर समानता को मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में लागू किए बिना हम सतत विकास लक्ष्यों पर कैसे खरे उतरेंगे? चाहे वो सरकारी परिव...
क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?

क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?

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क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?*रजनीश कपूरहमारे देश में जब-जब सरकारी तंत्र फेल होता है तो उसके ख़िलाफ़ कोई न कोई अदालत का रुख़ कर लेता है। इस उम्मीद सेकि संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों के हित में यदि कोई फ़ैसला कर सकता है तो वह न्यायपालिका ही है।परंतु क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि जहां देश भर की अदालतों में करोड़ों मुक़दमें लंबित पड़े हैं, वहाँ सरकारी तंत्र केकाम न करने के कारण अदालतों पर अतिरिक्त मुक़दमों का ढेर लगता जा रहा है। ऐसा क्यों है कि सरकारी तंत्र अपनीज़िम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभा रहा जिस कारण नागरिकों को कोर्ट का रुख़ करने को मजबूर होना पड़ता है?जब भी किन्हीं दो पक्षों में कोई विवाद होता है तो उनका आख़िरी वाक्य होता है कि “आई विल सी यू इन कोर्ट”। यानी जबभी किसी को किसी दूसरे से आहत पहुँचती है वह इस उम्मीद में अदालत जाता है कि उसके साथ न्याय होगा। परंतु हमारेद...
दिव्यांगों की उपेक्षा मानवता पर कलंक

दिव्यांगों की उपेक्षा मानवता पर कलंक

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अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस, 3 दिसंबर, 2024 पर विशेष-ललित गर्ग:-हर वर्ष 3 दिसंबर का दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकलांग व्यक्तियों को समर्पित है। वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा “विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में मनाया गया और वर्ष 1981 से अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाने की विधिवत शुरुआत हुई। साल 2024 में विकलांग दिवस का विषय है, “एक समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना”। यह विषय विकलांग व्यक्तियों की भूमिका को मान्यता देता है, जो सभी के लिए एक समावेशी और टिकाऊ दुनिया बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही, यह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी पर भी ज़ोर देता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विकलांगता के मुद्दों की समझ को बढ़ावा देना और विकलांग व्यक्तियों की गरिमा, अधिकारों और कल्याण के लिए समर...
पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं

पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं

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पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं* कितनी विचित्र बात है विकसित देश अपने आर्थिक लक्ष्य हासिल करने के बाद विकासशील देशों को पर्यावरण सुरक्षा का पाठ जबरन पढ़ा रहे हैं।सर्व विदित है कि आज ग्लोबल वार्मिंग संकट दुनिया के तमाम देशों के दरवाजे पर दस्तक देकर रौद्र रूप दिखा रहा है। ऐसे में बाकू में संपन्न कॉप-29 सम्मेलन में दुनिया की आबोहवा बचाने की दिशा में ठोस निर्णय न हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। दरअसल, विकसित देश विगत में की गई अपनी घोषणाओं से पीछे हट रहे हैं। वे गरीब मुल्कों को ग्लोबल वार्मिंग संकट से निपटने के लिये आर्थिक मदद देने को तैयार नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि दुनिया पर जलवायु संकट के गंभीर परिणामों से विकसित देश वाकिफ नहीं हैं। अमेरिका से लेकर स्पेन तक मौसम के चरम का त्रास झेल रहे हैं, लेकिन इसके घातक प्रभावों को देखते हुए भी सभी देश समाधान निकालने को लेकर सहमति क्यों नही...
वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए!

वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए!

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सुशील कुमार 'नवीन' वो चुपके से आते हैं और सारा खेल बदल जाते हैं। वो भी इस तरह से कि किसी को सहजता से यकीन ही नहीं हो। प्रत्याशित को अप्रत्याशित में परिवर्तित करने वाले इन लोगों के पास न कोई पहचान पत्र होता है और न उनकी कोई अन्य विशिष्ट पहचान। सामान्य व्यक्तित्व,सामान्य वेशभूषा,सामान्य बोलचाल कुछ भी तो ऐसा अन्यतर नहीं होता,जिससे उन्हें अलग से पहचाना जा सके। न वो किसी से जाति, धर्म या संप्रदाय के रूप में उनकी पहचान पूछते हैं और न ही इस तरह की अपनी पहचान किसी को बताते हैं।     कौन है वो लोग, आखिर कहां से आते हैं? न उन्हें गाड़ी चाहिए, न फाइव स्टार होटल। न कोई अन्य वीआईपी ट्रीटमेंट। सामान्य ढाबे या सामान्य धर्मशालाएं जिन्हें परम वैभव से कमतर सुख देने वाले साधन से कम नहीं होते हैं। स्वहित से दूर राष्ट्रहित जिसके लिए सर्वोपरि होता है। बिना झंडे, बिना पर्चे राष्ट्रहित मे...
प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मान

प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मान

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प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मानमृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं से नए-नए कीर्तिमान रच रहे हैं और इसी क्रम में जुड़ गई है उनकी ताजा गुयाना यात्रा। प्रधानमंत्री ने नवम्बर 2024 में ब्राजील में आयोजित जी -20 शिखर सम्मलेन में अपना लोहा मनवाने के बाद गुयाना की यात्रा की जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की विगत 56 वर्षो के पश्चात की गई गुयाना यात्रा थी । गुयाना में प्रधानमंत्री का भव्य स्वागत किया गया । गुयाना के दौरे में प्रधानमंत्री ने वहां की संसद को संबोधित किया तथा साथ ही गुयाना सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी प्रदान किया। गुयाना दक्षिण अमेरिका में एक छोटा सा देश है किंतु उसके विकास की सभवनाएं अनंत है क्योंकि वहां तेल व गैस के बड़े भंडार मिले हैं । प्रधानमंत्री की गुयाना यात्रा के दौरान भारत और गुयाना के म...
गांवों में बदलता ऋण का स्तर

गांवों में बदलता ऋण का स्तर

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हमारे देश भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में ऋण का बढ़ता स्तर चिंता का विषय है।कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) ऐसी स्थिति के बावजूद दांव आजमाने की कोशिश करते हुए हालात को और जटिल बना रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ‘दबाव देकर दिए जाने वाले ऋण’ के बढ़ते मामले पर अब ध्यान देना शुरू किया है। ऐसे ऋणों की मार्केटिंग बेहद आक्रामक तरीके से ऐसे की जाती है कि ऋण लेने वाले इनके दीर्घकालिक वित्तीय परिणामों से वाकिफ नहीं हो पाते हैं। ऋण संकट के मूल कारणों में से एक, देश के ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का अभाव है। आर्थिक वृद्धि का लाभ भी पर्याप्त रूप से रोजगार सृजन में नहीं दिखा है, खासतौर पर गैर-कृषि क्षेत्रों में। ऋण की आसान पहुंच और चौबीस घंटे डिलिवरी सेवाओं के प्रसार से ग्रामीण क्षेत्रों में खपत की स्थिति बढ़ी है। लोगों को ...