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दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

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(26 फरवरी को पुण्य तिथि के उपलक्ष पर प्रचारित) क्रांतिकारी वीर सावरकार का स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना ही एक विशेष महत्व रखता है।  सावरकर जी पर लगे आरोप भी अद्वितीय थे उन्हें मिली सजा भी अद्वित्य थी।  एक तरफ उन पर आरोप था कि अंग्रेज सरकार के विरुद्ध युद्ध की योजना बनाने का, बम बनाने का और विभिन्न देशों के क्रांतिकारियों से सम्पर्क करने का तो दूसरी तरफ उनको सजा मिली थी पूरे 50 वर्ष तक दो सश्रम आजीवन कारावास। इस सजा पर उनकी प्रतिक्रिया भी अद्वितीय थी कि  ईसाई मत को मानने वाली अंग्रेज सरकार कब से पुनर्जन्म अर्थात दो जन्मों को मानने लगी। वीर सावरकर को 50  वर्ष की सजा देने के पीछे अंग्रेज सरकार का मंतव्य था कि उन्हें किसी भी प्रकार से भारत अथवा भारतीयों से दूर रखा जाये। जिससे वे क्रांति की अग्नि को न भड़का सके।  सावरकर के लिए शिवाजी महाराज प्रेरणा स्रोत थे।  जिस प्रकार औरंगजेब न...
The Corrupt Chief Justices of The Supreme Court of India

The Corrupt Chief Justices of The Supreme Court of India

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Rudimentary logic demands that the highest chairs must have the soundest legs. By that measure, judges ought to have impeccable moral character. But in India, judges are protected less by their sterling reputations than by an arcane law: the “contempt of court” act, which - strangely, only in India! - prohibits raising any questions about judges or their actions. This has reduced talk of judicial corruption to a sullen whisper rather than a democratic debate. Supreme Court lawyer Prashant Bhushan has fought this unhealthy immunity for 20 years. In September 2009, partly as a result of his relentless campaigns, the judiciary finally agreed to declare their financial assets. It was a big first step. Much remained to be done. Soon after, in an interview w...
अभिव्यक्ति बनाम देशद्रोह

अभिव्यक्ति बनाम देशद्रोह

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दिल्ली के रामजस कॉलेज की चर्चा आजकल सुर्ख़ियों में हैं। कुछ दिनों पहले JNU में देशद्रोह के नारे लगाने वाले उमर खालिद को अपने शोध पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया था। उमर खालिद के व्याख्यान का विरोध ABVP द्वारा किया गया। साम्यवादी मीडिया ABVP के विरोध को गुंडई और खालिद के देशविरोधी नारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहा हैं। भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को आज़ाद करने की बात केवल पाकिस्तान समर्थक करते है। ऐसे में देशद्रोह के आरोप में जमानत पर रिहा खालिद को व्याख्यान के लिए बुलाना देशद्रोही को प्रोत्साहन देने के समान है। खालिद चाहे शैक्षिक रूप से कोई बहुत बड़ा बुद्धिजीवी भी हो तब भी देशद्रोही को किसी प्रकार की छूट नहीं होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना अत्यन्त आवश्यक है। स्वामी दयानंद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बड़े पक्षधर थे। परंतु उन्होंने दो विशेष नियमों के पालन करने पर विशेष...
विकास की नई सोच बनानी होगी

विकास की नई सोच बनानी होगी

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हाल ही में एक सरकारी ठेकेदार ने बताया कि केंद्र से विकास का जो अनुदान राज्यों को पहुंचता है, उसमें से अधिकतम 40 फीसदी ही किसी परियोजना पर खर्च होता है। इसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, संबंधित विभाग के सभी अधिकारी आदि को मिलाकर लगभग 10 फीसदी ठेका उठाते समय अग्रिम नकद भुगतान करना होता है। 10 फीसदी कर और ब्याज आदि में चला जाता है। 20 फीसदी में जिला स्तर पर सरकारी ऐजेंसियों को बांटा जाता है। अंत में 20 फीसदी ठेकेदार का मुनाफा होता हैै। अगर अनुदान का 40 फीसदी ईमानदारी से खर्च हो जाए, तो भी काम दिखाई देता है। पर अक्सर देखने  आया है कि कुछ राज्यों मेें तो केवल कागजों पर खाना पूर्ति हो जाती है और जमीन पर कोई काम नहीं होता। होता है भी तो 15 से 25 फीसदी ही जमीन पर लगता है। जाहिर है कि इस संघीय व्यवस्था में विकास के नाम पर आवंटित धन का ज्यादा हिस्सा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता है। जबकि हर प्रधानमंत्री भ...
Open letter to Shehla Rashid from a Kashmiri Hindu

Open letter to Shehla Rashid from a Kashmiri Hindu

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I am Aditya Tikoo. It was the morning of 19th January 1990. I (then 5) was playing with my mother on the bed. She was 7 months pregnant. She took me in her lap and asked – “what do you want – baby brother or sister?”. “Brother” – I replied. She kissed my forehead and held her hand on my head in affection.   Suddenly we heard a noise outside. It was some mob that was nearing our house. It kept getting noisy with each moment. My father who had gone outside rushed into the house and came to our room. I saw his eyes full of fear for the first time. He was a school master in Srinagar. “They are coming”, he said.   I felt my mother’s grip around me was tightened suddenly. I looked at her face. She fainted. I asked, what happened? She almost cried, said- nothing Bachcha. She covered me with h...
देश अपना-प्रदेश पराया

देश अपना-प्रदेश पराया

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देश के विभाजन की त्रासदी सात दशक बाद भी जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे लाखों हिन्दू शरणार्थियों को अभी भी झेलनी पड़ रही है। यह तो सर्वविदित ही है कि  भारत - पाक विभाजन के समय सन 1947 में  सांप्रदायिक दंगो के चलते  पाकिस्तान में अपना सब कुछ गवां कर आये हिन्दू-सिख भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसे थे। बहुत बड़ी संख्या में ये शरणार्थी आज भारत में सामाजिक व सरकारी सहयोग से संपूर्ण नागरिक अधिकारों के साथ सम्मान से रह रहें है। यहां तक की अनेक उच्च पदों को सुशोभित करने के  अतिरिक्त इन लोगों में से ही श्री इंद्रकुमार गुजराल व डॉ मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री व श्री लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री भी बनें।परंतु खेद यह है कि जो लोग अपनी जान बचाने के लिए जम्मू -कश्मीर के क्षेत्रो में चले गये वे आज तक दासों का जीवन जीने को विवश है। पिछले समाचारों के अनुसार विभाजन के समय लगभग 2 लाख शरणार्थी जम्मू ...
माँग का सिन्दूर और उसकी उपयोगिता

माँग का सिन्दूर और उसकी उपयोगिता

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माँग में सिन्दूर लगाने की प्रथा अति प्राचीन है । सौभाग्यवती महिलाओं के सोलह श्रृृंगार में से एक श्रृंगार माथे पर माँंग में सिन्दूर लगाना भी है। हमारे समाज में वैदिक रीति की विवाह पद्धति में मंडप में कन्यादान विधि संपन्न्ा होने के बाद वर, वधू की माँग में सिन्दूर लगाता है तथा उसे मंगल सूत्र पहनाता है। इसके पश्चात कन्या अखण्ड सौभाग्यवती कहलाती है । सिन्दूर भारतीय समाज में पूजन-सामग्री का एक प्रमुख घटक है । देवी पूजन में माँ पार्वती, माँ दुर्गा के नौ रूप, माँ सीता तथा अन्य शक्ति स्वरूपा माताओं के पूजन में सिन्दूर का अपना एक विशेष महत्व है । देवी पूजन में सिन्दूर सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। आज भी नवविवाहिता अपनी मांग के अंदर सिंदूर बड़ी कुशलता पूर्वक लगाती है । सिन्दूर लगाने की प्रथा दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है । सिन्दूर माँ लक्ष्मी का भी प्रतीक है । इसीलिये गृह-लक...
जैविक में है दम, सिक्किम बना प्रथम

जैविक में है दम, सिक्किम बना प्रथम

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यदि हमारी खेती प्रमाणिक तौर पर 100 फीसदी जैविक हो जाये, तो क्या हो ? यह सोचते ही मेरे मन में सबसे पहले जो कोलाज उभरता है, उसमें स्वाद भी है, गंध भी, सुगंघ भी तथा इंसान, जानवर और खुद खेती की बेहतर होती सेहत भी। इस चित्र के लिए एक टेगलाइन भी लिखी है - ''अब खेती और किसान पर कोई तोहमत न लगाये कि मिट्टी, भूजल और नदी को प्रदूषित करने में उनका भी योगदान है।''   अभी यह सिर्फ एक कागज़ी कोलाज है। ज़मीन पर पूरी तरह कब उतरेगा, पता नहीं। किंतु यह संभव है। सिक्किम ने इस बात का भरोसा दिला दिया है। उसने पहल कर दी है। जब भारत का कोई राज्य अपने किसी एक मण्डल को सौ फीसदी जैविक कृषि क्षेत्र घोषित करने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में कोई राज्य 100 फीसदी जैविक कृषि राज्य होने का दावा करे; यह बात हजम नहीं होती। लेकिन दावा प्रमाणिक है, तो शक करने का कोई विशेष कारण भी नहीं बनता।    100 फीसदी जैविक कृषि राज्य सिक्...
अखिलेश सरकार का एक और बड़ा रू. १७३५ करोड़ का घोटाला

अखिलेश सरकार का एक और बड़ा रू. १७३५ करोड़ का घोटाला

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अखिलेश यादव-नवनीत सहगल सिंडिकेट का एक और बड़ा खेल ! लखनऊ-आगरा इक्स्प्रेस्वे बड़ा zaघोटाला है उसी तरह 'दिल्ली-यमनोत्री' स्टेट हाइवे ( SH-57:206 km) लागत रु. 1735 करोड़ में SEW नामक हैदराबाद की निर्माण कम्पनी पैसा लेकर भागी। उत्तर प्रदेश में दिल्ली-सहारनपुर मार्ग की दूरी १७०.३ कि. मी. है.... अखिलेश सरकार का बड़ा घोटाला सामने आया है। इस हाइवे का काम 'उपशा (UPSHA- Uttar Pradesh State Highways Authority)' द्वारा PPP(Private-Public Partnership) के आधार पर बनाने के किए ठेके के रूप में April, २०१२ को दिया गया था, अखिलेश यादव ने मार्च २०१२ की शपथ ली थी। कम्पनी द्वारा बैंक से ऋण लिया गया तथा धीमी गति से काम शुरू किया क्योंकि कम्पनी की काम पूरा करने की न नियत थी और न ही छमता। उपशा का अध्यक्ष मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व CEO अखिलेश (व मायावती का भी) प्रिय IAS अधिकारी नवनीत सहगल है। ठेकेदार कम्पनी SEW ...
नालंदा के बहाने अतीत की महानताओं से मुलाकात..

नालंदा के बहाने अतीत की महानताओं से मुलाकात..

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कल पटना से दिल्ली की ओर बढ़े तो सोचा कि क्यों न कुछ दर्शनीय स्थानों को देखते चलें। एक-दो वरिष्ठ रिश्तेदारों और बिहार में पोस्टेड दोस्तों से सलाह ली; बिहार का नक्शा उठाया और अपने भीतर के कोलंबस को जगाकर रास्ता निर्धारित किया। योजना बनी कि पहले दिन नालंदा, पावापुरी, राजगीर, गहलौर और बोधगया को कवर किया जाए। वक़्त की कमी के चलते पावापुरी और गहलौर ठीक से नहीं देख पाए, पर बाकी तीन जगहों को ठीक से 'जिया'।पहला पड़ाव था- नालंदा। मेरे मन में उसकी छवि यही थी कि वह गुप्त काल में विकसित हुआ एक शानदार विश्वविद्यालय था जिसमें पढ़ने की आकांक्षा लेकर देश-विदेश के बड़े-बड़े जिज्ञासु और शोधार्थी खिंचे चले आते थे। एक बात और सुनी हुई थी कि जब बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट करने के लिये इसकी लाइब्रेरी में आग लगाई थी तो करीब 6 महीनों तक आग जलती रही थी। दंतकथाओं में अक्सर अतिशयोक्तियाँ शामिल हो जाती हैं - इस तर्क से 6 महीन...