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संस्कृति और अध्यात्म

संसद में कांग्रेस का हिंदू व संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब हुआ

संसद में कांग्रेस का हिंदू व संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब हुआ

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संसद में कांग्रेस का हिंदू व संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब हुआराहुल गांधी का बयान हिंदुओं के विरुद्ध बड़े षड्यंत्र का संकेत !मृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग गठबंध सरकार के तीसरे कार्यकाल के प्रथम संक्षिप्त संसद सत्र का समापन हो चुका है । नियमानुसार इस सत्र में माननीय राष्ट्रपति जी ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित किया । ये सत्र विपक्ष और मुख्यतः कांग्रेस के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। दस वर्षों के बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष बनने का अवसर मिला है। संसदीय परम्परा में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद एक बहुत ही जिम्मेदरी का पद होता है और कांग्रेस ने ये जिम्मेदारी अपने नेता राहुल गांधी को दी । राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि अब राहुल गांधी एक सदन के अंदर और बाहर एक परिपक्व राजनेता की तरह व्यहार करेंगे विभिन्न मुद्दों पर गम्भीरता के स...
श्री अयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

श्री अयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

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22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।     सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया ...
भारत का वैभवशाली विवाह संस्कार

भारत का वैभवशाली विवाह संस्कार

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स्वतंत्रता प्राप्ति के समय जहाँ भारत की गणना एक निर्धन राष्ट्र के रूप में होती थी, वहीं इन 75 वर्षों में भारत ने सभी क्षेत्रों में अत्यधिक प्रगति की है। आज भारत को गर्व है कि हमारे देश में एक ऐसे विवाह का आयोजन हो रहा है, जो सम्पूर्ण विश्व को अचम्भित करने वाला है। यदि इतिहास के पृष्ठों पर दृष्टिपात किया जाए तो, हमें किसी भी विवाह समारोह में इतने वैभवपूर्ण संस्कार की कोई सूचना नहीं मिलती है। विवाह पूर्व आयोजित अम्बानी परिवार में होने इस संस्कार समारोह के आधार पर यदि विवाह के मुख्य आयोजन की वैभवता का अनुमान लगाया जाए तो सम्भवतया इसकी वैभवता सर्वोच्च स्तर की होगी। इस विवाह के जानकारों का अनुमान है कि केवल एक दिन के संस्कार में जहाँ विश्व के अधिकांश धनी व्यक्ति अपना आशीर्वाद देने हेतु उपस्थित हुए, उन्होंने पानी के जहाज, टापू, गाड़ियाँ, दुर्लभ हीरों की अंगुठियाँ आदि करोड़ों के उपहार स्वरूव...
गैर हिन्दुओं का मंदिरों में प्रवेश बंद

गैर हिन्दुओं का मंदिरों में प्रवेश बंद

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गैर हिन्दुओं का मंदिरों में प्रवेश बंद -मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को“सेकुलर” सुप्रीम कोर्ट कैसे बर्दाश्त करेगा? मद्रास हाई कोर्ट की जस्टिस एस श्रीमथी ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए तमिलनाडु सरकार और HR&CE department को निर्देश दिए कि राज्य के सभी मंदिरों में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाई जाए और उन्हें Kodimaram (Flagpole) के आगे जाने की अनुमति न दी जाए जहां नोटिस बोर्ड लगाए जाएं कि गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है - जस्टिस श्रीमथी ने स्पष्ट आदेश में कहा कि “मंदिर कोई पिकनिक स्पॉट नहीं हैं; सरकार मंदिरों में उन गैर - हिन्दुओं को अनुमति न दे जो हिंदू धर्म में विश्वास नहीं रखते; यदि कोई गैर - हिंदू मंदिर में दर्शन करना चाहता है तो उससे वचन लेना होगा कि उसे मंदिर के देवता में विश्वास है और वह हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों और प्रथाओं का पालन करेगा” अदालत ने यह फैसला डी सेंथिल क...
मूर्तिपूजा क्यों ?

मूर्तिपूजा क्यों ?

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"क्या मूर्ति मंदिरों में भगवान बसते हैं?? जो मूर्ति अपनी रक्षा नहीं कर सकती, वो हमारी रक्षा क्या करेगी..?? जो लोग मंदिरों में मूर्तियों में आस्था नहीं रखते, क्या भगवान उनके नहीं हैं?? क्या मंदिरों में पूजा पाठ करने से ही भगवान मिलते हैं?? क्या भगवान मंदिरों से बाहर नहीं हैं?? जो हमारे ही भीतर हैं, उसे मूर्ति मंदिरों में खोजना, फूल चढ़ाना, कपड़े पहनाना, आरती उतारना... ये सब क्या मात्र एक पाखंड और दिखावा नहीं है.....??" मंदिरों पर ऐसी "वैज्ञानिक" बातें हमारे विरोधी करते हैं तो समझ भी आता है, लेकिन जब कोई हिन्नू होकर ही ऐसी बातें करता है, और फिर खुद को उन्नत और होशियार भी समझता है, तो केवल आश्चर्य ही होता है.... आज कितने ही हिन्नू बड़े गर्व के साथ ASI की रिपोर्ट सब जगह शेयर करने में लगे हैं कि"ज्ञानवापी परिसर में हनुमान जी, गणेश जी, विष्णुजी, नंदी जी, शिवलिंग की मूर्तियां प्राप्त ह...
भारत में सांस्कृतिक धरोहरों को दिलाया जा रहा है उचित स्थान

भारत में सांस्कृतिक धरोहरों को दिलाया जा रहा है उचित स्थान

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22 जनवरी 2024 को प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या में सम्पन्न होने जा रही है। पिछले लगभग 500 वर्षों के लम्बे संघर्ष के पश्चात श्रीराम लला टेंट से निकलकर एतिहासिक भव्य श्रीराम मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं। पूरे देश का वातावरण राममय हो गया है। न केवल भारत के नागरिकों में बल्कि अन्य कई देशों में भी सनातन धर्म में आस्था रखने वाले नागरिकों में जबरदस्त उत्साह दिखाई दे रहा है। अमेरिका के कई बड़े शहरों में प्रभु श्रीराम के बहुत बड़े आकार के होर्डिंग लगाए गए हैं। पूरे विश्व में ही एक तरह से नई ऊर्जा का संचार हो रहा है। आज सनातनी हिंदुओं के लिए यह एक एतिहासिक एवं गर्व करने का पल है क्योंकि प्रभु श्रीराम का मंदिर भारतीयों के लिए सदियों से एक सांस्कृतिक धरोहर रहा है और अब पुनः प्रभु श्रीराम के मंदिर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में उचित स्थान दिलाया जा रहा है, इसके लिए प...
सरयू का भाग्य देखिए…

सरयू का भाग्य देखिए…

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प्रभु श्रीराम के इक्ष्वाकु वंश के महाप्रतापी पूर्वजों का तर्पण यहीं हुआ। कौशल्या के महल में शिशु रूप में राम के प्रथम स्नान का जल यहीं से गया। राम सरयू की गोद में ही पले-बढ़े। सरयू साक्षी है कि राजतिलक होते-होते 14 वर्ष का वास्तविक वनवास क्या होता है और यह भी कि उस वनवास ने कैसे अयोध्या के एक राजकुमार को सच्चा जननायक बना दिया था। सीता के प्रथम अयोध्या प्रवेश पर सरयू का जल ही कलश में छलछला रहा था। चित्रकूट से खाली हाथ लौटे भरत की आँखों से झरे हरेक आंसू का हिसाब आज केवल सरयू के पास है। लंका से सीता सहित लौट रहे श्रीराम का पुष्पक विमान अयोध्या के आकाश में देखकर सरयू कैसे मचल उठी होगी? महर्षि वाल्मीकि से लेकर गोस्वामी तुलसीदास तक युगों का अंतराल है। इन दो महापुरुषों को श्रीराम की महिमा शब्दबद्ध कर संसार की स्मृतियों में गहरे तक उतारने का श्रेय है। सरयू के तट इनके चरणों से भी पवित्र हुए है...
क्यों जरुरी था अयोध्या का भव्य विकास?

क्यों जरुरी था अयोध्या का भव्य विकास?

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-विनीत नारायणX (ट्विटर) पर एक पोस्ट देखी जिसमें अयोध्या में रामलला के विग्रह को रज़ाई उढ़ाने का मज़ाक़ उड़ाया गया है।उस पर मैंने निम्न पोस्ट लिखी जो शायद आपको रोचक लग। वैष्णव संप्रदायों में साकार ब्रह्म की उपासना होती है।उसमें भगवान के विग्रह को पत्थर, लकड़ी या धातु की मूर्ति नहीं माना जाता। बल्कि उनका जागृत स्वरूप मानकरउनकी सेवा- पूजा एक जीवित व्यक्ति के रूप में की जाती है।ये सदियों पुरानी परंपरा है। जैसे श्रीलड्डूगोपाल जी के विग्रह को नित्य स्नान कराना, उनका शृंगार करना, उन्हेंदिन में अनेक बार भोग लगाना और उन्हें रात्रि में शयन कराना। ये परंपरा हम वैष्णवों के घरों में आज भी चलरही है। ‘जाकी रही भावना जैसी-प्रभु मूरत देखी तीन तैसी।’इसीलिए सेवा पूजा प्रारंभ करने से पहले भगवान के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसका शास्त्रों मेंसंपूर्ण विधि विधान है। जैसा अब रामलला के विग्रह की अ...
यों काशी में आते अब गोवा से भी ज्यादा पर्यटक

यों काशी में आते अब गोवा से भी ज्यादा पर्यटक

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आर.के. सिन्हा अगर कोई यह मानता है कि सबसे अधिक टुरिस्ट समुद्र के किनारे के तटों पर या फिर आकाश को छूते पहाड़ों में सैर करने को आते हैं तो उन्हें एक बार फिर सोचना होगा। मतलब यह है कि अब न तो सबसे अधिक  टूरिस्ट गोवा आ रहे हैं या फिर शिमला, नैनीताल या कश्मीर या हिमाचल किसी अन्य हिल स्टेशन पर। आज के दिन सबसे ज्यादा टूरिस्ट को अपनी तरफ आकर्षित करने लगा है वाराणसी। आईसीआईसीआई के एक सर्वे से पता चला है कि पिछले साल-2022 में वाराणसी में 7.02 करोड़ टुरिस्ट पहुंचे। गोवा के हिस्से में लगभग मात्र 85 लाख टूरिस्ट । यूं तो वाराणसी में लगातार खूब टूरिस्ट पहले से ही आते थे पर 2015 के बाद तो स्थिति वाराणसी के पक्ष में पूरी तरह से पलट गई। इस लिहाज से गेम चेंजर साबित हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ( अब स्मृति शेष) का ...
हाईकमान’ संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों का निरादर

हाईकमान’ संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों का निरादर

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एक बार राष्ट्रीय पार्टी के राज्य में सत्ता हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री के चयन में पार्टी आलाकमान के पास असंगत रूप से बड़ा विवेक होता है, राज्य के विधायकों को इस संबंध में बहुत कम या कोई अधिकार नहीं होता है। यह प्रथा उस संवैधानिक जनादेश का अपमान करती है जो बहुमत पार्टी के विधायकों को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपना नेता चुनने का अधिकार देता है। आज देश के तीन प्रमुख हिन्दी भाषी राज्यों में बड़ी ज त के बाद मुख्यमंत्री बने हैं। लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के हिसाब से जीते हुए विधायकों के बहुमत से मुख्यमंत्री बनने चाहिए, लेकिन इस देश में हाल के दशकों में शायद ही कभी और कहीं इस आधार पर मुख्यमंत्री तय किए गए हों। देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में हाई कमान की संस्कृति विकसित और मजबूत हो चुकी है, और ऐसे फैसले राज्यों की राजधानी में नहीं , देश की राजधानी में तय होते आए हैं, और आज यही हो ...