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संस्कृति और अध्यात्म

वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल

वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल

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वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल* इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आजादी के बाद देश में वैदिक ज्ञान को शिक्षा प्रणाली में समुचित स्थान नहीं मिल पाया है जिसका नतीजा समाज में नैतिक मूल्यों में आ रही गिरावट है। कहने को वेदों को शिक्षा प्रणाली से जोडऩे के लिए 100 करोड़ रुपए की परियोजनाएं बनाई गई हैं। यह धनराशि केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही है। गौरतलब है कि वैदिक शिक्षा पर आधारित बोर्ड से दसवीं और बारहवीं कक्षा पास करने वाले छात्र अब उच्च शिक्षा के लिए किसी भी कॉलेज में दाखिला लेने के पात्र होंगे। इसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे उच्च शिक्षण संस्थान भी शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा नामित निकाय, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) द्वारा लिए गए निर्णय पर आधारित है। वैदिक शिक्षा सांस्कृतिक दृष्टि पर बल देती थी।इसके मुताबिक शिक्षित व्यक्ति को साहित्य, कला, संगीत आदि की ...
महाकवि भास के अभिषेकनाटक में श्रीरामकथा

महाकवि भास के अभिषेकनाटक में श्रीरामकथा

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगमहाकवि भास के अभिषेकनाटक में श्रीरामकथाभारतीय साहित्य की परम्परा में रामायण को काव्यों की श्रेणी में 'आदि काव्यÓ माना जाता है। रामायण की कथा आज भी भारत में झुग्गी-झोपड़ियों से लेकर विशाल भवनों, गली-गली, महानगरों से लेकर छोटे से छोटे गाँव और आँगन में हमें बड़ी सरलता से सुनने को मिल जाती है। प्राचीन संस्कृत, प्राकृत भाषा के अतिरिक्त प्राय: सभी भारतीय प्रादेशिक भाषा में श्रीरामकथा का अपने प्रदेश के रीति रिवाज और संस्कृति में रंगा हुआ वर्णन इनमें मिल जाता है। रामायण और महाभारत काल के उपरान्त अद्यावधि ज्ञात सन्दर्भों में श्रीरामकथा को अपने साहित्य में गढ़ने-रचनेवाले सबसे प्राचीन और सबसे पहले महाकवि भास ही दिखाई देते हैं। महाकवि भास के नाटकों में प्रसिद्ध नाटक अभिषेकनाटक तथा प्रतिमानाटक श्रीरामकथा पर आधारित है। अत: सर्वप्रथम अभिषेक नाटक की श्रीरामकथा की कथावस्त...
<strong>दिवाली ने कैसे लांघा हिंदू धर्म की सीमाओं को</strong>

दिवाली ने कैसे लांघा हिंदू धर्म की सीमाओं को

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आर.के. सिन्हा दीपोत्सव मूलत: और अंतत: हिन्दू पर्व होते हुए अपने आप में व्यापक अर्थ लिए हुए हैं। यह तो अंधकार से प्रकाश की तरफ लेकर जाने वाला अनोखा त्योहार है। अंधकार व्यापक है, रोशनी की अपेक्षा। क्योंकि, अंधेरा अधिक काल। दिन के पीछे भी अंधेरा है रात का। दिन के आगे भी अंधेरा है रात का । दिवाली को ईसाई, मुसलमान और यहूदी भी अपने-अपने तरीके से मनाएंगे। सिख, बुद्ध और जैन धर्मावलंबियों के लिए तो इस दिन का खास महत्व तो है ही। राजधानी दिल्ली के बिशप हाउस पर दिवाली पर आलोक सज्जा की जाएगी। दीए भी जलाए जाएंगे। यह ही है भारत की विशेषता। क्या है बिशप हाउस? ये देश के प्रोटेस्टेंट ईसाई समाज के प्रमुख बिशप का मुख्यालय है। यह नई दिल्ली के जयसिंह रोड पर। दरअसल प्रकाश पर्व हमें अपने देश के पवित्र मूल्यों, जरूरतमंद लोगों के प्रति मदद का हाथ बढ़ाने की हमारी जिम्मेदारी...
रंगत खोते हमारे सामाजिक त्यौहार।

रंगत खोते हमारे सामाजिक त्यौहार।

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बाजारीकरण ने सारी व्यवस्थाएं बदल कर रख दी है। हमारे उत्सव-त्योहार भी इससे अछूते नहीं रहे। शायद इसीलिए प्रमुख त्योहार अपनी रंगत खोते जा रहे हैं और लगता है कि त्योहार सिर्फ औपचारिकताएं निभाने के लिए मनाये जाते हैं। किसी के पास फुरसत ही नहीं है कि इन प्रमुख त्योहारों के दिन लोगों के दुख दर्द पूछ सकें। सब धन कमाने की होड़ में लगे हैं। गंदी हो चली राजनीति ने भी त्योहारों का मजा किरकिरा कर दिया है। हम सैकड़ों साल गुलाम रहे। लेकिन हमारे बुजुर्गों ने इन त्योहारों की रंगत कभी फीकी नहीं पड़ने दी। आज इस अर्थ युग में सब कुछ बदल गया है। कहते थे कि त्योहार के दिन न कोई छोटा। और न कोई बड़ा। सब बराबर। लेकिन अब रंग प्रदर्शन भर रह गये हैं और मिलन मात्र औपचारिकता। हम त्योहार के दिन भी हम अपनो से, समाज से पूरी तरह नहीं जुड़ पाते। जिससे मिठाइयों का स्वाद कसैला हो गया है। बात तो हम पूरी धरा का अंधेरा दूर क...
हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म

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इसका अर्थ है सनातन धर्म। यह सनातन तथा अमृत तत्त्व की उपासना है।(१) श्रेय-प्रेय मार्ग-एक सन्त इसी धर्म के नियमों के अनुसार सन्त बन कर उसका चोला डाले हैं पर सदा सनातन धर्म की संस्थाओं का व्यंग्य-विरोध करते रहते हैं। उनका कहना है कि यह सनातन है तो इस पर खतरा कैसे है? सदा अच्छी चीजों पर ही खतरा रहता है-घर की सफाई बार-बार करते हैं पुनः गन्दा हो जाता है। देव मात्र ३३ हैं, असुर ९९, प्रायः असुर जीत जाते हैं पर उनका मार्ग श्रेष्ठ नहीं है। वैवस्वत यम भारत का पश्चिम सीमा (अमरावती से ९० अंश पश्चिम संयमनी = यमन, सना) के राजा थे। उन्होंने कठोपनिषद् में नचिकेता से दोनों का विवेचन किया है-श्रेय (स्थायी या सनातन लाभ) तथा प्रेय (तात्कालिक लाभ या उसका लोभ)। श्रेय मार्ग पर चलनेवाले सनातनी हैं, उनको सम्मान के लिये श्री कहते हैं। जो हमें प्रेय दे सके वह पीर है या दक्षिण भारत में पेरिया। अन्य अर्थ हैं-(२) सनातन...
भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार भारतीय समाज ही कर सकता है

भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार भारतीय समाज ही कर सकता है

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भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार भारतीय समाज ही कर सकता है प्राचीनकाल में भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है। इस खंडकाल में समस्त प्रकार की गतिविधियां चाहे वह सामाजिक क्षेत्र में हों, सांस्कृतिक क्षेत्र में हों, आर्थिक क्षेत्र में हों अथवा किसी भी अन्य क्षेत्र में हों वह भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए ही सम्पन्न की जाती थीं। समाज में किसी भी प्रकार के कर्म को धर्म से जोड़कर ही किया जाता था एवं अर्थ को भी धर्म से जोड़ दिया गया था। कर्म, अर्थ एवं धर्म मिलकर मानव को मोक्ष प्राप्त करने की ओर प्रेरित करते थे। सामान्यतः राष्ट्र के नागरिकों में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं के बराबर ही रहती थी और समस्त नागरिक आपस में मिलकर हंसी खुशी अपना जीवन यापन करते थे।  भारत के वेद एवं पुराणों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं को हल करने के उपाय बताए गए हैं। विभिन्न युगों में अलग अलग शक्तियों को ...
संघ की संस्कृति एवं मूल्यपरक भारत-दृष्टि

संघ की संस्कृति एवं मूल्यपरक भारत-दृष्टि

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-ः ललित गर्ग:- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली ने विभिन्न धार्मिक संगठनों, सेवा-संस्थानों एवं कार्यकर्ताओं की सामाजिक सद्भाव संगोष्ठी का आयोजन कर भारत की ज्वलंत समस्याओं पर सार्थक बहस का एक अनूठा उपक्रम किया। नये मध्यप्रदेश भवन, चाणक्यपुरी में हुए इस आयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यकारणी के सदस्य भैयाजी जोशी के उद्बोधन से जहां राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर संघ का विचार एवं दृष्टिकोण विभिन्न धर्म के प्रतिनिधियों के सामने आया वहीं विभिन्न धर्मों एवं संस्थानों से जुड़े लोगों के चिन्तन से संघ भी अवगत हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में कुछ ऐसे विरल व्यक्तित्व हुए हैं, जिनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह, महामंत्री आदि अनेक जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वाले भैयाजी जोशी भी हैं, उनकी विरलता या महत्ता के प्रमुख मानक हैं- सशक्त राष्ट्रीयता, हिन्दुत्व ...
आत्म शक्ति जाग्रत कर आरोग्य और यूनीवर्स की इनर्जी से जुड़ने की अवधि है नवरात्र

आत्म शक्ति जाग्रत कर आरोग्य और यूनीवर्स की इनर्जी से जुड़ने की अवधि है नवरात्र

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--रमेश शर्मा भारतीय चिंतन में तीज त्यौहार केवल धर्मिक अनुष्ठान और परमात्मा की कृपा प्राप्त करने तक सीमित नहीं है । परमात्मा के रूप में परम् शक्ति की कृपा आंकाक्षा तो है ही साथ ही इस जीवन को सुन्दर और सक्षम बनाने का भी निमित्त तीज त्यौहार हैं । इसी सिद्धांत नवरात्र अनुष्ठान परंपरा में है । इन नौ दिनों में मनुष्य की आंतरिक ऊर्जा को सृष्टि की अनंत ऊर्जा से जोड़ने की दिशा में चिंतन है । आधुनिक विज्ञान के अनुसंधान भी इस निष्कर्ष पर पहुंच गये हैं कि व्यक्ति में दो मस्तिष्क होते हैं। एक चेतन और दूसरा अवचेतन। इसे विज्ञान की भाषा में "कॉन्शस" और "अनकाॅन्शस" कहा गया है व्यक्ति का अवचेतन मष्तिष्क सृष्टि की अनंत ऊर्जा से जुड़ा होता है । जबकि चेतन मस्तिष्क संसार से । हम चेतन मस्तिष्क से सभी काम करते हैं पर उसकी क्षमता केवल पन्द्रह प्रतिशत ही है । जबकि अवचेतन की सामर्थ्य 85% है । सुसुप्त अवस्था ...
अदालत का फैसला भारतीय संस्कृति की जीत है

अदालत का फैसला भारतीय संस्कृति की जीत है

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- ललित गर्ग - समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का मुद्दा भारतीय जनजीवन में लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत मान्यता देने से इनकार कर वाकई ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच का यह फैसला भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराओं, जीवनमूल्यों, संस्कारों, आदर्शों और भारतीयता की जीत है। अदालत ने समलैंगिक कपल को बच्चे गोद लेने का हक भी देने से इंकार किया है। अदालत का फैसला भारतीय जन भावनाओं एवं संस्कारों की पुष्टि भी करता है साथ ही भारतीय मूल्यों, संस्कृति एवं आदर्शों को धुंधलाने एवं आहत करने वाली विदेशी ताकतों को चेताता है जो कि भारत का सामाजिक एवं पारिवारिक चरित्र बिगाड़ने की साजिश रच रहे हैं। निश्चित ही अदालत का यह सराहनीय फैसला भारत की अतीत से चली आ रही विवाह परम्परा एव...
धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा”

धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा”

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भारत के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि आठ सौ वर्षों के निरन्तर आक्रमण के परिणाम स्वरूप हमारी चिन्तन प्रक्रिया बदल गई है। हम एक हजार वर्ष पूर्व जिन शब्दों को जिन अर्थों में ग्रहण करते थे आज ग्रहण कर पाने में असमर्थ हैं। इनमें एक सबसे महत्वपूर्ण शब्द धर्म है। अब्राहमिक मजहबों के आक्रमणों के फलस्वरूप हमने धर्म को मजहब के पर्याय के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। वास्तविकता तो यह है कि उनके यहाँ धर्म जैसी कोई परिकल्पना है ही नहीं। धर्म एक वृहत्तर और व्यापक परिकल्पना है। धर्म परलोक पर आधारित नहीं लोक पर आधारित होता है। धर्म स्वयं के लिए ही नहीं सबके लिए होता है। धर्म की महत्ता उसकी व्यापकता पर निर्भर करती है। धर्म का कर्म स्वयं से प्रारम्भ होकर समष्टि में विलीन होता है। जो कर्म सभी के लिए और सबका है वही धर्म है। धर्म की क्रिया मरने के बाद स्वर्ग के लिए नहीं जीते जी लोक के लिए हो...