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संस्कृति और अध्यात्म

अदालत का फैसला भारतीय संस्कृति की जीत है

अदालत का फैसला भारतीय संस्कृति की जीत है

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- ललित गर्ग - समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का मुद्दा भारतीय जनजीवन में लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत मान्यता देने से इनकार कर वाकई ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच का यह फैसला भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराओं, जीवनमूल्यों, संस्कारों, आदर्शों और भारतीयता की जीत है। अदालत ने समलैंगिक कपल को बच्चे गोद लेने का हक भी देने से इंकार किया है। अदालत का फैसला भारतीय जन भावनाओं एवं संस्कारों की पुष्टि भी करता है साथ ही भारतीय मूल्यों, संस्कृति एवं आदर्शों को धुंधलाने एवं आहत करने वाली विदेशी ताकतों को चेताता है जो कि भारत का सामाजिक एवं पारिवारिक चरित्र बिगाड़ने की साजिश रच रहे हैं। निश्चित ही अदालत का यह सराहनीय फैसला भारत की अतीत से चली आ रही विवाह परम्परा एव...
धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा”

धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा”

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
भारत के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि आठ सौ वर्षों के निरन्तर आक्रमण के परिणाम स्वरूप हमारी चिन्तन प्रक्रिया बदल गई है। हम एक हजार वर्ष पूर्व जिन शब्दों को जिन अर्थों में ग्रहण करते थे आज ग्रहण कर पाने में असमर्थ हैं। इनमें एक सबसे महत्वपूर्ण शब्द धर्म है। अब्राहमिक मजहबों के आक्रमणों के फलस्वरूप हमने धर्म को मजहब के पर्याय के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। वास्तविकता तो यह है कि उनके यहाँ धर्म जैसी कोई परिकल्पना है ही नहीं। धर्म एक वृहत्तर और व्यापक परिकल्पना है। धर्म परलोक पर आधारित नहीं लोक पर आधारित होता है। धर्म स्वयं के लिए ही नहीं सबके लिए होता है। धर्म की महत्ता उसकी व्यापकता पर निर्भर करती है। धर्म का कर्म स्वयं से प्रारम्भ होकर समष्टि में विलीन होता है। जो कर्म सभी के लिए और सबका है वही धर्म है। धर्म की क्रिया मरने के बाद स्वर्ग के लिए नहीं जीते जी लोक के लिए हो...
<strong>EFFORTS TOWARDS WORLD PEACE NOT GOING  ANYWHERE</strong>

EFFORTS TOWARDS WORLD PEACE NOT GOING  ANYWHERE

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N.S.Venkataraman                                                                       Even a cursory glance on human history over the past thousands of years  would highlight that  wars and conflicts , jealousy and greed , lust and   vengeance  had been the order of the day. Of course, there have also been events   of harmony and peace but they have been few and far between and have been more of an exception rather  than rule  and they have been like a flash in the pan.  The great Indian epics  Ramayana and Mahabharatha discuss several characters and a number of such characters have been violent, prone , unethical and quarrelsome.  At the same time, there have also been noble men and women and saints described in the ep...
भारतीय संस्कृति वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु बनने की ओर अग्रसर

भारतीय संस्कृति वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु बनने की ओर अग्रसर

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भारत आदि काल से ही एक जीता जागता राष्ट्र पुरुष है, यह मात्र एक जमीन का टुकड़ा नहीं है। भारत के कंकड़ कंकड़ में शंकर का वास बताया जाता है। हाल ही के कुछ वर्षों में भारत के आर्थिक विकास में विरासत पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है और भारत में आर्थिक विकास के साथ ही सांस्कृतिक विकास पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। जिसके चलते अन्य देशों की तुलना में भारत की आर्थिक विकास दर मजबूत बनी हुई है। बल्कि अब तो अन्य कई देश, विकसित देशों सहित, भी अपने आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के हल हेतु एवं अपने आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से भारतीय सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं। भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता 75 वर्ष पूर्व ही प्राप्त कर ली थी, परंतु भारत की सनातन संस्कृति आदि काल से चली आ रही है एवं लाखों वर्ष पुरानी है। भारत को ‘सोने की चिड़िया’ के रूप में जाना जाता रहा है और भारतीय सनातन...
सामाजिक समरसता के अग्रदूत व श्रीराम मंदिर आंदोलन के प्रणेता- महंत अवैद्यनाथ

सामाजिक समरसता के अग्रदूत व श्रीराम मंदिर आंदोलन के प्रणेता- महंत अवैद्यनाथ

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12 सितंबर पर विशेष -सामाजिक समरसता के अग्रदूत व श्रीराम मंदिर आंदोलन के प्रणेता- महंत अवैद्यनाथमृत्युंजय दीक्षितयोग, दर्शन व अध्यात्म के मर्मज्ञ महान संत महंत अवैद्यनाथजी का जन्म पौढ़ी गढ़वाल के ग्राम कांडी में हुआ था। महंत अवैद्यनाथ की माता जी का स्वर्गवास जब वह बहुत छोटे थे तभी हो गया था और उनका लालन पालन दादी ने किया था उच्च्तर माध्यकि स्तर शिक्षा पूर्ण होते ही उनकी दादी का भी निधन हो गया। जिसके कारण उनका मन इस संसार के प्रति उदासीन होता गया। उनके मन में वैराग्य का भाव गहरा होता गया। वह अपने पिता के एकमात्र संतान थे अतः उन्होंने अपनी संपत्ति अपने चाचाओं को दे दी और पूरी तरह से वैराग्य जीवन में आ गये।महंत अवैद्यनाथ जी ने बहुत कम समय में ही बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगो़त्री, यमुनोत्री आदि तीर्थस्थलों की यात्रा की। कैलाश मानसरोवर की यात्रा से वापस आते समय अल्मोड़ा में उन्हें हैजा हो गया और उन...
प्रधानमंत्री ने विश्व संस्कृत दिवस पर शुभकामनाएं दीं

प्रधानमंत्री ने विश्व संस्कृत दिवस पर शुभकामनाएं दीं

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व संस्कृत दिवस के अवसर पर शुभकामनाएं दी हैं। श्री मोदी ने उन सभी लोगों की भी प्रशंसा की जो संस्कृत के प्रति बहुत भावुक हैं। प्रधानमंत्री ने इस दिवस को मनाने के लिए सभी से संस्कृत में एक वाक्य साझा करने का भी अनुरोध किया है। एक्स पोस्ट की एक श्रृंखला में  प्रधानमंत्री ने कहा; “विश्वसंस्कृतदिवसे मम शुभकामनाः। अहं सर्वान् अभिनन्दामि ये एतदर्थं भावुकाः सन्ति। संस्कृतेन सह भारतस्य संबन्धः विशिष्टः। “विश्व संस्कृत दिवस पर मेरी शुभकामनाएं। मैं उन सभी की प्रशंसा करता हूं, जो संस्‍कृत के प्रति बहुत भावुक हैं। भारत का संस्कृत के साथ बहुत विशिष्‍ट संबंध है। इस महान भाषा का उत्सव मनाने के लिए, मैं आप सभी से संस्कृत में एक वाक्य साझा करने का अनुरोध करता हूं। नीचे पोस्ट में मैं भी एक वाक्य साझा करूंगा। ##CelebratingSanskrit”  का उपयोग करना न...
श्रीमद्वाल्मीकि रामायण में अर्थ प्रबन्धन

श्रीमद्वाल्मीकि रामायण में अर्थ प्रबन्धन

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रीमद्वाल्मीकि रामायण में अर्थ प्रबन्धनश्रीमद्वाल्मीकीय रामायण इस पृथ्वी पर प्रथम काव्य ही नहीं महाकाव्य भी है। भारत के लिए यह परम गौरव की बात है। यह पवित्र रामायण हमारी अत्यन्त मूल्यवान धरोहर है। इसका संग्रह पठन पाठन एवं श्रवण कर हम मनुष्य होने का लाभ ले सकते हैं। इस ग्रन्थ में राजा के आर्थिक (वित्तीय) अधिकार, प्रजा के प्रति कर्तव्यों और राज्य की सुव्यवस्था के लिए पूरी-पूरी स्पष्ट व्याख्या की गई है। इसी क्रम में यहाँ राज्य संचालन में आर्थिक प्रबन्धन पर महर्षि वाल्मीकिजी ने अत्यन्त ही सरल शब्दों में वर्णन किया है। यह रामायण में वर्णित आर्थिक (वित्तीय) व्यवस्था का वर्णन आज भी प्रासंगिक है। अत: रामायण सर्वाधिक लोकप्रिय, अजर-अमर (कालजयी) दिव्य तथा कल्याणकारी ग्रन्थ है।भारतीय जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज मूल्यों का ह्रास की चर्चा है। इसी सन्दर्भ में इस आलेख में महर्षि वाल्मीकि की रामायण म...
इतिहास का सच है गुलाम नबी का कथन

इतिहास का सच है गुलाम नबी का कथन

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विजयमनोहरतिवारी पश्चिम की दुनिया ने तो इस सदी में 9/11 का स्वाद चखा और इस्लामी आतंक की शक्ल ठीक से देखी। मगर भारत का चप्पा-चप्पा ऐसे अनगिनत 9/11 से भरा हुआ है। एक ही शहर में कई-कई 9/11 हैं। ये हजार साल में इतनी-इतनी बार हुए हैं कि इंसानी याददाश्त ही चकरा जाए। जिस समय यह अंधड़ चल रहे थे उसी समय 50 से ज्यादा लेखकों के लिखे दस्तावेजों में इनकी भयावता दर्ज है और इन लेखकों में सारे ही मुस्लिम थे। मैंने ये दस्तावेज अनेक बार पढ़े-पलटे हैं और इन घटनाओं को रेखांकित किया है। धर्मांतरण के ब्यौरे ऐसे अपमानजनक हैं कि आज कोई भी आत्मसम्मान वाला व्यक्ति अपने अतीत में झांकने भर से खुदकुशी कर ले। इसलिए कश्मीर में गुलाम नबी आजाद ने जो कहा है, उसे इतिहास की रोशनी में देखिए, किंतु राजनीति की आँख से नहीं। अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) के समय दिल्ली में गुलामों के बाजार में बिकती लड़कियों और महिलाओं ...
भारत जीवन दर्शन के साथ उदित होने की ओर अग्रसर

भारत जीवन दर्शन के साथ उदित होने की ओर अग्रसर

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अवधेश कुमारहम अंग्रेजों से अपनी मुक्ति का 75 वर्ष पूरा कर चुके हैं। इसे अमृत महोत्सव नाम दिया गया था। जब सूर्य लालिमा के साथ निकल रहा हो और उसका पूर्ण उदय नहीं हुआ हो उसे ही अमृत काल कहते हैं। स्वीकार करना होगा की स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को अमृत काल नाम देने के पीछे सोच अत्यंत गहरी है। साफ है कि काफी विचार-विमर्श के बाद अमृत काल नाम दिया गया होगा। राजनीति और मीडिया के बड़े वर्ग ने वातावरण ऐसा बना दिया है जिसमें स्वतंत्रत भारत की स्थिति, स्वतंत्रता संघर्ष के सपने, स्वतंत्रता मिलने के समय की परिस्थितियां, नेताओं की भूमिका आदि पर सच बोलना कठिन हो गया है। कौन उसमें से क्या अर्थ निकालकर बवंडर खड़ा कर देगा अनुमान लगाना आज मुश्किल होता है। स्थिति ऐसी बना दी गई है कि आज विभाजनकालीन परिस्थितियों की बात करने से जानकार लोग भी डरने लगे हैं। पता नहीं कौन उन्हें सांप्रदायिक और क्या-क्या घोषित कर देगा...
भारतीय परंपरा, संस्कृति और विचार की सच्ची प्रतीक और संवाहक रही है संस्कृत।

भारतीय परंपरा, संस्कृति और विचार की सच्ची प्रतीक और संवाहक रही है संस्कृत।

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भले ही आज के युग में संस्कृत को एक 'मृत भाषा' की संज्ञा दे दी गई है लेकिन संस्कृत ही आज दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे सबसे प्राचीन भाषा होने का गौरव प्राप्त है। आज दुनिया में लगभग 6-7 हजार से भी ज्यादा भाषाओं का प्रयोग किया जाता है और इन सभी भाषाओं की जननी संस्कृत को ही माना जाता है। यहां यह कहना कदापि ग़लत नहीं होगा कि  संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है, एक संस्कार है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है ,सहयोग है वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना निहित है।महर्षि श्री अरबिंदों के शब्दों में ‘अगर मुझसे पूछा जाए कि भारत के पास सबसे बड़ा खजाना क्या है और उसकी सबसे बड़ी विरासत क्या है, तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दूंगा कि यह संस्कृत भाषा और साहित्य है और इसमें वह सब कुछ है। यह एक शानदार विरासत है, और जब तक यह हमारे लोगों के...