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साहित्य संवाद

संभलिये, दुष्काल की परिणति अपराध वृद्धि हो सकती है

संभलिये, दुष्काल की परिणति अपराध वृद्धि हो सकती है

राज्य, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
इस दुष्काल में कई प्रकार के सर्वे आ रहे हैं | सबको विश्वसनीय नहीं माना जा सकता और न ही सबको अविश्वसनीय |लेकिन जिन सर्वेक्षणों के साथ कोई सरकारी एजेंसी  या कोई अन्य साखपूर्ण संस्था जुडी हो, उसके अनुमान को नकारा नहीं जा सकता | देश के जाने-मने सामाजिक शोध संस्थान ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा है कि “कोरोना संक्रमण से उपजे संकट ने जिस तरह देश की आर्थिकी व सामाजिक ताने-बाने को झंझोड़ा है, उसके नकारात्मक प्रभावों का सामने आना लाजिमी है। आज समाज एक अप्रत्याशित भय व असुरक्षा की मनोदशा में पहुंचा है। एक अलग तरह की हताशा व कुंठा का भाव लोगों में घर कर गया है।इसके परिणाम स्वरूप अपराध में वृद्धि हो सकती है | “ वैसे यह साफ़ नजर आ रहा है कि तालाबंदी के पहले दौर ही ने करोड़ों लोगों के रोजगार छीने, ऐसे लोग अभी तक सामान्य स्थिति हासिल नहीं कर पाये। ऐसे में समाज में अपराधों के बढ़ने के लिए उर्वरा भूमि तैया...

भारत के लिए नया सिरदर्द

CURRENT ISSUE, जीवन शैली / फिल्में / टीवी, विश्लेषण, समाचार, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
इन दिनों मुसीबतों के कई छोटे-मोटे बादल भारत पर एक साथ मंडरा रहे हैं। कोरोना, चीन और तालाबंदी की मुसीबतों के साथ-साथ अब लाखों प्रवासी भारतीयों की वापसी के आसार भी दिखाई पड़ रहे हैं। इस समय खाड़ी के देशों में 80 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। कोरोना में फैली बेरोजगारी से पीड़ित सैकड़ों भारतीय इन देशों से वापस भारत लौट रहे हैं। यह उनकी मजबूरी है लेकिन बड़ी चिंता का विषय यह है कि इन देशों के शासकों पर दबाव पड़ रहा है कि वे विदेशी कार्मिकों को भगाएं ताकि स्थानीय लोगों के रोजगार में बढ़ोतरी हो सके। इन देशों के कई उच्चपदस्थ शेखों से आजकल जब मेरी बात होती है तो वे यह कहते हुए पाए जाते हैं कि उनके बच्चे अभी-अभी विदेशों से पढ़कर लौटे हैं लेकिन अपने ही देश में सब अच्छी नौकरियों पर विदेशियों ने कब्जा कर रखा है। इस प्रपंच पर इधर सबसे पहले ठोस हमला किया है, कुवैत ने। कुवैत में कुवैतियों की संख्या सिर्फ 13 लाख है जब...
आहत भावनाओं का comfort zone

आहत भावनाओं का comfort zone

जीवन शैली / फिल्में / टीवी, विश्लेषण, समाचार, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
मशहूर सिटकॉम Big Bang Theory के एक एपिसोड में उसका एक किरदार Howard बताता है कि इस हफ्ते वो मशहूर भौतिक विज्ञानी Stephen Hawking से काम के सिलसिले में मिलने वाला है। दोस्तों के इस बारे में बताते हुए Howard, Hawking की मिमिक्री भी करके दिखाता है। हम सभी जानते हैं कि 21 साल की उम्र में Hawking मोटर न्यूरॉन डिसीज का शिकार हो गए थे और वो स्पीच सिंथेसाइजर की मदद से बोलते थे जिसके कारण उनकी आवाज़ अलग तरह से सुनाई देती थी। हॉकिंग की मिमिक्री करते हुए Howard उनके इसी अलग अंदाज़ की नकल करता है। अब आप सोचिए एक शख्स जो पिछले सौ सालों का महानतम भौतिक विज्ञानी हैं। जो बचपन की एक बीमारी की वजह से अपनी आवाज़ खो बैठा है। एक मशहूर सिटकॉम शो के क्रिएटर उसे अपने शो में सेलिब्रीटी की हैसियत से बुलाते हैं और इतनी छूट भी ले लेते हैं कि बीमारी से उपजी उसकी एक कमज़ोरी का मज़ाक भी उड़ा पाएं! और उससे...
क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप भारी पड़ रहा है?

क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप भारी पड़ रहा है?

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भारत सरकार के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) ने 2 जुलाई 2020 को कहा था कि 15 अगस्त 2020 (स्वतंत्रता दिवस) तक कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से बचाव के लिए वैक्सीन के शोध को आरंभ और समाप्त कर, उसका "जन स्वास्थ्य उपयोग" आरंभ किया जाए. क्योंकि यह फरमान भारत सरकार के सर्वोच्च चिकित्सा शोध संस्था से आया था, इसलिए यह अत्यंत गंभीर प्रश्न खड़े करता है कि क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप ने ग्रहण लगा दिया है? भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद ने अगले दिन ही स्पष्टीकरण दिया कि उसने यह पत्र इस आशय से लिखा था कि वैक्सीन शोध कार्य में कोई अनावश्यक विलम्ब न हो. परन्तु सबसे बड़े सवाल तो अभी भी जवाब ढूंढ रहे हैं. पिछले सप्ताह एक संसदीय समिति को विशेषज्ञों ने बताया कि वैक्सीन संभवत: 2021 में ही आ सकती है (15 अगस्त 2020 तक नहीं). विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामी...

साइकल्स फॉर चेंज से लौटेगी अब साइकिल

समाचार, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
कोरोना काल में साइकिल का क्रेज आये दिन बढ़ रहा है। अब लॉकडाउन के कारण बदली जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति लोग अधिक जागरूक हो रहे हैं।तभी तो साइकिल की खरीदारी भी बढ़ रही है। आज युवाओं के अलावा इंजीनियर, प्रोफेसर, डॉक्टर, रिटायर कर्मचारी और प्रोफेशनल लोग भी सेहत बढ़ाने के लिए साइकिल की खरीदारी करने लगे हैं। कोरोना संकट के दौर में परिवहन के लिए साइकिल मुफीद साधन है। इस काल में साइकिल की सवारी सस्ती और सुलभ होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से भी मुफीद है। पर हमारी सरकारों ने नगर नियोजन में साइकिलों के बारे में बहुत कम सोचा है। आधुनिक चमक-दमक के पीछे भागने वाला भारतीय मध्य वर्ग वैसे भी साइकिलों पर चलना हेठी समझता है. पर आज अब कोरोना काल में साइकिल बहुत सारी समस्याओं का समाधान है। दरअसल, हमारी सोच ही अभिजात वर्ग की तरह हो चली है। हम सड़कों का निर्माण कार य...
स्वामी विवेकानन्द थे भारतीयता की संजीवनी बूंटी

स्वामी विवेकानन्द थे भारतीयता की संजीवनी बूंटी

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महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका मानवहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी होता है और युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। स्वामी विवेकानंद हमारे ऐसे ही एक प्रकाश-स्तंभ हैं, वे भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक एवं आध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देने वाले एक महामनीषी युगपुरुष थे। जिन्होंने 4 जुलाई 1902 को महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए थे। स्वामी विवेकानन्द का संन्यास एवं संतता संसार की चिन्ताओं से मुक्ति या पलायन नहीं था। वे अच्छे दार्शनिक, अध्येता, विचारक, समाज-सुधारक एवं प्राचीन परम्परा के भाष्यकार थे। काल के भाल पर कुंकुम उकेरने वाले वे सिद्धपुरुष हंै। वे नैतिक मूल्यों के विकास एवं युवा चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध, मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग ...
जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता है, समझ लीजिये कि वह खुदा से उतनी ही दूर है! – प्रेमचंद

जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता है, समझ लीजिये कि वह खुदा से उतनी ही दूर है! – प्रेमचंद

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8 अक्टूबर - कथा-सम्राट प्रेमचंद की पुण्य तिथि पर शत शत नमन!   महान लोग वाकई महान होते है हिन्दी जगत के महान लोकप्रिय लेखक मंुशी प्रेमचंद की मानव जाति सदैव ऋणी रहेगी। उन्हें परवाह थी तो बस अपनी कलम की धार की, न फटे जूतों की न ही गरीबी से तंग हाल की। वह साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारने वाले तथा आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट थे। इस साहित्य जगत के महान सम्राट के जीवन की शुरूआत गरीबी से नंगे पाँव हुई थी। प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी केनिकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती आनन्दी देवी व पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनके पिता लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद 7 साल के थे तभी उन्होंने लालपुर के मदरसा में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। मदरसा में प्रेमचंद ने मौलवी से उर्दू और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और ...
For national pride give prominence to Bhaaratiya Bhasha

For national pride give prominence to Bhaaratiya Bhasha

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Are we free? We can consider ourselves free only when we break the shackles placed on our culture, language, mind and economy by colonialism, Marxism, religious fundamentalism and pseudo secularism. Only when we contribute to a greater Bhaarat and a better humanity, can we claim to be free. None are more hopelessly enslaved than those who falsely believe they are free. ~ Johann Wolfgang von Goethe Centuries of slavery gave us so much INFERIORITY COMPLEX that adoring, trusting, serving the FOREIGNERS has become the "way of life" of Hinduus who take pride in being "nishkam sewaks" of their colonial masters. This has ruined the gene quality of the Hinduu nation in Bhaarat to an immeasurable extent. Bhaaratiya people like the imposition of a foreign language English but oppose spreading of...
सूचना क्रांति के फायदे

सूचना क्रांति के फायदे

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जहां एक तरफ भारत के समाचार टीवी चैनल सतही, ऊबाऊ, भड़काऊ, तथ्यहीन व सनसनीखेज समाचारों और कार्यक्रमों से देश की जनता कासमय बर्बाद कर रहे हैं, उनका ध्यान असली मुद्दों से हटाकर फालतू की बहसों में उलझा रहे हैं। वहीं सूचना क्रांति का एक लाभ भी हुआ है। भारतऔर विदेश के अनेक टीवी चैनलों ने अनेक तथ्यात्मक और ऐतिहासिक सीरियल बनाकर दुनियाभर के दर्शकों को प्रभावित किया है। इन सीरियलों सेहर पीढ़ी के दर्शक का खूब ज्ञानबर्द्धन हो रहा है। मनोरंजन तो होता ही है। यहां मैं कुछ उन सीरियलों का जिक्र करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझ जैसेगंभीर दर्शक को भी आकर्षित किया है। वह भी तब जबकि मैं सबसे कम टीवी देखने वालों में हूं। इस श्रृंखला में एक महत्वपूर्णं सीरियल है, जिसने मेरे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला, वो है ‘बुद्ध’। भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी परआधारित इस सीरियल को हर आयु का व्यक्ति पसंद करेगा और उसे भारत की उस दिव...
अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक

अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक

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देश का वातावरण इस हद तक विषाक्त हो चुका है कि अब संस्कृत भाषा को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है। अब केन्द्रीय विद्यालयों में प्रतिदिन सुबह होने वाली प्रार्थना पर भी निशाना साधा जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह संस्कृत प्रार्थना धर्मनिरपेक्ष भारत में नहीं होनी चाहिए। अब वो दिन दूर नहीं है जब केन्द्रीय विद्लाय के ध्येय वाक्य पर भी सवाल खड़े किए जाएंगे। केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना तब हुई जब कि मोहम्मद करीम छागला देश के शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ईशावास्योपनिषद के श्लोक “हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्, तत्त्वं पूषन्नपातृणु सत्यधर्माय दृष्टये” से ही केन्द्रीय विद्यालयों का ध्ययेवाक्य“तत्वंपूषण अपावर्णु” को चुना जिसका अर्थ होता है सत्य जो अज्ञान के पर्दे से ढंका है उसपर से अज्ञान का पर्दा उठा दो। इस प्रार्थना के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई है। अब ...