राजस्थान का अनुपम व्याख्यान
एक रिपोर्ट : द्वितीय अनुपम स्मृति (19 दिसम्बर, 2018)
कथाओं को खंगालने का वक्त
लेखक: अरुण तिवारी
''दबे पांव उजाला आ रहा है।
फिर कथाओं को खंगाला जा रहा है।
धुंध से चेहरा निकलता दिख रहा है
कौन क्षितिजों पर सवेरा लिख रहा है।''
ये शब्द, अंश हैं कानपुर में जन्मे यशस्वी कवि यश मालवीय की एक कविता के। तिथि थी, 19 दिसम्बर, 2018। अवसर था, हरित स्वराज संवाद द्वारा आयोजित द्वितीय अनुपम स्मृति का। इन शब्दों का उल्लेख कर रही थीं श्रीमती रागिनी नायक। रागिनी नायक यानी अनुपम फूफा जी की भतीजी, जनसत्ता और सहारा समय जैसे अखबारों में संपादन दायित्व निभा चुके...सकारात्मक पत्रकारिता के पैरोकार श्री मनोहर नायक की पुत्री और कांग्रेस की प्रवक्ता।
रागिनी जी, श्री अनुपम मिश्र जी का परिचय परोस रही थीं। चंद लम्हे, चंद जज्बात और चंद आंसुओं में वह वो सब बयां कर रही थीं, जो कुछ उन्होने अनुपम जी के पारिवार...