अनंतनाग का रक्त-तिलक
भारत-विभाजन के समय के लोमहर्षक नरसंहार से लेकर कश्मीरी पंडितों का विस्थापन, गोधरा की आग, और अब ये मालदा, धुलागढ़, बशीरहाट तक के प्रकरण और अब अनंतनाग की वीभत्स घटनाएँ, ये सब पैदावार हैं उन्ही घटिया और संकर बीजों की, जो आज़ादी के समय भारत के तत्कालीन राजनैतिक नेतृत्व, जी हाँ, बड़बोले चच्चा नेहरू और अलोकतांत्रिक और अव्यवहारिक व्यक्तित्व मोहनदास करमचंद गाँधी की बात कर रहा हूँ, ने अन्य भारतीय नेताओं की असहमतियों और भिन्न विचारधाराओं को दरकिनार कर बलात बोए थे। तिलक-सुभाष, राजेन्द्र प्रसाद-पटेल, इंका-आपातकाल के संदर्भ से लेकर एडविना, मनुबेन, धीरेंद्र ब्रह्मचारी तक के प्रसंगों का निरपेक्ष पुनरावलोकन जिन निष्कर्षों तक हमे-आपको ले जाता, उसकी मुक्त-मीमाँसा और निरपेक्ष-चर्चा तक को इन बगुला-भगतों और उनके राजनैतिक और वैचारिक उत्तराधिकारियों और लाभान्वितों द्वारा मिलकर योजनाबद्ध तरीके से गढ़े गए, खड़े किए गए...