
नोटबंदी से बदहाल किसान को बजट से अपेक्षा
भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसके चलते यहां की अर्थव्यवस्था का आधार भी खेती-किसानी है। आज भी गांव व शहर की आबादी को मिला कर अस्सी फीसदी तक लोग खेती-किसानी के काम में जुटे है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केन्द्र सरकार जो भी काम करेगी या निर्णय लेगी इतनी बड़ी आबादी को ध्यान में रख कर ही लेगी, लेकिन मोदी सरकार ने नोटबंदी के समय इस पूरी आबादी को नजर अंदाज कर दिया। हालात ये बने कि देश का तमाम सारा किसान दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हो गया। नोटबंदी को लेकर जैसे-जैसे वक्त बितते जा रहा है वैसे-वैसे इसकी सच्चाई सामने आती जा रही है। नोटबंदी के चलते आम नागरिकों ने जो नरक भोगा है उसका जिक्र करना तो यहां लाजिमी नही लगता है लेकिन किसानों ने जो भोगा है उस पर नजरे इनायत करते है। फिलहाल हम नोटबंदी से किसान को होने वाले नुकसान और परेशानी पर बात करते है। नोटबंदी को लेकर हाल ही में देश के किसान नेताओं का...