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संस्कृति और अध्यात्म

*राममंदिर से रामराज्य की ओर बढ़ने के कुछ पहलू।

*राममंदिर से रामराज्य की ओर बढ़ने के कुछ पहलू।

संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
भारत वर्ष सभ्यतामूलक दृष्टि से दुनिया का नेतृत्व करता रहा है। कालांतर में वैभव, प्रमाद, आलस्य, आत्मविस्मृति और सदगुण विकृति से प्रभावित हुआ। फलतः पिछले 5-7 सौ वर्षों में निरंतर संघर्षरत रहा। *पिछले 200 वर्ष तो चिंताजनक रहे। पर भारतीय चेतना फिर से आग्रही चैतन्यवान स्वरुप की ओर 1800 से बढ़ी।* *दुनिया की हलचलों को समझकर भारतीय समाज ने अब मानव केन्द्रिक विकास की जगह प्रकृति केन्द्रिक विकास की ओर कदम बढाये हैं। देसी, स्वदेशी और विकेन्द्रीकरण की आग्रही राजनैतिक, आर्थिक सुव्यवस्था की मांग अब बढ़ रही है।* समाज, सरकार दोनों को समझ मे आ रहा है कि रामराज्य हमारा आदर्श है। वह *रामराज्य ही राम के भारत को स्वीकार्य है।* उसके अनुकूल है प्रकृति का संपोषण करने वाली प्रकृति केन्द्रिक विकास की संकल्पना। उससे ही मेल खाती है महात्मा गांधीजी के हिन्द स्वराज की सभ्यता मूलक दृष्टि और रा. स्व. संघ के परम वैभव का ...
Celebrate Ram temple commencement poojan day, with Corona watchfulness: VHP

Celebrate Ram temple commencement poojan day, with Corona watchfulness: VHP

संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
New Delhi, July 25, 2020 – The Vishva Hindu Parishad has prepared a comprehensive action plan regarding the worship to be held for the re-construction of the temple on Shri Ram's birthplace. According to this, while on coming 5th August in Ayodhya, the Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modi will be worshiping with revered saints, scholars, trustees and other dignitaries for the grand Janmabhoomi temple of Bhagwan Shri Ram, the whole country & the world will be watching live on TV the unique historic episode. With coalescence of water from holy rivers and sacred earth from the pilgrimage centres of the country in this Poojan, this temple of Shri Ram Janmabhoomi will be an enduring and immortal beaming centre of social harmony, national unity and integration and awakening of the feeli...
स्ट्रोक के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार शारीरिक निष्क्रियता

स्ट्रोक के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार शारीरिक निष्क्रियता

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भारत फैलने वाली बीमारियों से लेकर न फैलने वाली बीमारियों से घिरा हुआ है। भारत में होने वाली मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में स्ट्रोक भी शामिल होता है। एक हालिया अध्ध्यन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में एक लाख लोगों में से 84,000 लोग और शहरों में एक लाख में से 35,000 लोग स्ट्रोक का शिकार बनते हैं। स्ट्रोक के कारण गंभीर रूप से बीमार पडऩे के साथ व्यक्तिकी जान तक जा सकती है। स्ट्रोक एक गंभीर समस्या है, जिसका तत्काल इलाज करना आवश्यक होता है। यह मस्तिष्क से संबंधित समस्या है, जो खून के प्रवाह के रुकने से होती है। यह समस्या मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट कर देती है और कई मामलों में इससे ब्लीडिंग की समस्या भी हो सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, स्ट्रोक का खतरा 55 साल से अधिक उम्र के लोगों में ज्यादा होता है। लेकिन आज, लाइफस्टाइल में बदलाव और एक्सरसाइज में कमी, धूम्रपान और शराब क...
Demoralising and demeaning the achievers

Demoralising and demeaning the achievers

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It is happening this year again as was expected. The moment the 10th and 12th results were released, the so called pseudo-intellectuals jumped into the meaningless debate, similarly as the frogs come out from ground in rainy season. These so called erudite following their usual agenda to devalue or defame those who have secured high marks and to console those who got comparatively lesser marks. They, in order to dishearten and demoralise those who have endeavour hard, are questioning about the possibility of securing 98 and 99 percent marks. They are ignoring the fact that at only hand may excelle. On the other hand, thousands of students have failed also. Hundreds of thousands of them have  secured below 50 percent marks. It is hard to believe, when some so called intellectuals gone to t...
शिक्षा माफियाओं के दबाव में स्कूल और डिजिटल शिक्षा

शिक्षा माफियाओं के दबाव में स्कूल और डिजिटल शिक्षा

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल स्कूलों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है।  केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन भारत में कुछ राज्य इन सबके बावजूद भी स्कूल खोलने की कवायद में जी- जान से जुड़े है। पता नहीं उनकी क्या मजबूरी है?  मुझे लगता है वो स्कूल माफियाओं के दबाव में है। आपातकालीन स्थिति में इस तकनीकी युग में बच्चों को शिक्षित करने के हमारे पास आज हज़ारों तरीके है। ऑनलाइन या डिजिटल स्टडी से बच्चों को घर पर ही पढ़ाया जा सकता है तो स्कूलों को खोलने में इतनी जल्दी क्यों ? वैश्विक महामारी जिसमे सोशल डिस्टन्सिंग ही एकमात्र उपाय है के दौरान स्कूल खोलने में इतनी जल्बाजी क्यों ? सरकारों को चाहिए की जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आती स्कूल न ...
हिंदी कैसे बने राष्ट्रभाषा ?

हिंदी कैसे बने राष्ट्रभाषा ?

संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
भारत में उत्तरप्रदेश हिंदी का सबसे बड़ा गढ़ है लेकिन देखिए कि हिंदी की वहां कैसी दुर्दशा है। इस साल दसवीं और बारहवीं कक्षा के 23 लाख विद्यार्थियों में से लगभग 8 लाख विद्यार्थी हिंदी में अनुतीर्ण हो गए। डूब गए। जो पार लगे, उनमें से भी ज्यादातर किसी तरह बच निकले। प्रथम श्रेणी में पार हुए छात्रों की संख्या भी लाखों में नहीं है। यह वह प्रदेश है, जिसने हिंदी के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों और देश के सर्वाधिक प्रधानमंत्रियों को जन्म दिया है। हिंदी को महर्षि दयानंद ‘आर्यभाषा’ और महात्मा गांधी ‘राष्ट्रभाषा’ कहते थे। नेहरु ने उसे ‘राजभाषा’ का दर्जा दे दिया लेकिन 73 साल की आजादी के बाद हिंदी के तीनों नामों का हश्र क्या हुआ ? ‘आर्यभाषा’ तो बन गई ‘अनार्य भाषा’ याने अनाड़ियों की भाषा ! कम पढ़े-लिखे, गांवदी, पिछड़े, गरीब-गुरबों की भाषा। ‘राष्ट्रभाषा’ आप किसे कहेंगे ? यह ऐसी राष्ट्रभाषा है, जिसका प्रयोग न तो र...
कोविड-19 महामारी में महिलाधिकार क्यों अधिक खतरे में?

कोविड-19 महामारी में महिलाधिकार क्यों अधिक खतरे में?

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वर्तमान कोरोना वायरस रोग (कोविड-१९) महामारी के कारणवश इस वर्ष का विश्व जनसंख्या दिवस बहुत ही प्रासंगिक और सामयिक रहा क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, कोविड-१९ महामारी से सम्बंधित तालाबंदी के दौरान महिला-हिंसा और प्रताड़ना में बढ़ोतरी ही हुई है. भारत की प्रख्यात महिलाधिकार कार्यकर्ता, हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अनुबद्ध प्रोफेसर और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़ीं डॉ गीता सेन ने इस बात पर दुःख जताया कि कोविड-१९ महामारी के चलते एशिया पैसिफिक देशों (जिसमें भारत भी शामिल है) में महिलाओं/ किशोरियों से सम्बंधित अनेक प्रचलित हानिकारक प्रथाओं के जोखिम को बढ़ावा मिला है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के यूएनएफपीए की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पापुलेशन रिपोर्ट २०२० में कहा गया है. महामारी के दौरान महिला-हिंसा की समानांतर महामारी करीब ४० सालों से महिलाधिकार के लिए समर्पित डॉ गीता सेन ने बताया कि म...
21वीं शताब्दी के डिजिटल दौर पर वैदिक ‘चश्मा’!

21वीं शताब्दी के डिजिटल दौर पर वैदिक ‘चश्मा’!

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21वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में आईटी क्रान्ति का डिजिटल दौर चल रहा है। पेपरलैश कारोबार को तब निर्ग्रन्थ व्यवस्था थी जो स्मृतिपटल पर चिरस्थाई रूप से सुरक्षित होती थी और सतत् अपग्रेड होती रहती थी। कैशलैश पुरानी परम्परा रही, व्यक्ति की क्रेडिट कार्ड के रूप में व्यक्तित्व नगदी के बगैर जीवन निर्वाह का आधार था। कृषि प्रधान देश में समाज का प्रत्येक वर्ग बिना नगद व्यवहार के सेवा भाव से स्वाभाविक वर्णाश्रम धर्म का निर्वाह करता था, फसल उठने पर बिना लिखापढ़ी के ही प्रत्येक क्रिया कलाप का वार्षिक लेन देन वहैसियत अपग्रेट होता था। तब साइबर क्राइम का खतरा कतई नहीं था। इसी क्रम में कुछेक विन्दुओं को अतीत से वर्तमान का तुलनात्मक विश्लेषण करने का प्रयास है, प्रकृतिवादी अतीत के उस दौर में प्राकृतिक घटक पशु-पक्षी, जल-वायु, आदि दैवीय आपदा का पूर्वानुमान लगाकर संकेत देने की सामथ्र्य रखते है। दरअसल ‘‘दुनिया को ...
दल-बदलुओं के बीच पिसती राजनीति

दल-बदलुओं के बीच पिसती राजनीति

राष्ट्रीय, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
हाल ही में राजस्थान में बिगड़ते राजनीतिक संकट के बीच राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बागी विधायकों को ‘दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता नोटिस जारी किया गया है। इसको लेकर बागी काॅन्ग्रेसी नेता सचिन पायलट और 18 अन्य असंतुष्ट विधायकों ने अयोग्यता नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। मामले पर  बागी विधायकों का तर्क है विधानसभा के बाहर कुछ नेताओं के निर्णयों और नीतियों से असहमत होने के आधार पर उन्हें संसदीय ‘दलबदल विरोधी कानून’ के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है,ऐसा करना गलत है। मामला ये है कि राजस्थान के कांग्रेसी उपमुख्यमंत्री सहित कॉंग्रेस के कुछ बागी विधायक हाल ही में 'काॅन्ग्रेस विधायक दल  की बैठकों में बार-बार निमंत्रण देने के बावज़ूद शामिल नहीं हुए थे। इसके बाद राज्य में पार्टी के मुख्य सचेतक की अपील पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इन विधायकों को...
परीक्षाओं में कम अंक लाने वालों को शाबाशी ?

परीक्षाओं में कम अंक लाने वालों को शाबाशी ?

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सच में फिर से वही हो रहा है, जिसकी आशंका थी। जैसी ही सीबीएसई के 10 वीं और 12 वीं कक्षा के नतीजे आए, बस उसी समय अनेक ज्ञानी लोग मैदान में कूद  गए। ये ही वे प्रकांड ज्ञानी हैं जो हर बार की तरह अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थियों की उपलब्धियों को कम करके आंक रहे हैं और उन विद्यार्थियों  को सांत्वना दे रहे हैं जिनके अपेक्षाकृत खराब अंक आए हैं।  ये अधिक अंक लेने वालों की मेहनत और निष्ठा पर लगभग पानी फेरते हुए यह कह रहे हैं कि यह कैसे हो सकता है कि किसी के 98 या 99 फीसद तक अंक आ जाएं?  यह सब कहते- हुए ये इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि इन परीक्षाओं के परिणामों में हजारों बच्चे तो फेल भी हुए हैं। सैकड़ों के 40-50 पर्सेट तक ही अंक आए हैं।  क्या आप यकीन करेंगे कि कुछ कथित ज्ञानी तो यहां तक रहे हैं कि जिनके बेहतर अंक आए हैं उनमें से बहुत से आईआईटी, मेडिकल या फिर आईआईएम में जायेंगे, पर कोई भी न तो कोरो...