*राममंदिर से रामराज्य की ओर बढ़ने के कुछ पहलू।
भारत वर्ष सभ्यतामूलक दृष्टि से दुनिया का नेतृत्व करता रहा है। कालांतर में वैभव, प्रमाद, आलस्य, आत्मविस्मृति और सदगुण विकृति से प्रभावित हुआ। फलतः पिछले 5-7 सौ वर्षों में निरंतर संघर्षरत रहा।
*पिछले 200 वर्ष तो चिंताजनक रहे। पर भारतीय चेतना फिर से आग्रही चैतन्यवान स्वरुप की ओर 1800 से बढ़ी।*
*दुनिया की हलचलों को समझकर भारतीय समाज ने अब मानव केन्द्रिक विकास की जगह प्रकृति केन्द्रिक विकास की ओर कदम बढाये हैं। देसी, स्वदेशी और विकेन्द्रीकरण की आग्रही राजनैतिक, आर्थिक सुव्यवस्था की मांग अब बढ़ रही है।*
समाज, सरकार दोनों को समझ मे आ रहा है कि रामराज्य हमारा आदर्श है। वह *रामराज्य ही राम के भारत को स्वीकार्य है।* उसके अनुकूल है प्रकृति का संपोषण करने वाली प्रकृति केन्द्रिक विकास की संकल्पना। उससे ही मेल खाती है महात्मा गांधीजी के हिन्द स्वराज की सभ्यता मूलक दृष्टि और रा. स्व. संघ के परम वैभव का ...