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साहित्य संवाद

लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसना शर्मनाक

लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसना शर्मनाक

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
लोक गायकों के नाम पर अश्लील लिंक्स से सोशल मीडिया बाजार भरा पड़ा है। कई चैनलों पर भी इस तरह के गीतो का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है। गीत बिकवाने की होड़, व्यूज और लाइक्स के जरिए पैसा कमाने की लालसा, इन सबने पहले ही संस्कृति व विरासत धूमिल कर डाली है क्योंकि गीत संगीत ही एक ऐसा माध्यम होता है जो समाज को संदेशो का पैगाम देती है। आज ये पैगाम अपनी दिशा बदल चुके हैं। विभिन्न बस स्टेशनों, चलने वाले विभिन्न जीप-कार, बसों में जो गीत सुनने को मिलते हैं उनमें छिछोरापन व लम्पटीकरण का अंदाज साफ झलकता है। इन गीतों का श्रवण विशेषकर युवा वर्ग आनंदपूर्वक करता है। कई अवसरों पर शादी-व्याह आदि उत्सवों में कुछ बुजुर्ग जन भी इस तरह के गीतों पर जमकर ठुमके लगाते हैं। सांस्कृतिक परम्परा पर चिंतन करने वाले लोग इसे लोक संगीत पर गहरी ठेस मानते हैं। आशिकी अंदाज के साथ पाश्चात्य ...
बिहार जाति जनगणना

बिहार जाति जनगणना

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राज्य, साहित्य संवाद
*************************ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं**~ठग्गू के कद्दू - नीतीश पटना वाले*तो जनाब आइए बताता हूं पराभव की कहानी भारत में अधिकतम मेधावी दिमाग वाले राज्य बिहार की कहानी। भारत स्वतंत्र हुआ तबसे लेकर आज तक बिहार कमोबेश 1947 की स्थिति में ही है। संयुक्त बिहार के बारे में प्रसिद्ध था कि पूरे देश को Labour, Mineral व Officer सबसे ज्यादा बिहार से मिलता है। मिनरल गया झारखंड में,ऑफिसर बनने भी कम हो गए, और बच गए *Labour* और इसकी सप्लाई निर्बाध जारी है। मेधावी मस्तिष्क पलायन कर देश तो देश पूरे विश्व के कोने कोने में भाग कर बस गए। *आज बस बिहारी श्रेष्ठता बोध लिए भव्य अतीत के खंडहरों का थोथा गान करने के अलावा बिहारियों के पास कुछ नहीं है।* वर्तमान में बिहार के पास अगर कुछ है तो देश भर के शहरों,महानगरों में झुग्गियों में कीड़ों की तरह बिजबिजाते मजदूर,झुग्गियों से थोड़ा बेहतर कबू...
विकास बिना संस्कार, विनाश का आधार!

विकास बिना संस्कार, विनाश का आधार!

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राज्य, साहित्य संवाद
संघ और भाजपा की विकास नीति सफल हो रही है यह देख कर आनंद होता है। इस से गांधीवादी , रामराज्यवादी , कौटिल्यवादी, जेपीभक्त, और हिन्दुवादी ये सभी फूले नहीं समा रहे है। कांग्रेसी, कौम्युनिस्ट, और अत्याधुनिक वोकवादी लूटे पिटे से फिर रहे हैं। भविष्य में विश्व गुरु भारत का वसुधैव कुटुंब साकार होता लगता है। कोई शक?यस सर।भीषण विकास अमरीका में हुआ। सन् पचास से। आज अमरीका कहाँ है? ऋण के कूप में !!!हर प्रकार का ऋण , केवल आर्थिक ही नहीं !! उन मौलिक जातियों का , प्रवासी जातियों का, और बौद्धिक संस्कृतियों का, जिन्होंने अमरीकी राष्ट्र का निर्माण किया। ऋण चुकाने की बजाए अमरीकी सत्ता की नीति ऋण दाताओं को दमन या युद्ध से दुर्बल करने की है जिसका परिणाम आत्मघात है। चीन भी लगभग उसी प्रक्रिया का शिकार है।क्या यह सब देख कर भारत के कर्णधारों की आँखें नहीं खुल जानी चाहिए? अमरीका-यूरोप ने ग्रीक सिद्धांत, अ...
<strong>“एनिमल” सिर्फ पर्दों तक नहीं होगा सीमित?</strong>

“एनिमल” सिर्फ पर्दों तक नहीं होगा सीमित?

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, जीवन शैली / फिल्में / टीवी, साहित्य संवाद
डॉ अजय कुमार मिश्रा परम्परागत मान्यता हमारे समाज की यही रही है की फ़िल्में हमारें समाज का आइना है और उन्ही बातों और तथ्यों को उजागर करती है जिसकी हमें सच्चे रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता है जिससे सामाजिक एकता के साथ – साथ मानवीय गुणों का विकास सभी वर्गो में हो सकें | एक समय ऐसा भी था जब लगातार ऐसी फिल्मों का निर्माण होता रहा जिससे समाज को नई दिशा मिल सकी कई ऐसी कुरीतियों और पाखंडों सहित अनावश्यक नियमों को तोड़ने का काम हमारी फिल्मों ने किया भी | समय के चक्र ने कब क्षेत्रीय से राष्ट्रीय और अब अंतर्राष्ट्रीय चोला ओढ़ लिया यह पता ही नहीं चला | हम और हमारा समाज अभी भी वर्तमान परिवेश से कही न कही दशकों पीछे है फिर चाहे सुख-सुविधायों, मेडिकल सुविधायों या फिर रोजगार की बात हो | हाँ पर हम अपराध में और रिश्तों के प्रति अपनी संजीदगी और लगाव में भी आत्मा मुग्धता को प्राथमिकता देने लगे है |...
हिंदू समाज की विजयगाथा का प्रतीक है- गीता जयंती

हिंदू समाज की विजयगाथा का प्रतीक है- गीता जयंती

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गीता जयंती पर विशेष -हिंदू समाज की विजयगाथा का प्रतीक है- गीता जयंतीकर्म और धर्म की गतिशीलता का नाम है - गीताश्रीमदभगवदगीता एक ऐसा पुनीत ग्रंथ है जिसमें कर्म व धर्म समाहित हैं। गीता जयंती का पर्व भी कर्म, धर्म व जीवन की गतिशीलता व निरंतरता पर बल देता है। गीता में वेदों का सार तत्व संग्रहीत किया गया है। इसमें धर्म का उपदेश समाहित है, इसमें जीवन जीने की कला का ज्ञान है। इसमें कर्म, भक्ति व ज्ञान का उपदेश हे। इसमें मनुष्य के स्वधर्म का ज्ञान है। गीता की भाषा इतनी सरल है कि थोड़ा सा अभ्यास करने पर मनुष्य सहजता से इसे समझ सकता है।श्रीमदभगवदगीता किसी सामान्य व्यक्ति का उपदेश नहीं है अपितु यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की वाणी है। इसे कहते समय भगवान स्वयं अपने परमात्मस्वरूप में स्थित थे। यह एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो जीवन की हर परिस्थिति के लिये,हर काल के लिये प्रासंगिक है, शाश्वत है। इसके श्लोकों के भाव...
अटलजी बहुत याद आते हैं

अटलजी बहुत याद आते हैं

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-बलबीर पुंज आगामी 25 दिसंबर का देश-दुनिया में बहुत ही महत्व है। इस दिन अर्थात् चार दिन बाद दुनियाभर (भारत सहित) करोड़ों ईसाई आगामी अपने आराध्य ईसा मसीह का जन्मदिवस हर बार की तरह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे। यीशु के असंख्य श्रद्धालुओं को इस बात से रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ता कि यह दिन एक पोप की कोरी-कल्पना पर आधारित है, जिसका उल्लेख बाइबल तक में नहीं है। उनके लिए अपने इष्ट द्वारा प्रदत्त 10 आज्ञाओं की अनुपालना, उनका विनम्र व्यक्तित्व और विनयशील जीवन ही महत्व रखता है। यह संयोग ही है कि इसी दिन वर्ष 1924 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, जननायक और कुशल राजनीतिज्ञ दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी का भी जन्म हुआ था। इस बार उनकी 99वीं जयंती मनाई जाएगी। वर्ष 2014 से भाजपा शासित राज्य सरकार इस दिन को सुशासन दिवस के रूप में मना रहे है। अटलजी से मेरा निजी परिचय 1980 के दशक में हुआ था। वे न केवल आ...
सरदार वल्लभभाई पटेल स्मृति दिवस 15 दिसम्बर 2023 को विशेष

सरदार वल्लभभाई पटेल स्मृति दिवस 15 दिसम्बर 2023 को विशेष

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राष्ट्र को संगठित करने वाले महायोद्धा थे सरदार पटेल- ललित गर्ग- कर्मवीर व्यक्तियों का जीवन विलक्षण होता है, वे अपने जीवन काल में तथा उसके बाद प्रेरणास्रोत बने रहते हैं। इतिहास अक्सर ऐसे महान् लोगों से ऐसा काम करवा देता है जिसकी उम्मीद नहीं होती। और जब राष्ट्र की आवश्यकता का प्रतीक ऐसे महान् इंसान बनते हैं तो उनका कद सहज ही बड़ा बन जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ऐसे ही विराट व्यक्तित्व के धनी एवं कर्मवीर महापुरुष थे। वे एक राजनेता ही नहीं, एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि इस देश की आत्मा थे। राष्ट्रीय एकता, भारतीयता एवं राजनीति में नैतिकता की वे अद्भुत मिसाल थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। उन्हें 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। पटेल की राष्ट्री...
<strong>बौखलाहट है हिंदी पट्टी के राज्यों को ‘गौमूत्र राज्य’ की संज्ञा देना</strong>

बौखलाहट है हिंदी पट्टी के राज्यों को ‘गौमूत्र राज्य’ की संज्ञा देना

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-ललित गर्ग- तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक एवं शानदार जीत से इंडिया गठबंधन के विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसी बौखलाहट का नतीजा है तमिलनाडु की सत्ताधारी दल डीएमके पार्टी के सांसद डीएनवी सेंथिलकुमार के द्वारा संसद में हिंदी पट्टी के राज्यों को ‘गौमूत्र राज्य’ की संज्ञा देना। उनके ऐसा बोलते ही संसद से लेकर बाहर के राजनीतिक गलियारों में हंगामा खड़ा हो गया। भाजपा ने सेंथिलकुमार के इस बयान का विरोध किया तो सांसद ने माफी मांग ली और लोकसभा की कार्यवाही से उनका बयान अब हटा दिया गया है। साथ ही कांग्रेस ने भी उनके इस बयान से पल्ला झाड़ लिया है। राजनीतिक स्वार्थों एवं संकीर्णताओं के चलते भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति एवं परम्परा को धुंधलाने एवं झुठलाने के ये षड़यंत्र राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता की बड़ी बाध...
<strong>मोदी के लिये ‘पनौती’ का इस्तेमाल राजनीतिक दरिद्रता</strong>

मोदी के लिये ‘पनौती’ का इस्तेमाल राजनीतिक दरिद्रता

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- ललित गर्ग- कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ की गयी ‘पनौती’ (अपशकुन), जेबकतरा एवं कर्ज माफी जैसी अशोभनीय टिप्पणियों के कारण निशाने पर हैं। चुनाव आयोग (ईसी) ने हालिया टिप्पणियों के लिए राहुल गांधी को कारण बताओ नोटिस जारी करके निर्णायक कार्रवाई की है। यह कार्रवाई सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा चुनाव आयोग में दर्ज की गई एक शिकायत का संज्ञान लेते हुए की गयी है। चुनाव आयोग ने जहां पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा पर चिंता व्यक्त की वही भाजपा ने तर्क दिया कि ऐसी भाषा एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता के लिए ‘अशोभनीय’ है। पिछले लम्बे दौर से विश्वनेता के रूप में प्रतिष्ठित देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दर्शन, उनके व्यक्तित्व, उनकी बढ़ती ख्याति, उनकी बहुआयामी योजनाओं व उनकी कार्य-पद्धतियांे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। पा...
लुप्त हो रहीं हैं भारतीय भाषाएँ

लुप्त हो रहीं हैं भारतीय भाषाएँ

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-विनीत नारायणहम लोग जो ख़ुद को पढ़ा-लिखा समझते हैं कितने ही मामलों में हम कितने अनपढ़ हैं इसका एहसास तबहोता है जब हम किसी विद्वान को सुनते हैं। ऐसा ही अनुभव पिछले हफ़्ते हुआ जब बड़ौदा से आए प्रोफेसरगणेश एन देवी का व्याख्यान सुना। प्रो देवी के व्याख्यान आजकल दुनिया के हर देश में बड़े चाव से सुने जारहे हैं। उनका विषय है भाषाओं की विविधता और उस पर मंडराता संकट। इस विषय पर उन्होंने दशकोंशोध किया है। भाषा, संस्कृति और जनजातीय जीवन पर वे 90 से ज़्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं। भाषाओं परउनके गहरे शोध का निचोड़ यह है कि भारत सहित दुनिया भर में क्षेत्रीय भाषाएँ बहुत तेज़ी से लुप्त होतीजा रही हैं। इससे लोकतंत्र पर ख़तरा मंडरा रहा है। कारण भाषाओं की विविधता और उससे जुड़े समाजऔर पर्यावरण की विविधता से लोग सशक्त होते हैं। पर जब उनकी भाषा ही छिन जाती है तो उनकेसंसाधन, उनकी पहचान और उनकी लोकतांत्रिक ताक़त ...