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संसदीय लोकतंत्र में “प्रश्न पूछने” का महत्व

संसदीय लोकतंत्र में “प्रश्न पूछने” का महत्व

Current Affaires, राष्ट्रीय, विश्लेषण, सामाजिक
संसदीय लोकतंत्र में "प्रश्न पूछने" का महत्व संसदीय लोकतंत्र के बारे में सबसे महत्वपूर्ण धारणा यह है कि संसद सरकार और लोगों के बीच एक कड़ी है। सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है और यह जवाबदेही जनता द्वारा संसद में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से सुरक्षित की जाती है। लोकतंत्र के स्वरूप की परवाह किए बिना जवाबदेही सरकार का एक महत्वपूर्ण सहायक है। हमारे संविधान में विभिन्न तरीकों से जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित की गई है। ऐसी संस्थाएँ स्थापित की गई हैं जो सरकार के कामकाज पर नज़र रखती हैं और उसकी निगरानी करती हैं। यह देखने के लिए कि क्या सरकार ठीक से काम कर रही है, सवाल पूछने के अलावा कोई अन्य मजबूत रास्ता नहीं है। संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता संसद में प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता को बनाए रखना है। यदि उस स्वतंत्रता को सीमित कर दिया जाए तो प्रश्न का महत्व कम हो ...
नारी’ की पूजा तो फिर अत्याचार क्यों?

नारी’ की पूजा तो फिर अत्याचार क्यों?

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‘नारी’ की पूजा तो फिर अत्याचार क्यों? -ललित गर्ग - नारी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन तथा मातृशक्ति की अभिवंदना का एक स्वर्णिम अवसर है विश्व नारी दिवस, यह नारी की महिमा को उजागर करने वाला ऐतिहासिक दिन है। आखिर नारी को ही ‘माँ’ का महत्त्वपूर्ण पद और संबोधन मिला। कारण की मीमांसा करते हुए अनुभवविदों ने बताया-हमारी भारतीय परंपरा में भारतमाता, राजमाता, गौमाता की तरह धरती को भी माता कहा जाता है। वह इसलिए कि धरती पैदा करती है। वह निर्मात्री है, सृष्टा है, संरक्षण देती है, पोषण करती है, बीज को विस्तार देती है, अनाम उत्सर्ग करती है, समर्पण का सितार बजाती है, आश्रम देती है, ममता के आँचल में सबको समेट लेती है और सब कुछ चुपचाप सह लेती है। इसीलिए उसे ‘माता’ का गौरवपूर्ण पद मिला। माँ की भूमिका यही है।‘मातृदेवो भवः’ यह सूक्त भारतीय संस्कृति का परिचय-पत्र है।  ऋषि-महर्षियों की तपः पूत स...
सेक्स ऑब्जेक्ट’ जमाने में महिला सशक्तिकरण

सेक्स ऑब्जेक्ट’ जमाने में महिला सशक्तिकरण

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सेक्स ऑब्जेक्ट' जमाने में महिला सशक्तिकरण (सोशल मीडिया पर पाया गया  है कि लड़कियों को लड़कों की तुलना में अधिक बार यौन रूप से चित्रित किया जाता है। सोशल मीडिया ने "किशोर लड़कियों के लिए कुछ यौन कथाओं के अनुरूप होने के लिए सदियों पुराने दबावों को बढ़ाया है। यह दर्शाता है कि महिलाओं के साथ एक ऐसी वस्तु के रूप में व्यवहार किया जाता है जिसकी खुद की कोई पहचान नहीं होती है। इसमें और अन्य विज्ञापनों में महिलाओं का चित्रण वास्तव में सामान्य रूप से महिलाओं का अपमान है जो महिलाओं की वास्तविक स्थिति और गरिमा को नष्ट कर रहे हैं।) --प्रियंका 'सौरभ' अभी कुछ समय पहले, सोशल मीडिया पर 'बोइस लॉकर रूम' की घटना हुई थी, जिसमें एक विशेष समूह से लीक हुई चैट के माध्यम से कम उम्र की लड़कियों की अश्लील तस्वीरें प्रसारित की गई थीं। यह समय है कि हम रुकें और स्वीकार करें कि 'बोइस लॉकर रूम' बलात्कार की संस्कृति को स...
अब अपराधी के मानस मूल्यांकन की सार्थक पहल

अब अपराधी के मानस मूल्यांकन की सार्थक पहल

Current Affaires, विश्लेषण, समाचार, सामाजिक
अब अपराधी के मानस मूल्यांकन की सार्थक पहल- ललित गर्ग-दुनिया के बहुत सारे देशों में फांसी की सजा का प्रावधान समाप्त किया जा चुका है और भारत में भी फांसी की सजा को समाप्त करने की मांग लगातार उठ रही है। प्रश्न है कि क्या मौत की सजा जैसे सख्त कानूनों के प्रावधान करने मात्र से अपराधों एवं अत्याचारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है? अपराधों को कठोर कानूनों के जरिये रोकने से ज्यादा जरूरी है कि समाज मंे ऐसी जागृति लाई जाये कि लोगों का मन बदले, अपराध की मानसिकता समाप्त हो। अपराधी को समाप्त करने की बजाय अपराध के कारणों को समाप्त किया जाना चाहिए। इसी के मद्देनजर अब सर्वाेच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि मौत की सजा पाए व्यक्तियों का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी अवश्य किया जाए। इसके लिए चिकित्सा संस्थानों के सुयोग्य मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों की टीम गठित की जाए। सर्वाेच्च न्यायालय के इस आदेश से मौत की सज...
आत्मनिर्भरता का प्रतीक है वैज्ञानिक कुशलता

आत्मनिर्भरता का प्रतीक है वैज्ञानिक कुशलता

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आत्मनिर्भरता का प्रतीक है वैज्ञानिक कुशलता या वैज्ञानिक कुशलता का परिचायक है एकीकृत दृष्टिकोण डॉ. शंकर सुवन सिंह वास्तविक ज्ञान ही विज्ञान है। प्राकृतिक विज्ञान प्रकृति और भौतिक दुनिया का व्यवस्थित ज्ञान होता है,या फ़िर इसका अध्ययन करने वाली इसकी कोई शाखा। असल में विज्ञान शब्द का उपयोग लगभग हमेशा प्राकृतिक विज्ञानों के लिये ही किया जाता है। इसकी तीन मुख्य शाखाएँ हैं : भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान। रसायन का वास्तविक ज्ञान, रसायन विज्ञान है। भौतिकी का वास्तविक ज्ञान, भौतिक विज्ञान है। जीव का वास्तविक ज्ञान, जीव विज्ञान है। कृषि का वास्तविक ज्ञान, कृषि विज्ञान है। खाद्य का वास्तविक ज्ञान, खाद्य विज्ञान है। दुग्ध का वास्तविक ज्ञान दुग्ध विज्ञान है। आदि ऐसे अनेक क्षेत्रों में विज्ञान है। रसायन, भौतिकी, जीव-जंतु, कृषि, खाद्य, दुग्ध, आदि अनेक क्षेत्रों के वास्तविक ज्ञान से राष्ट्रहि...
युद्ध के विरूद्ध खड़ा हो भारत

युद्ध के विरूद्ध खड़ा हो भारत

Current Affaires, राष्ट्रीय, विश्लेषण, सामाजिक
युद्ध के विरूद्ध खड़ा हो भारत आर.के. सिन्हा रूस के हमलों से तार-तार हो रहे यूक्रेन से आ रही खबरें और तस्वीरों को देखकर किसी भी सॅंवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल रहा है। रूसी सेनाएं लगातार हमले बोल रही है। उससे जान-माल की बड़े स्तर पर तबाही हो रही है। बम वर्षा से मानवता मर रही है। विश्व बिरादरी की तमाम अपीलों से बेरपवाह रूस यूक्रेन पर हल्ला बोल रहा है। क्यों नहीं किसी भी मसले का हल वार्ता से निकलता। अगर बातचीत के बाद हल नहीं निकल रहा है, तो समझ लें दोनों में से कोई पक्ष शांति और अमन को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने दुनिया के हर अहम शहर में बने उन कब्रिस्तानों को नहीं देखा जहां पर पहले,दूसरे विश्व युद्ध या फिर किसी अन्य जंग के शहीद चिर निद्रा में हैं। पिछले 100-125 सालों में विभिन्न जंगों में करोड़ों लोगों की जान गई है। आखिर किसी को क्या मिल गया इतने लोगों को मार देने के बाद भी। युद्ध के विरूद्...
भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय

भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय

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भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय विनोद बंसल राष्ट्रीय प्रवक्ता-विहिप सदियों की परतंत्रता के बाद 1947 में देश को राजनैतिक स्वतंत्रता तो मिली किन्तु, दुर्भाग्यवश उसके सांस्कृतिक स्वरूप पर होने वाले अनवरत हमलों पर कोई विराम न लग सका। स्वतंत्रता के 7 दशकों तक भी  हम ना तो अपने मंदिरों को मुक्त कर पाए, न नदियों को, न सांस्कृतिक विरासतों को, ना अपने महापुरुषों को। हमारे ऐतिहासिक गौरव या गौरवशाली परंपराएं थीं उनको ऐतिहासिक विकृतियों के चलते कुरूपित किया जाता रहा। उनकी वास्तविकता कभी समाज के सामने आ ही नहीं पाई। किंतु, 2014 में अचानक अप्रत्याशित रूप से भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होते हुए दिखा। जब देश के प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा में अमेरिका के राष्ट्रपति को भेंट स्वरूप श्रीमद्भागवत गीता देते हैं, जब वे आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को अक्षरधाम की सीढ़ियों पर बिठा कर ही बिना क...
जेएनयू की उप कुलपति और कपिव देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन

जेएनयू की उप कुलपति और कपिव देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन

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जेएनयू की उप कुलपति और कपिव देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन-आर.के. सिन्हा अपने देश में एक इस तरह का तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी तबका उभरा है, जो मानता है कि पढ़ा लिखा और शिक्षित मात्र वही है जिसका अंग्रेजी का ज्ञान शेक्सपियर के नाटकों के पात्र जैसा क्लिष्ट होता है। ये आजाद भारत में रहते हुए भी गुलाम मानिसकता से अपने को बाहर निकाल पाने में असमर्थ हैं। यह भी संभव है कि इस इस गुलामी की सोच से निकलना ही न चाहते हों। इनके निशाने पर अब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू) में हाल ही में नियुक्त हुईं उप कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित हैं। प्रोफेसर शांतिश्री न केवल जेएनयू की नई कुलपति हैं, बल्कि; वे यहां की पहली महिला कुलपति भी हैं। अभी तक जेएनयू में कभी भी किसी महिला को उप कुलपति के तौर पर नियुक्त नहीं किया गया था। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी महिला ने यह पद संभाला है। अंग्रे...
समतामूलक समाज का द्योतक है लैंगिक समानता या लैंगिक समानता बनाम सामाजिक संतुलन

समतामूलक समाज का द्योतक है लैंगिक समानता या लैंगिक समानता बनाम सामाजिक संतुलन

Current Affaires, सामाजिक
समतामूलक समाज का द्योतक है लैंगिक समानता या लैंगिक समानता बनाम सामाजिक संतुलन डॉ. शंकर सुवन सिंह महिला शब्द नारी को गरिमामयी बनाता है। महिला शब्द नारी के आदर भाव को प्रकट करता है। स्त्री शब्द नारी के सामान्य पक्ष को प्रदर्शित करता है। नर का स्त्रीलिंग ही नारी कहलाता है। नारी शब्द का प्रयोग मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए किया जाता है। नारी शब्द का प्रयोग संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी किया जाता है। औरत एक अरबी शब्द है,। औरत शब्द ‘औराह’ धातु से बनी है। जिसका अर्थ शरीर को ढंकना होता है। अरबी मजहब में औरत की यही परिभाषा है। स्त्री, प्रकृति सूचक है। यह स्वभाव वाचक शब्द है। नारी, देवत्व सूचक है। यह गुणवाचक शब्द है। महिला, सामाजिक प्रस्थिति सूचक है। यह अधिकार वाचक शब्द है। औरत, मजहबी सूचक है। यह उपभोग बोधक शब्द है। मादा (फीमेल), जैविक सूचक है। यह प्रजनन बोधक शब्द है। वूमेन,पराधीनता स...
कोई बचा ले पाक के शियाओं को मरने से

कोई बचा ले पाक के शियाओं को मरने से

Current Affaires, EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण, सामाजिक, साहित्य संवाद
कोई बचा ले पाक के शियाओं को मरने से-आर.के. सिन्हा पाकिस्तान के पेशावर की एक शिया मस्जिद में बीते शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान हुए दिल दहलाने वाले आत्मघाती बम विस्फोट में लगभग 60 से अधिक शिया नमाजी मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए। मारे गए लगभग सभी अभागे शिया मुसलमान बताए जाते हैं। अब गौर करें कि हमलावरों ने निशाना बनाया शिया मुसलमानों और उनकी इबादतगाह को। यह भी याद रखा जाए कि एक इस्लामिक मुल्क में ही शिया मुसलमानों का जीना मुश्किल हो गया है। वे हर वक्त डर-भय के साए में रहते हैं। यह हाल उस पाकिस्तान का है, जो मुसलमानों के वतन के रूप में बना था या जबरदस्ती जिन्ना वादियों द्वारा बनवाया गया था। पेशावर की शिया मस्जिद में हुआ हमला कोई अपने आप में पहली बार नहीं हुआ है । वहां पर शिया मुसलमानों पर लगातार जुल्मों-सितम होते रहे हैं। शिया पाकिस्तान की आबादी का 10 से 15 फीसदी है। वे देश के ...