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भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन

भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन

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अवधेश कुमारबेंगलुरु से राजधानी दिल्ली तक विपक्ष और भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन की मोर्चाबंदी की पहली गुंज संसद के सत्र में सुनाई पड़ रही है। यह लोकसभा चुनाव के राजनीतिक युद्ध की पूर्व प्रतिध्वनियां हैं। वैसे विपक्ष द्वारा इंडिया नाम रखने के साथ यूपीए की अंत्येष्टि हो गई। पटना बैठक तक गठबंधन की कोशिशों में विपक्ष आगे दिख रहा था। इस तरह माहौल थोड़ा एकपक्षीय था। बेंगलुरु बैठक के पूर्व मीडिया की सुर्खियां यही थी कि 17 दलों का समूह बढकर 26 का हो गया। इसमें ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पीछे रह गई है। 26 के मुकाबले 38 दलों को इकट्ठा कर भाजपा ने विपक्ष के इस प्रचार का जवाब दे दिया कि उसके साथ कोई दल आना नहीं चाहता। वैसे पटना बैठक के तुरंत बाद महाराष्ट्र में राकांपा के विधायकों के बहुमत का शरद पवार से अलग होकर सरकार में शामिल होने का निर्णय ही यह बताने के लिए पर्य...
क्या है कृत्रिम बुद्धि अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या ए.आई?

क्या है कृत्रिम बुद्धि अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या ए.आई?

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आजकल जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ए.आई. का उपयोग किये जाने की चर्चा हो रही है तो स्वाभाविक रूप से हम सभी के मन में प्रश्न उठता है कि ये ए.आई या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धि वास्तव में है क्या और बुद्धि कृत्रिम कैसे हो सकती है?हिंदी के कृत्रिम शब्द का अर्थ है बनावटी यानि जो मूल नहीं है नक़ल है, यही अर्थ आंग्ल भाषा के शब्द आर्टिफिशियल का भी है अतः स्पष्ट है कि कृत्रिम रूप से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता ही कृत्रिम बुद्धि अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है जिसे संक्षेप में ए.आई कहते हैं। ए.आई. के माध्यम से कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आरम्भ 1950 के दशक में हुआ था इसका जनक जॉन मैकार्थी को माना जाता है उनके अनुसार ए.आई. बुद्धिमान मशीनों, वि...
<strong>मुकदमों के बोझ से झुकी अदालतें एवं जटिल होता जीवन</strong>

मुकदमों के बोझ से झुकी अदालतें एवं जटिल होता जीवन

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-ः ललित गर्ग:- लोकतंत्र के चार स्तंभों में से एक न्यायपालिका इन दिनों काफी दबाव में है। उस पर मुकदमों का अंबार लगा हुआ है। देश के सर्वोच्च न्यायालय से लेकर विभिन्न अदालतों में मुकदमों का बोझ इस कदर हावी है कि न्याय की रफ्तार धीमी से धीमी होती जा रही है। अदालतों पर बढ़ते बोझ की समस्या की तस्वीर आंकड़ों के साथ पेश की जाए तो आम आदमी न्याय की आस ही छोड़ बैठेगा। साफ है कि एक ओर तो न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ लदा है, दूसरी ओर उसके जरूरत भर न्यायाधीश भी नहीं हैं। देश की न्याय प्रक्रिया को यदि दुरुस्त करना है तो एक साथ दो मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। देश के छोटे-बड़े सभी न्यायालयों में लगभग 5 करोड़ मुकदमे पैंडिंग हैं। कई तो 30-30 वर्षों से चल रहे हैं। संबंधित मर-खप गया, कई विदेश चले गये, कईयों को लापता घोषित कर दिया गया। न्याय में विलम्ब करना न्याय से इन्कार करना होता है। न्यायाधीशों पर ...
<strong>Opposition parties in India naming their group as” INDIA “mischievous and condemnable</strong>

Opposition parties in India naming their group as” INDIA “mischievous and condemnable

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय
N.S.Venkataraman   The recently concluded meeting  of some opposition parties in Bangalore to jointly put their efforts to defeat the Prime Minister Modi in the 2024 election, has named their group as Indian National Developmental  Inclusive  Alliance , which can otherwise  be referred as  “INDIA”  in short. This nomenclature has caused considerable surprise and anxiety amongst the discerning people. Of course, there are a number of political parties in India and the name of such parties  have the term India included such as Indian National Congress, Communist Party of India, All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam.  and so on. There is nothing wrong in having such names with India being there.  However, having a name only ...
<strong>हिंदू राष्ट्रवाद के पितामह थे लोकमान्य तिलक</strong>

हिंदू राष्ट्रवाद के पितामह थे लोकमान्य तिलक

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-ः ललित गर्ग:- बाल गंगाधर तिलक प्रखर राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी नेता एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। वे समाज सुधारक, राष्ट्रीय नेता, थे जिन्हें भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान में महारथ हासिल थी। तिलक ने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा। इस नारे ने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया था। आजादी के परवानों के लिए ये महज कुछ शब्द भर नहीं थे बल्कि एक जोश, एक जुनून था जिसके जरिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां देकर मां भारती को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। इस वाक्य को पढ़ने और सुनने वाले को बाल गंगाधर तिलक की याद आ ही जाती है। लोकमान्य का अर्थ है लोगों द्वारा स्वीकृत किया गया नेता। लोकमान्य के अलावा इनको हिंदू राष्ट्रवाद का पितामह भी कहा जाता है।बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय...
<strong>नौकरीशाही पर सत्तापक्षी होने का आरोप</strong>

नौकरीशाही पर सत्तापक्षी होने का आरोप

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-ललित गर्ग- लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभों में से एक कार्यपालिका लगातार प्रश्नों के घेरों में रहती रही है, आजादी के अमृतकाल में भी कार्यपालिका के भ्रष्ट, लापरवाह एवं गैरजिम्मेदार होना नये भारत-सशक्त भारत की सबसे बड़ी बाधा है। नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की आए दिन आने वाली खबरें यही बताती हैं कि केंद्रीय एजेंसियां डाल-डाल हैं तो भ्रष्टता का जाल पात-पात। विडम्बना तो यह है कि नेतृत्व करने वाली ताकतें भ्रष्टाचार में लिप्त है। मद्रास हाईकोर्ट की हाल ही में की गयी टिप्पणी नौकरशाहों की उस प्रवृत्ति को उजागर करने वाली है जिसमें वे सत्ताधारी दलों का पिछल्लगू बनकर काम करते हैं। तमिलनाडु के पूर्व सीएम एके पलानीस्वामी के खिलाफ हाईवे निविदा के मामले में नए सिरे से जांच के सरकार के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान लागू होने के 73 साल बाद कड़वी हकीकत यह है कि कार्यपालिका ने अपनी स्व...
मणिपुर चीरहरण विशेष

मणिपुर चीरहरण विशेष

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चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौनप्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन यहां बात सिर्फ आरोप-प्रत्‍यारोपों की नहीं है। सवाल सिस्‍टम के बड़े फेलियर का है। क्‍या सिर्फ वीडियो वायरल होने के बाद सरकार के संज्ञान में कोई घटना आएगी? उसका तंत्र क्‍या कर रहा है? क्‍यों दो महीने तक कोई कार्रवाई नहीं हुई? क्‍या लोगों की निशानदेही नहीं की जा सकती थी? ऐसे कई बड़े सवाल हैं। घटना का वीडियो बहुत परेशान करने वाला है। समाज में रहने वाला व्यक्ति इस वीडियो को देखते ही गुस्से से लाल हो रहा हैं,  इतिहास साक्षी है जब भी किसी आतातायी ने स्त्री का हरण किया है या चीरहरण किया है उसकी क़ीमत संपूर्ण मनुष्य ज़ाति को चुकानी पड़ी है। हमें स्मरण रखना चाहिए- स्त्री का शोषण, उसके ऊपर किया गया अत्याचार, उसका दमन, उसका अपमान.. आधी मानवता पर नहीं बल्कि पूरी मानवता पर एक कलंक ...
बज गयी 2024 की रणभेरी

बज गयी 2024 की रणभेरी

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विनीत नारायणपक्ष और विपक्ष अपने-अपने हाथी, घोड़े, रथ और पैदल तैयार करने में जुट गये हैं। दिल्ली और बैंगलुरु में दोनोंपक्षों ने अपना अपना कुनबा जोड़ा है। जहां नए बने संगठन ‘इंडिया’ में 25 दल शामिल हुए हैं वहीं एनडीए 39दलों के साथ आने का दावा कर रहा है। अगर इन दावों की गहराई में पड़ताल करें तो बड़ी रोचक तस्वीर सामनेआती है।पिछले चुनाव में एनडीए में अब शामिल हुए इन 39 दलों को मिले वोट जोड़ें तो इस गठबंधन को देश भर में23 से 24 करोड़ के बीच वोट मिले थे। जबकि ‘इंडिया’ के मौजूदा गठबंधन को 26 करोड़ वोट मिले थे। पर येवोट इतने सारे दलों में आपसी मुक़ाबले के कारण बंट गये। जिससे इनकी हार हुई। अगर ये गठबंधन ईडी,सीबीआई व आईटी की धमकियों के बावजूद एकजुट बना रहता है और मुक़ाबला आमने-सामने का होता है तोजो परिणाम आयेंगे वो स्पष्ट हैं।दूसरा पक्ष ये है कि जहां एनडीए आज 60 करोड़ भारतीयों पर राज कर रही है वहीं ...
<strong>मानसून सत्र व्यर्थ नहीं, अर्थपूर्ण ढंग से चले</strong>

मानसून सत्र व्यर्थ नहीं, अर्थपूर्ण ढंग से चले

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-ः ललित गर्ग:- मानसून सत्र दोनों सदनों में सुचारुरूप से चले इसके लिये सर्वदलीय बैठक में सहमति भले ही बनी हो, लेकिन अब तक के अनुभव के अनुसार यह सत्र भी हंगामेदार ही होना तय है। भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिए विपक्ष ने ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया)’ नाम के नए गठबंधन की घोषणा कर दी है। नए गठबंधन के नेता संसद के मानसून सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी में लगे हैं। मानो विपक्षी दलों ने प्रण कर लिया है कि वह इस सत्र को भी सुगम तरीके से नहीं चलने देगा। मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू होने जा रहा है और यह 11 अगस्त को खत्म होगा। इस दौरान संसद के दोनों सदनों की कुल 17 बैठकें रखी गई हैं। एक ओर जहां सत्ता पक्ष अहम विधेयकों को पारित करने की कोशिश में है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष मणिपुर हिंसा, रेल सुरक्षा, महंगाई, यूनिफॉर्म सिविल कोड और अडाणी मामले पर जेपीसी गठित करने क...
इतनी देर से क्यों जागा डीजीसीए?

इतनी देर से क्यों जागा डीजीसीए?

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*रजनीश कपूरजब भी कभी कोई विमान हादसा होता है या होते-होते टल जाता है तो भारत का नागर विमानन महानिदेशालययानी डीजीसीए ऐसी घटना की जाँच करता है। ऐसे मामलों में जाँच पूरी होने तक डीजीसीए उस विमान केपायलट व क्रू को ‘ग्राउंड’ कर देता है यानी उड़ान भरने पर रोक लगा देता है। सवाल है कि क्या डीजीसीए का सिर्फ़इतना ही फ़र्ज़ है? सवाल ये भी है कि क्या ऐसी दुर्घटनाओं के बाद की जाने वाली ऐसी जाँच में केवल एयरलाइनके स्टाफ़ की ही गलती क्यों सामने आती है? क्या डीजीसीए के अधिकारियों को हवाई जहाज़ की नियमित जाँचऔर रख-रखाव की पड़ताल नहीं करनी चाहिए, जो उनका फ़र्ज़ है? यदि डीजीसीए द्वारा ऐसे निरीक्षण समय-समय पर होते रहें तो ऐसे हादसे टाले जा सकते हैं।आज हम देश की एक नामी एयरलाइन इंडिगो के बारे में बात करेंगे। निजी क्षेत्र की यह एयरलाइन पिछले महीनेकाफ़ी सुर्ख़ियों में रही। कारण था इसके विमानों में लैंडिंग के सम...